दिनचर्या को हेल्दी बनाए रखने के लिए टाइम मैनेजमेंटे स्किल्स की जानकारी होना आवश्यक है। अक्सर लोग घंटों लगातार स्क्रीन के सामने बैठकर काम करते हैं, जिससे शरीर के पोश्चर से लेकर आंखों की दृष्टि प्रभावित होती है। इसके चलते वर्कआउट रूटीन असंतुलित होने लगता है और खाना भी समय पर नहीं खा पाते हैं। इससे शरीर को ब्लोटिंग और निर्जलीकरण समेत कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ऐसे में 8-8-8 नियम शरीर को स्वास्थ्यवर्धक और लाइफ बैलेंसिंग में मददगार साबित होता है। सबसे पहले समझते हैं कि 8-8-8 रूल क्या है और इससे मिलने वाले फायदे (8-8-8 rules to transform your life)।
अधिकतर लोग दिनभर में समय की कमी की शिकायत करने लगते हैं, जिससे उनके कई कार्य अधूरे रह जाते हैं। सभी कार्यों की पूर्ति और उन्हें समय पर करने के लिए इस नियम की मदद ली जा सकती है। अगर आप भी लाइफ बैलेंस करना चाहती हैं, तो इस नियम की मदद ली जा सकती है।
इस बारे में योग एक्सपर्ट डॉ गरिमा भाटिया बताती हैं कि 8-8-8 रूल का मकसद अपने दिन को तीन बराबर भागों में बांटकर जीवनचर्या को संतुलित बनाए रखना है। इसके लिए दिन को तीन बार 8 घंटों के गैप में विभाजित किया जाता है। दिन के पहले आठ घंटे कार्य के लिए निकाले जाते हैं। उसके बाद अगले आठ घंटे का समय व्यक्तिगत कामों के लिए निधार्रित किया जाता है, जिसमें व्यायाम, परिवार के साथ गुज़ारा गया वक्त और मी टाइम शामिल होता है। उसके बाद आखिरी पहर हेल्दी स्लीप के लिए रखा जाता है। इससे न केवल जीवनशैली नियमित बनी रहती है बल्कि स्वास्थ्य समस्याओं के जोखिम से भी बचा जा सकता है।
इस आठ घंटे के ब्लॉक को ऑफिस वर्क पूरा करने के लिए तय किया जाता है। अधिकतर लोग 8 की जगह 12 घंटे कार्य करते है, जिससे उनके स्वास्थ्य में कई बदलाव देखने को मिलते हैं। इस समय में व्यक्ति कार्यों को नियमित रूप से करने लगते है।
किसी भी कार्य की सफलता के लिए अनुशासन का पालन करना सबसे ज़रूरी आस्पेक्ट है। वे लोग जो समय पर कार्य शुरू करते है। उनकी टू डू लिस्ट रोज़ाना दिन ढ़लने तक कंप्लीट होने लगती है।
इस आठ घंटे की विंडो को सफल बनाने के लिए ज़रूरी कार्यों को पहले खत्म करने की कोशिश करें। इससे वर्किंग आवर्स को संतुलित करने में मदद मिलती है।
कार्यो का करने के लिए समय सीमा बांध लें। अधिकतर लोग परफेक्शन की तलाश में दिनभर में 1 से 2 टास्क ही पूरे कर पाते है, जिससे उनकी पूरी दिनचर्या हैंपर होने लगती है। हर कार्य के लिए टाइम लिमिट सेट कर लें।
काम के दौरान शरीर को रीएर्नजाइज़ करने के लिए छोटी छोटी ब्रेक्स लें। साथ ही पानी पीने, वॉक करने और लंच के लिए समय अवश्य निकालें।
ये वो समय होता है, जिसमें अधिकतर वक्त परिवार और बच्चों के साथ बीतता है। इसके अलावा पर्सनल विंडो में कुछ वक्त अपने लिए भी निकाला जाता है, जिससे सेल्फ ग्रोथ में मदद मिलती है।
व्यक्तिगत समय को कार्यों के आधार पर दिनों में विभाजित कर लें। इसके अनुसार इस बात को समझें कि किस दिन कौन सा कार्य करना आवश्यक है।
परिवार के सभी सदस्यो के साथ समय बिताएं और एक साथ डिनर करें। इससे मानसिक थकान कम होने लगती है और इमोशनल हेल्थ बूस्ट होती है।
उनके होमवर्क से लेकर क्लास एक्टीविटीज़ में अपना पार्टिसिपेशन बढ़ाएं। इससे बच्चों के साथ बॉन्डिंग बढ़ने लगती है। इससे कॉग्नीटिव ग्रोथ में मदद मिलती है।
खुद को एक्टिव और फिट रखने के लिए पर्सनल विंडो में कुछ वक्त वर्कआउट को दें। इससे शरीर के पोश्चर में सुधार आने लगता है और दिनभर बैठने से शरीर में बढ़ने वाली ऐंठन कम होने लगती है।
अपने लिए समय निकालें, जिसमें किताबें पढ़ना, घूमना और अपने आप को समय देना शामिल है। ऐसे में गैजेट्स से दूरी बनाकर रखें और मांइड को रिफ्रेश करें।
मेंटल हेल्थ को बूस्ट करने के लिए नींद पूरी करना आवश्यक है। व्यक्तिगत समय देने और काम के लिए आठ आठ घंटे निकालने के बाद बचे हुए आठ घंटे में भरपूर नींद लें।
सोने से एक घंटा पहले से ही फोन से दूरी बनाकर रखें। इसके अलावा गैजेट्स और मोबाइल को बंद करके रखें। इससे ब्लूलाइट के एक्सपोज़र से बचा जा सकता है।
सोने से पहले मन को शांत रखने के लिए मेडिटेशन करें और शोर से दूर रहें। इसके अलावा कमरे में अंधेरा करके सोने का प्रयास करें।
सोने के लिए एक नियमित समय को तय कर लें। इससे नींद की गुणवत्ता में सुधार आने लगता है और शरीर दिनभर एक्टिव और हेल्दी बना रहता है।
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