जीवन कठिनाइयों से भरा हुआ है, सभी के जीवन में समस्याएं होती हैं। लेकिन हममें से कुछ लोगों को इन कठिनाइयों के साथ सामाजिक भेदभाव भी सहना पड़ता है। अगर आप LGBTQ+ कम्युनिटी से हैं तो आप यह दर्द समझ सकते होंगें।
इस सामाजिक पक्षपात और हिंसा के साथ कुछ स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं भी हैं जो lgbtq समाज को सहनी पड़ती हैं।
जर्नल आर्काइव ऑफ सेक्सुअल बिहेवियर की रिपोर्ट के अनुसार होमोसेक्सुअल कपल में हेट्रोसेक्सुअल व्यक्ति के मुकाबले सेक्सुअली ट्रांसमिटेड डिसीज़ की सम्भावना ज्यादा होती है।
यहां यह सवाल उठना स्वभाविक है कि STI तो किसी में भी फैल सकते हैं, तो गे और लेस्बियन कपल में ज्यादा फैलने का क्या कारण हो सकता है? कारण है जागरूकता की कमी।
दरअसल वेजाइना में पेनिस के पेनीट्रेशन को ही सेक्स माना जाता है, और उससे होने वाले इंफेक्शन के बारे में जागरूकता फैलाई जाती है। होमोसेक्सुअल कपल्स के सेक्सुअल बेहवियर को लेकर जागरूकता की कमी है, जिसके कारण सेक्सुअली ट्रांसमिटेड डिसीज़ का रिस्क ज्यादा हो जाता है।
लत का शिकार कोई भी हो सकता है, लेकिन स्टडीज की मानें तो lgbtq कम्युनिटी एडिक्शन का शिकार ज्यादा होती है। जर्नल JAMA इंटरनल मेडिसिन के अनुसार लेस्बियन, गे और ट्रान्सजेंडर व्यक्ति शराब, सिगरेट या ड्रग्स की लत के ज्यादा शिकार होते हैं।
इसका कारण है तनाव जो सामाजिक भेदभाव और डर के कारण उन्हें ज्यादा होता है। अपनी सेक्सुअलिटी, जेंडर पर सवाल उठाए जाने से लेकर होमोफोबिया तक, सबका स्ट्रेस उन्हें लत की ओर धकेलता है।
इसी स्टडी में यह भी पाया गया है कि ट्रान्सजेंडर महिलाएं और लेस्बियन सिस महिलाओं के मुकाबले ज्यादा मोटी और अनहेल्दी होती हैं। कारण वही है- तनाव। भेदभाव और समाज की घृणा तनाव को जन्म देती है। यह तो आप जानते ही होंगे कि तनाव के कारण कॉर्टिसोल हॉर्मोन निकलता है जो हॉर्मोनल असंतुलन पैदा करता है।
हॉर्मोन्स का असंतुलन होने से मेटाबॉलिज्म स्लो हो जाता है और भूख बढ़ जाती है। जिसका सीधा असर वजन पर पड़ता है।
आप यह तो समझ चुके होंगे कि lgbtq कम्युनिटी तनाव के कारण गम्भीर स्वास्थ्य समस्याओं से गुजरती है। लेकिन यह यहीं खत्म नहीं होता। अपने जेंडर और सेक्सुअलिटी के लिए बुली किया जाना, नफरत भरे ताने सुनना और हिंसा जैसी कितनी समस्याएं हैं जिनसे वे रोजाना गुजरते हैं।
इस दर्दनाक यथार्थ से बचने के लिए ज्यादातर लोग अत्यधिक खाते हैं जो ईटिंग डिसऑर्डर का रूप ले लेता है। जर्नल ऑफ अडोलेसेन्ट हेल्थ में प्रकाशित स्टडी के मुताबिक ईटिंग डिसऑर्डर से ग्रसित होने में गे पुरुष, हेट्रोसेक्सुअल पुरुषों के मुकाबले 7 गुना ज्यादा सम्भावित थे। वहीं ट्रान्सजेंडर व्यक्ति 5 गुना ज्यादा सम्भावित थे।
डायबिटीज से लेकर ब्लड प्रेशर और हृदय रोग, lgbtq व्यक्तियों को होने की सम्भावना ज्यादा होती है। कारण है हर वक्त तनाव रहना। साथ ही मोटापा, ईटिंग डिसऑर्डर इत्यादि इन बीमारियों को बढ़ावा देते हैं।
यूनिवर्सिटी ऑफ वाशिंगटन की स्टडी में पाया गया कि बाईसेक्शुअल महिलाओं में अस्थमा, मिर्गी और दिल का दौरा पड़ने की सम्भावना ज्यादा हैं।
क्योर अस नामक जर्नल में प्रकाशित 2017 की एक स्टडी के अनुसार lgbtq कम्युनिटी में मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं ज्यादा होती हैं। डिप्रेशन, एंग्जायटी और आत्महत्या करने के विचार lgbtq व्यक्तियों में हेट्रोसेक्सुअल व्यक्तियों से अधिक होते हैं।
इसका कारण है समाज से तिरस्कृत महसूस होना, भेदभाव और हिंसात्मक घटनायें जो उनके साथ कभी न कभी घटी होती हैं।
यह सवाल सबसे महत्वपूर्ण है, कि आप क्या कर सकते हैं?
अगर आप एक हेट्रोसेक्सुअल पाठक हैं तो आप सबसे पहला कदम जो उठा सकते हैं वह है अपनापन दिखाना। सिर्फ इसलिए कि वे आपसे अलग हैं इसका यह मतलब नहीं कि वे गलत हैं। उन्हें इज़्ज़त दें और भेदभाव न करें। अगर आप देखें तो उनके स्वास्थ्य का सबसे बड़ा दुश्मन तनाव है जो भेदभाव के कारण ही है। अगर आप अपने स्तर पर एक अच्छे व्यक्ति बनने का प्रयास करते हैं, तो समाज बदलने में वक्त नहीं लगेगा।
अगर आप एक होमोसेक्सुअल या ट्रान्सजेंडर पाठक हैं तो बस इतना याद रखें कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि दूसरे आपके बारे में क्या सोचते हैं। आप गलत नहीं हैं। खुद से प्यार करें और इसी तरह बहादुर बने रहें।
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