एचएमपीवी और एच5एन1 के कहर के बाद देश इन दिनों एक नई आपदा का सामना कर रहा है। महाराष्ट्र में गिलियन बैरे सिंड्रोम से एक व्यक्ति की मौत का मामला सामने आया है। वहीं पूणे में भी इसी बीमारी की चपेट में आने वाले लोगों की संख्या 100 का आकड़ा पार कर चुकी है। ये ऑटोइम्यून बीमारी मांसाहारियों के लिए चिंता का कारण बनी हुई है। मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी के रिसर्च के अनुसार अधपके यानि अंडरकुक्ड चिकन में पाया जाने वाला एक सामान्य जीवाणु गिलियन बैरे सिंड्रोम जीबीएस का कारण साबित हो रहा है। जानते हैं गिलियन बैरे सिंड्रोम स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित कर रहा है और अधपका चिकन कैसे समस्या का कारण साबित हो रहा है (tips to avoid GBS risk with eating chicken) ।
जीबीएस एक ऑटोइम्यून बीमारी है जिसमें इम्यून सिस्टम नर्वस को डैमेज करने लगते है। यह दुनिया में एक्यूट न्यूरोमस्कुलर पेरालीसिस का मुख्य कारण है। उल्टी और दस्त इस बीमारी के शुरूआती लक्षण हैं। हांलाकि लोग शुरूआत में इसे फूड पॉइज़निंग से जोड़कर देखने लगते हैं। मगर धीरे धीरे यानि तीन सप्ताह के बाद पैरों और टांगों में कमज़ोरी और झनझनाहट का अनुभव होता है। इससे ऊपरी शरीर और हाथ लकवाग्रस्त होने का जोखिम बढ़ जाता हैं। इस समस्या से ग्रस्त लोगों को सांस संबधी समस्याओं का जोखिम बढ़ने लगता है।
एमएसयू कॉलेज ऑफ वेटीरिनरी मेडिसिन के अनुसार कैम्पिलोबैक्टर जेजुन नाम का फूड बॉर्न बैक्टीरिया इस समस्या का कारण साबित होता है। दरअसल, ये बैक्टीरिया उस तरह के चिकन में पनप सकते हैं जिसे न्यूनतम आंतरिक तापमान पर नहीं पकाया जाता है। इससे इंफ्लामेटरी बॉवल डिज़ीज़ और रीटर्स अर्थराइटिस का खतरा बना रहता है।
इस बारे में इंटरवेंशनल न्यूरोलॉजिस्ट डॉ विनीत बांगा बताते हैं कि गुलियन बैरे सिंड्रोम यानि जीबीएस एक डिमाइलेटिंग न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली परीफेरल नर्वस सिस्टम पर हमला करती है। इससे शरीर में वायरल बीमारी या जीवाणु संक्रमण का जोखिम बढ़ जाता है। इस समस्या से ग्रस्त रोगी में इस संक्रमण का प्रभाव कुछ घंटों से लेकर कई दिनों के भीतर नज़र आने लगता है। लोअर बॉडी पार्ट से इसका प्रभाव शरीर पर नज़र आने लगता है। ये देखते ही देखते ऊपरी अंग को भी प्रभावित करने लगता है।
गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल या श्वसन संक्रमण के अलावा हाइपोटोनिया, रिफ्लेक्स में कमी, बुलबर मांसपेशियों की कमजोरी, पसीना आना व रक्तचाप में उतार.चढ़ाव देखने को मिलता है। इसके अलावा झनझनाहट और सुन्नता बनी रहती है।
इस बारे में डायटीशियन डॉ अदिति शर्मा बताती हैं कि अधपका चिकन या अंडा खाने से बैक्टीरिया जीवित रह जाते हैं, जो स्वास्थ्य को कई तरह से नुकसान पहुंचाने लगता है। जहां इनीश्यिल स्टेज पर अक्सर इरिटेबल बॉवल सिंड्रोम का सामना करना पड़ता है, जिससे वॉमिटिंग, दस्त, पेट दर्द और मतली की समस्या बनी रहती है। उसके बाद ये बैक्टीरिया न्यूरॉन्स पर अटैक करने लगते हैं, जिससे आईबीडी का सामना करना पड़ता है।
नर्व्स की प्रोटेक्टिव लेयर डैमेज हो जाती है और ब्रेन तक मैसेज नहींं पहुंच पाता है। दरअसल, न्यूरॉन रिवाइव नहीं हो सकते हैं, जिसका असर ओवरऑल हेल्थ पर होने लगता है और पेरालीसिस अटैक का सामना करना पड़ता है। इस समस्या के जोखिम को कम करने के लिए र्पार्टशल कुकिंग से बचना आवश्यक है।
जब बैक्टीरिया ब्लड में प्रवेश करते हैं, तो वे शरीर के अन्य भागों में फैलने लगते हैं। इसे बैक्टेरिमिया कहते हैं। ये शरीर को कई फॉर्म में प्रभावित कर सकता है। वे लोग जो पहले से किसी बीमारी से ग्रस्त है या कमज़ोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों में बैक्टेरिमिया विकसित होने का जोखिम अधिक होता है। पेट के एसिड को कम करने के लिए दवा लेने वाले लोगों में भी इसका जोखिम अधिक होता है। दरअसल, पेट का एसिड आंत के संक्रमण से बचाने में मदद करता है।
जर्नल ऑफ ऑटोइम्यूनिटी के अनुसार कैम्पिलोबैक्टर जेजुन कच्चे या अंडरकुक्ड चिकन में पाया जाने वाला एक सामान्य बैक्टीरिया है जो जीबीएस का कारण साबित होता है। इसकी चपेट में आते ही शरीर में ऑटोइम्यून प्रतिक्रिया सक्रिय होने लगती है। कैम्पिलोबैक्टर जेजुनी के इलाज के दौरान बहुत सी दवाएं बेअसर साबित होती है, जिससे जीबीएस का उपचार जटिल हो सकता है।
गिलियन बैरे सिंड्रोम नसों पर अटैक करना शुरू कर देता है। इससे नसों की सुरक्षा परत क्षतिग्रस्त हो जाती है। नसों के क्षतिग्रस्त होने से वो मस्तिष्क तक संकेत भेजने में विफल साबित होती है जिसके कारण कई तरह की जटिलताओं का सामना करना पड़ता है।
रिसर्च के अनुसार कई प्रकार के बैक्टीरिया या वायरस इस समस्या को ट्रिगर कर सकते हैं। कैम्पिलोबैक्टर नाम का बैक्टीरिया अक्सर अधपके पोल्ट्री में पाया जाता है। इन्फ्लूएंजा वायरस, साइटोमेगालोवायरस, जीका वायरस और हेपेटाइटिस ए, बी, सी और ई का संक्रमण भी गिलियन बैरे सिंड्रोम का कारण साबित हो सकता है।
चिकन को संक्रमण से मुक्त रखने के लिए उसे 3 से 4 बार साफ पानी से अवश्य धोएं। इसके अलावा हल्के गुनगुने पानी से धोने से संक्रमण का प्रभाव कम होने लगता है। धोने के बाद उसे 3 से 5 मिनट के रखें और फि कुकिंग प्रोसेस आरंभ करें।
कच्चे चिकन में बैक्टीरिया की उच्च मात्रा बनी रहती है। संक्रमण के प्रभाव से बचने के लिए चिकन को पहले बॉइल करें और उसे फिर ऑयल में पकाएं। इससे किसी भी प्रकार के वायरस की चपेट में आने से बचा जा सकता है।
अक्सर पोल्ट्री में खरीददारी के दौरान सतर्क रहने की आवश्यकता होती है। चिकन को खरीदने के समय एंटीबायोटिक फ्री लगे लेबल का ख्याल रखें। इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता को प्रभावित होने से बचाया जा सकता है।
चिकन की पकाते वक्त इस बात का ख्याल रखें कि वो अधपका न रहें। इसके लिए तापमान 165 एफ तक रहना आवश्यक है। इससे चिकन पर मौजूद बैक्टीरिया नष्ट हो जाते है और शरीर वायरस का शिकार नहीं होता है।
शरीर में ज्यादा प्रोटीन किडनी के नुकसान का कारण साबित हो सकता है। एक्सपर्ट के अनुसार अचानक ज्यादा प्रोटीन इनटेक बॉडी फंक्शनिंग को प्रभावित करने लगता है। ऐसे में प्लांट बेस्ड प्रोटीन को विकल्प के तौर पर चुनें। वे लोग जो मांसाहारी है, उन्हें सप्ताह में एक से दो बार इसे अपनी मील में शामिल करना चाहिए।
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