गर्भावस्था के दौरान कई कारणों से बढ़ने वाली जटिलताएं मिसकैरेज यानि गर्भपात का कारण साबित होती हैं। मिसकैरेज का प्रभाव महिला के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य दोनों पर ही देखने का मिलता है। स्पॉटिंग, ऐंठन और फ्लूइड डिसचार्ज इस समस्या के मुख्य लक्षण है। गर्भपात के अधिकतर मामले पहली तिमाही में देखने को मिलते हैं। ऐसे में महिलाओं को प्रेगनेंसी के दौरान अपने खान पान से लेकर यात्रा करने तक हर चीज़ को लेकर सतर्क रहने की आवश्यकता है। जानते हैं गर्भपात के कुछ सामान्य कारण।
ऑबस्टेट्रीशियन एंव गॉयनेकॉलाजिस्ट, डेफोडिल बाए आर्टिमिस हॉस्पिटल से डॉ अपूर्वा गुप्ता बताती हैं कि गर्भपात पहली तिमाही से लेकर 20 वें सप्ताह के मध्य होता है। गर्भपात के उचित कारणों का स्पष्टता से पता लगाना संभव नहीं हो पाता है। दरअसल, यूटर्स के आकार, हार्मोन इंबैलेंस, लाइफस्टाइल फैटक्र और मेटरनल एज समेत ऐसे कई सामान्य कारण है, जो गर्भपात के जोखिम को बढ़ा देते हैं।
एक्सपर्ट का कहना है कि बहुत सारे मामलों में गर्भपात को रोक पाना संभव नहीं हो पाता है। ऐसे में हेल्दी लाइफस्टाइल को अपनाना बेहद आवश्यक है। साथ ही रेगुलर चेकअप और डॉक्टर द्वारा बताई गई दवाओं का सेवन अवश्य करें। वे महिलाएं जो पहली तिमाही में स्पॉटिंग, ऐंठन, पेट के निचले हिस्से में दर्द व ब्लीडिंग महसूस करती हैं, उन्हें तुरंत डॉक्टरी जांच के लिए जाना चाहिए।
शरीर में हार्मोन असंतुलन गर्भपात का कारण साबित होता है। दरअसल, यूटरिन लाइनिंग पूर्ण रूप से बढ़ नहीं पाती है, जिससे फर्टिलाइज एग को इंप्लांट करने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। ऐसे में पिट्यूटरी गलैण्ड से रिलीज़ होने वाले में प्रोलेक्टिन रिप्रोडक्टिव हार्मोन का स्तर यूटरिन लाइनिंग के विकास को बाधित कर सकता है।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के अनुसार अतिरिक्त और कम जीन्स और क्रोमोसोम गर्भपात का मुख्य कारण साबित होता है। एबनॉर्मल क्रोमोसोम से बर्थ डिफेक्ट और इंटलएक्चुअल डिसएबिलिटी यानि बौद्धिक विकलांगता का कारण साबित होते हैं। क्रोमोसोम बच्चे के बालों और आंखों के रंग को निर्धारित करते हैं। डैमेज और क्रोमोसोम की गलत संख्या बच्चे की ग्रोथ को बाधित करती है।
गर्भवती महिलाओं में गर्भाशय का उचित आकार होना आवश्यक है। गर्भाशय की शेप से लेकर साइज़ में बदलाव होने से गर्भपात का सामना करना पड़ता है। गर्भाशय के आकार का छोटा होना मिसकैरेज की समस्या का कारण बनने लगता है।
अधिकतर महिलाओं को प्रेगनेंसी के दौरान लो एपिटाइट का सामना करना पड़ता है। ऐसे में आहार का ख्याल न रख पाने से फूड पॉइज़निंग की समस्या बढ़ने लगती है। फूड पॉइज़निंग के चलते बार बार उल्टी करने का मन चाहता है, जिसका असर बच्चे की ग्रोथ पर भी दिखने लगता है।
वे महिलाएं जो 35 की उम्र के बाद फैमिली प्लानिंग करती हैं, उनमें फर्टिलिटी की दर कम होने लगती है। इससे बच्चे में डॉउन सिन्डरोम का खतरा बना रहता है। इसके अलावा गेस्टेशनल डायबिटीज़ और हाई ब्लड प्रेशर का जोखिम बढ़ जाता है।
प्रगनेंसी के दौरान शरीर में साइटोमेगालोवायरस यानि सीएमवी, लिस्टेरिया, रूबेला और टॉक्सोप्लाज्मोसिस जैसे संक्रमण का खतरा बना रहता है। इससे बच्चे की ग्रोथ प्रभावित होने लगती है। साथ ही गर्भावस्था के लिए जोखिम का कारण बन सकते हैं। इन संक्रमणों के फैलने से गर्भपात की संभावना कई प्रतिशत बढ़ा सकती हैं।
स्मोकिंग, अल्कोहल इनटेक और नशीली दवाओं का सेवन करने से विषाक्त पदार्थ शरीर के संपर्क में आने लगते हैं। इससे प्रेगनेंसी लॉस का खतरा बना रहता है। इसके अलावा खान पान में कोताही बरतने से भी शरीर में पोषण की कमी बढ़ने लगती है और शरीर निर्जलीकरण का भी शिकार होने लगता है।
अचानक से गिरना, किसी चीज़ से टकराना और कार दुर्घटना जैसे फिजिकल ट्रॉमा गर्भपात का कारण बन सकते है। पहली तिमाही में जब बच्चे की ग्रोथ आरंभ होती है, उस वक्त वो बेहद कमजोर और आकार में छोटा होता है। उस समय गर्भपात की संभावना सबसे ज्यादा होती है।
एक से ज्यादा प्रेगनेंसी होना मिसकैरेज का कारण बनने लगता है। दरअसल, ज्यादा प्रेगनेंसी में बच्चे की ग्रोथ उचित प्रकार से नहीं हो पाती है। कई बार क्रोमोसोम एबनॉर्मलिटीज़ और प्लेसेंटल एबनॉर्मलिटीज़ इस समस्या का कारण साबित होती हैं।
एंटीडिप्रेसन्ट और नॉन स्टीयोरॉइड समेत एंटी इंफ्लामेटरी दवाओं का सेवन करने से गर्भपात की संभावना बढ़ जाती है। ऐसे में गभा्रवस्थाउ के दौरान तनाव, चिंता और डायबिटीज़ व हाई ब्लड प्रेशर से बचने की सलाह दी जाती है।
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