दिनों दिन बढ़ते वर्क प्रेशर के बीच माइंड एक प्रेशर कूकर के समान बनता जा रहा है, जो रात को सोते हुए पैनिक अटैक का शिकार हो सकता है। फिर चाहे वो बड़े बुजुर्ग हों या स्कूल जाने वाले बच्चे। छोटी-छोटी बातें और आसपास का नकारात्मक माहौल व्यक्ति के तन और मन को झंझोड़ कर रख देता है। लोगों में बढ़ने वाली एंग्ज़ाइटी (anxiety) को न सिर्फ पारिवारिक सदस्य, बल्कि उसके आसपास के लोग भी गंभीरता से नहीं लेते।
उनकी जुबां पर बस एक ही जवाब मिलता है, कोई बात नहीं अपने आप सब ठीक हो जाएंगा, बस थोड़ी टेंशन ज्यादा ले ली है। समझने वाली बात ये है कि ये चिंता कोई एक दिन की नहीं बल्कि दिमाग में दिनों दिन बढ़ती चली जाने वाली एक गंभीर समस्या है, जो देखते ही देखते व्यक्ति को मेंटल डिसऑर्डर का शिकार बना देती है। सबसे पहले जानते हैं कि मिड नाइट एंग्जाइटी (midnight anxiety) क्या है और इससे कैसे उबरा जा सकता है।
चिंता दैनिक जीवन के साथ साथ रात की नींद को भी प्रभावित करता है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के अनुसार नींद की कमी एंग्ज़ाइटी यानि चिंता का ट्रिगर प्वाइंट बन जाती है। दरअसल, मानसिक अस्वस्थता का शिकार लोग नींद में बाधा की शिकायत करते हैं, जिससे नींद का जोखिम बढ़ने लगता है।
इस बारे में डॉ आरती आनंद बताती हैं कि रात को सोते हुए अचानक से डरकर उठना, चिल्लाना और तेज़ी से पसीना बहना मिड नाइट एंग्ज़ाइटी अटैक या नॉक्चरनल पैनिक अटैक (nocturnal panic attack) कहलाता है। इस दौरान व्यक्ति सोते वक्त किसी भयानक सपना देखकर उठ जाता है। उसके बाद चेस्ट पेन और सांस न आने की समस्या का सामना करना पड़ता है। तनाव, चिंता और स्लीप पैटर्न में बदलाव इस समस्या का कारण बनता है।
जीवन में कई कारणों से बढ़ने वाला तनाव एंग्ज़ाइटी का कारण बनने लगता है। इसके चलते व्यक्ति दिन रात चिंतित रहता है और मिड नाइट पेनिक अटैक का शिकार बन जाता है।देर तक किसी विषय पर चिंतन करने से पैनिक अटैक की समस्या उत्पन्न हो जाती है। अटैक आने के बाद व्यक्ति धीरे धीरे शांत होता है और नींद की गुणवत्ता पर उसका प्रभाव दिखने लगता है।
स्लीप फाउंडेशन की रिपोर्ट के अनुसार पैनिक डिसऑर्डर एक ऐसी स्थिति है जिसमें व्यक्ति को बार. पैनिक अटैक झेलना पड़ता हैं। रिसर्च के मुताबिक पैनिक डिसऑर्डर वाले 71 फीसदी लोगों में पाया गया है कि उन्हें कम से कम एक बार रात में पैनिक अटैक आता है और वहीं पैनिक डिसऑर्डर वाले 18 फीसदी से 45 फीसदी लोगों को सोने के दौरान कई बार इस समस्या से दो चार होना पड़ता हैं।
वे लोग जो अपने जीवन में असहनीय मेंटल प्रेशर या किसी दर्दनाक से जूझते हैं, वे पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिस्ऑर्डर का शिकार कहलाते है। स्लीप फाउनडेशन के अनुसार इस समस्या से पीड़ित लोगों को सोने में परेशानी होती है और किसी पुरानी दर्दनाक घटना को लेकर भयानक सपनों का सामना करना पड़ता है। इसके चलते दिन और रात घबराहट और सिर चकराने का सामना करना पड़ता है।
सीबीटी एक साइकोथेरेपी यानि टॉक थेरेपी है। साकोलॉजिस्ट बातचीत के ज़रिए समस्या को समझकर पैनिक अटैक ट्रिगर्स की पहचान करने में मदद करते है। इससे मन में मौजूद डर, चिंता और हड़बड़ाहट को दूर किया जा सकता है। इसकी मदद से समय के साथ पैनिक अटैक को सीमित किया जा सकता है।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के अनुसार नाईट टाइम एंग्ज़ाइटी से निपटने के लिए रात को सोने से पहले और सुबह उठकर की गई एक्सरसाइज़ फायदा पहुंचाती है। इससे शरीर में थकान बढ़ने लगती है, जिससे स्लीपिंग हेबिट्स में भी सुधार आने लगता है। इससे रूटीन में करने से तनाव से बचा जा सकता है।
देर रात तक जगना शरीर में हार्मोन इंबैंलेस का कारण बन जाता है। ऐसे में सोने का समय निश्चित करें, जिससे नींद न आने की समस्या हल हो सकती है और माइंड रिलैकस रहता है। 8 से 10 घंटे सोने से स्लीप साइकिल बनी रहती है, जिससे नींद की गुणवत्ता में सुधार आने लगता है।
जो एंग्ज़दटी अटैक का शिकार है, उन्हें सोने से पहले कॉफी, चाय और अल्कोहल के सेवन से बचना चाहिए। इससे न केवल नींद में बाधा आने लगती है बल्कि एंग्ज़ाइटी का स्तर भी बढ़ने लगता है।
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