रोजमर्रा के जीवन में व्यक्ति कई बार चिंतित और परेशानी से घिरा हुआ महसूस करता है। कभी रिलेशनशिप तो कभी वर्क प्रेशर इस समस्या के पनपने का कारण साबित होते है। इसके अलावा उम्र का बढ़ना भी मानसिक रोगों का कारण बनने लगता है। अधिकतर आसपास मौजूद लोगों में एंग्ज़ाइटी की समस्या पाई जाती है, जिसे दूर करने की जगह व्यक्ति उमें घिरता चला जाता है। इसका असर उसके व्यवहार और वर्क प्रोडक्टिविटी पर भी दिखने लगता है। सबसे पहले जानते हैं कि न्यूरोसिस क्या है और कैसे इस समस्या को हल (tips to deal with neurosis) किया जा सकता है।
अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन के अनुसार न्यूरोसिस मानसिक विकारों के एक स्पेक्ट्रम का वर्णन करता है जो रोजमर्रा के जीवन में चिंता का कारण साबित होता है। इससे ग्रस्त लोग परेशान, चिंतित, डिप्रेस्ड, तर्कहीन भय और अलगाव का शिकार रहते हैं। अन्य शब्दों में न्यूरोसिस एक प्रकार का एंग्ज़ाइटी डिसऑर्डर है।
मनोचिकित्सक डॉ युवराज पंत बताते हैं कि मानसिक बीमारियों के दो रूप होते हैं। एक है न्यूरोसिस (neurosis) और दूसरा है साइकोसिस (psychosis)। न्यूरोसिस एक ऐसा एंग्ज़ाइटी डिसऑर्डर है, जिसमें व्यक्ति चिंतित, डरा हुआ है, ओसीडी से ग्रस्त और अकेलापन महसूस करता है। हांलाकि व्यक्ति को इस बात की अतंदृष्टि यानि जानकारी होती है। मगर बावजूद इसके वो निराश रहता है और तनाव की स्थिति में उलझा हुआ महसूस करता है। वहीं साइकोसिस से ग्रस्त व्यक्ति अल्ज़ाइमर और सीज़ोफ्रनिया जैसे मानसिक रोगों का शिकार होता है, जिसके बारे में व्यक्ति को जानकारी नहीं होती है।
किसी भी समस्या को हल करने के लिए उसके कारणों की जानकारी एकत्रित करना आवश्यक है। इससे उसे सुलझाने में मदद मिलती है। इसके अलावा पारिवारिक सदस्यों की मदद या फिर काउंसलिंग के ज़रिए परेशानी को दूर किया जा सकता है।
जीवन में हर व्यक्ति के कुछ गोल्स होते है और उनकी प्राप्ति के लिए अपनी क्षमता के अनुसार प्रयास करें। साथ ही लक्ष्य भी उसी के आधार पर निर्धारित करने चाहिए। इससे व्यक्ति निराशा का शिकार नहीं होता है, जिससे वो एंग्जाइटी डिसऑर्डर से बच सकता है।
बहुत बार मन ही मन चीजों को दबाने और छुपानेसे वो एंग्ज़ाइटी का कारण बनने लगती है। इससे व्यक्ति हर वक्त चिंतित महसूस करता है। ऐसे में समस्या को समझकर उसका हल निकालें और अपने दोस्तों या माता पिता से अपने मन की बात ज़ाहिर करें। इससे मन को सुकून और शांति की प्राप्ति होती है।
अलगाव तनाव का कारण बनने लगता है। ऐसे में अकेलेपन को छोड़कर अन्य लोगों के साथ बैठकर बातचीत करें और तर्कशील बनने का प्रयास करें। इससे व्यक्ति अपनी समस्याओं से बाहर आकर सकारात्ककमता की ओर बढ़ने लगात है। साथ ही उसके व्यवहार में भी एक परिवर्तन नज़र आता है। सोशल सर्कल बढ़ाने से समस्याओं को देखने और सुलझाने के नज़रिए में भी बदलाव आने लगता है।
शरीर के अलावा मांइड को रिलैक्स करना भी आवश्यक है। इसके लिए रात में 8 से 10 घंटे की नींद लेना आवश्यक है। इससे शरीर में हैप्पी हार्मोन रिलीज़ होने लगते हैं, जो न्यूरोसिस की समस्रू से राहत दिलाने में मदद करते है। स्लीप पैटर्न फॉलो करने से मानसिक स्वास्थ्य उचित बना रहता है।
दिनभर में कुछ वक्त अपने लिए निकालें, जिसमें अपनी रूचि के मुताबिक कार्य करें और उस समय को एजॉय करें। इससे मानसिक थकान कम होती है और ब्रेन एक्टिव रहता है। मी टाइम में आप रीडिंग, लेखन, कुकिंग और पेंटिंग के लिए समय निकाल सकते हैं।
एकाग्रता बढ़ाने और फोबिया से राहत पाने के लिए दिन की शुरूआत मेडिटेशन से करें। इससे व्यक्ति के मन में एकाग्रता बढ़ने लगती है और व्यर्थ की चिताओं से भी राहत मिल जाती है। इसके अलावा कुछ देर वॉकिंग और एक्सरसाइज़ से भी मसल्स की मज़बूत बढ़ती और मेमोरी बूस्ट होती है।