उम्र बढ़ने पर शरीर में कई हार्मोनल चेंज होते हैं। इसके कारण कई तरह की समस्या होती है। पीरियड्स बंद हो जाते हैं और महिलाओं के रिप्रोडक्टिव साइकिल में महत्वपूर्ण बदलाव आता है। इसे मेनोपॉज फेज कहा जाता है। यह फेज 40-50 वर्ष के बीच आता है। जबकि अर्ली मेनोपॉज इससे भी पहले शुरू हो सकता है। इसके कारण महिलाओं को कई सारी परेशानियां झेलनी पड़ती हैं। इसी के प्रति जागरुकता फैलाने के लिए हर वर्ष वर्ल्ड मेनोपॉज डे (World menopause day) मनाया जाता है। मेनोपॉज फेज में सबसे अधिक जो परेशानी होती है, वह है हॉट फ्लैशेज (Hot flashes)। इसके कारण कभी बहुत गर्मी लगने लगती है, तो कभी बहुत ठंडक। आमतौर पर हम मानते हैं कि गर्मी के दिनों में हॉट फ्लेशेज की समस्या अधिक होती है। विंटर सीजन में इससे राहत मिलेगी। पर ऐसा नहीं है, क्योंकि सर्दियों के दिनों में यह समस्या और भी ज्यादा परेशान कर सकती है। तो आइए एक्सपर्ट से जानें सर्द मौसम में हॉट फ्लैशेज को कंट्रोल (how to control hot flashes in menopause) करने के उपाय।
हर वर्ष 18 अक्टूबर को मेनोपॉज के प्रति जागरुकता बढ़ाने और महिलाओं के इस फेज को सपोर्ट करने के लिए वर्ल्ड मेनोपॉज डे मनाया जाता है। यह स्थिति महिलाओं के लिए काफी चुनौतीपूर्ण होती है। जिसमें उन्हें शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इनमें हॉट फ्लैश भी एक समस्या है। जिमसें बहुत ज्यादा गर्मी लगती है और चेहरे के साथ ही शरीर का ऊपरी हिस्सा पसीने में तर हो जाता है।
इसमें महिलाओं को अचानक बहुत अधिक गर्मी लगने लगती है, तो अचानक बहुत अधिक ठंड लगने लगती है। अब तक हम यह मानते आये थे कि गर्मी के मौसम में यह समस्या अधिक होती है, पर रिसर्च और विशेषज्ञ कुछ और कहते हैं।
सीनियर गायनेकोलोगिस्ट डॉ. कृतिका अवस्थी कहती हैं, ‘वास्तव में गर्मियों की तुलना में ठंड का मौसम हॉट फलैशेज के लिए अधिक जिम्मेदार हो सकता है। पर इसमें मुख्य भूमिका होी है ब्रेन के एक खास हिस्से की। इसे हाइपोथैलमस (Hypothalamus) कहा जाता है। ब्रेन का हाइपोथैलमस शरीर के तापमान को नियंत्रित करने के साथ-साथ शरीर के कई महत्वपूर्ण कार्यों को अंजाम देता है।
पर मेनोपॉज के दौरान जब शरीर में एस्ट्रोजन का स्तर कम हो जाता है, तब हाइपोथैलेमस का कार्य प्रभावित होने लगता है। जिससे उसके लिए शरीर के तापमान को सटीक रूप से मापना और उसे नियंत्रित करना कठिन हो जाता है। शरीर बहुत गर्म या बहुत ठंडा होता है, तो हाइपोथैलेमस शरीर को सामान्य तापमान पर लाने के लिए कोशिश शुरू करता है।
जब कोई महिला हॉट फ्लेशेज की समस्या से जूझ रही होती है, तो हाइपोथैलेमस गर्म शरीर को ठंडा करने की कोशिश करता है। यह तब स्किन की सतह के पास अधिक ब्लड भेजने लगता है। इससे गाल लाल हो जाते हैं और आप अधिक गर्माहट खासकर चेहरे पर महसूस करने लगती हैं।
अमेरिका के रिसर्चर सिओबन डी हार्लो, माइकल आर इलियट, इरीना बोंडारेंको, रेबेका सी थर्स्टन, एलिजाबेथ ए जैक्सन ने हॉट फ़्लैशेज पर मौसम के प्रभाव का अध्ययन किया। उन्होंने निष्कर्ष में यह बताया कि मौसम के कारण हॉट फ्लैशेज की समस्या 60 प्रतिशत तक बढ़ या घट सकती है। इसमें 955 प्रतिभागियों ने भाग लिया और बताया कि उन्होंने रजोनिवृत्ति के बाद पिछले 10 सालों में ठंड बढ़ने या घटने की स्थिति में हॉट फ़्लैशेज का अनुभव किया या नहीं।
शोधार्थियों ने इसके पीछे की वजह बताई कि सर्दियों में लोग पानी कम पीते हैं। इससे शरीर के डीहाइड्रेट होने की संभावना बढ़ जाती है। डिहाइड्रेशन से मेनोपॉज की समस्या भी बढ़ जाती है। इसमें हॉट फ्लैशेज भी शामिल हैं। इसके कारण निकलने वाला पसीना शरीर को और भी डिहाइड्रेट कर देता है। यह नर्वस सिस्टम पर भी प्रेशर डालता है, जो अधिक हॉट फ्लैशेज या रात में अधिक पसीना चलने को ट्रिगर कर सकता है।
डॉ. कृतिका बताती हैं कि कुछ उपायों के माध्यम से ठंड के महीनों में आप हॉट फ्लाशेज के लक्षणों को मैनेज कर सकती हैं
हॉट फ्लैशेज सहित मेनोपॉज संबंधी सभी समस्याएं डिहाइड्रेशन के कारण और भी ज्यादा बढ़ जाती हैं। जाड़े के मौसम में प्यास कम लगती है। लेकिन जरूरत नहीं होने के बावजूद समय-समय पर पानी पीती रहें।
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कस्टमाइज़ करेंएक साथ कई गर्म कपड़े नहीं डालें। ऐसे कपड़े पहनें, जिन्हें पहनने और उतारने में आसानी हो। गर्म कपड़ों के नीचे सूती टॉप जरूर डालें, ताकि स्किन को जरूरी ठंडी हवा मिलती रहे।
बिस्तर पर जाने की तैयारी कर रही हैं, तो बहुत अधिक कपड़े पहनने की बजाय कुछ हल्का और हवा अंदर-बाहर जाने योग्य कपड़े पहनें। बेड रूम को नार्मल टेम्परेचर पर रखने की कोशिश करें। रूम हीटर कम चलायें, ताकि स्किन ड्राई नहीं हो जाये।
हलके कंबल या रजाई डालें, ताकि हॉट फ़्लैशेज होने और रात को पसीना निकलने पर उन्हें शरीर से हटाना आसान हो।
अक्सर हम अपने ऊपर कई सारी जिम्मेदारियां और वर्क लोड डाल लेते हैं। मेनोपॉज सम्बन्धी सभी परेशानियां तनाव अधिक होने पर बढ़ जाती हैं। इसलिए तनाव नहीं होने दें।
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