Nyctophobia: क्या आपको भी अंधेरे से डर लगता है? ये हो सकते हैं निक्टोफोबिया के संकेत

आमतौर पर बच्चे अंधेरे से डरते है, मगर कुछ लोगों में उम्र के साथ ये समस्या भी बढ़ने लगती है। इस समस्या को निक्टोफोबिया कहा जाता है। जानते हैं निक्टोफोबिया क्या है और इससे निपटने के लिए टिप्स
Nyctophobia ke kya kaaran hain
फियर ऑफ डार्कनेस से नींद न आने की समस्या बढ़ने लगती है। इसके अलावा सोचने और समझने के नज़रिए में भी परिवर्तन आने लगता है।
ज्योति सोही Published: 13 Aug 2024, 08:00 pm IST
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कुछ लोगों को जहां अकेले रहने से डर लगता है, तो कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिनके लिए अंधेरा खौफ का कारण बनने लगता है। रात के अंधेरें मे अकेले (Fear of darkness) बाहर निकलने से उन्हें डर का सामना करना पड़ता है। आमतौर पर बच्चे अंधेरे से डरते है, मगर कुछ लोगों में उम्र के साथ ये समस्या भी बढ़ने लगती है। इस समस्या को निक्टोफोबिया (Nyctophobia) कहा जाता है। जानते हैं निक्टोफोबिया (Nyctophobia) क्या है और इससे निपटने के लिए किन टिप्स को फॉलो करें।

जानते हैं निक्टोफोबिया क्या है (What is nyctophobia)

इस बारे में डॉ युवराज पंत बताते हैं कि निक्टोफोबिया एक एंग्जाइटी डिसऑर्डर है, जिसे फोबिया ओसीडी यानि ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर (obsessive compulsive disorder) कहा जाता है। अधिकतर बच्चों में पाई जाने वाली इस समस्या के चलते व्यवहार में डर की भावना बढ़ जाती है। फियर ऑफ डार्कनेस (fear of darkness) से नींद न आने की समस्या बढ़ने लगती है। इसके अलावा सोचने और समझने के नज़रिए में भी परिवर्तन आने लगता है। अधिकतर बच्चे सोते वक्त नाइटलाइट का भी इस्तेमाल करते हैं, तो आदत एडल्टहुड में भी बनी रहती है।

जर्नल ऑफ सायकॉलोजिकल रसिर्च के अनुसार अधिकतर 6 से लेकर 12 वर्ष की उम्र के बच्चों में अंधेरे से डर लगने की समस्या (causes of the fear of darkness) बनी रहती है। बढ़ती उम्र के साथ अधिकतर लोगों को फोबिया का सामना करना पड़ता है। इससे उनके डेली रूटीन और स्लीन पैटर्न पर भी प्रभाव नज़र आने लगता है। ऐसे लोगों को अंधेरे में रहने से चेस्ट टाइटनेस, ब्रीदिंग प्रॉबल्म, स्वैटिंग और हार्ट रेट बढ़ने का खतरा बना रहता है।

Nyctophobia ke kaaran
अधिकतर बच्चे सोते वक्त नाइटलाइट का भी इस्तेमाल करते हैं, तो आदत एडल्टहुड में भी बनी रहती है। चित्र : अडोबी स्टॉक

जानें निक्टोफोबिया के लक्षण

  • इस समस्या से ग्रस्त लोग रात के अंधेरे में अकेले जाने से कतराते है और रात को डिम लाईट में सोना पसंद करते हैं।
  • अंधेरे का सामना करते ही छाती में भारापन महसूस होने लगता है और सिरदर्द का सामना करना पड़ता है।
  • वे लोग जिन्हें अंधेरे से फोबिया है, उन्हें डर के कारण बार बार पसीना आने लगता है।
  • ऐसे लोग अंधेरे में जाते ही ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने लगते हैं और रोने लगते हैं।
  • इसका असर नींद पर भी दिखने लगता है। अकेले सोने से कतराने लगते हैं

इस समस्या से बाहर निकलने के लिए इन टिप्स को करें फॉलो

1. एक्सपोजर थेरेपी (Exposure therapy)

वे लोग जिन्हें अंधेरे से डर लगता है, उन्हें अंधेरे कमरे में किसी व्यक्ति की सुपरविजन में कुछ वक्त बिताने के लिए अकेले छोड़ा जाता है। डार्कनेस की प्रैक्टिस करवाने से नींद न आने की समस्या हल हो जाती है और निक्टोफोबिया से राहत मिलती है। इसके लिए कमरे में लाइट्स का एक्सपोज़र कम रखकर थेरेपी की शुरूआत की जाती है और फिर धीरे धीरे अंधेरे से लगने वाला डर कम होने लगता है।

2. फ्लडिंग थेरेपी (Flooding therapy)

ये एक बिहेवियरल थेरेपी होता है, जिसमें डर के कारण बढ़ने वाली उत्तेजना पर काबू पाकर अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने की तकनीक सिखाई जाती है। इसमें एंग्जाइटी के लेवल को कम करके शरीर को रिलैक्स रखने पर फोकस किया जाता है। इस थेरेपी में आंखे बंद करके अपने मन में उठने वाले विचारों को नियंत्रित करने का प्रयास किया जाता है।

3. सिस्टमेटिक डिसेन्सिटाइजेशन (Systematic desensitization)

सिस्टमेटिक डिसेन्सिटाइजेशन एक रिलैक्सेशन तकनीक है, जिसमें फोबिया से बढ़ने वाली एंग्ज़ाइटी को दूर करन के लिए कई स्टेप्स होते हैं। इसमें सबसे पहले अपने डर की सूची तैयार की जाती है। उसके बाद मैनेजेबल फियर को रिलैक्सेशन तकनीक के माध्यम से दूर किया जाता है। डीप ब्रीदिंग, मसल्स रिलैक्सेशन और विज्युलइजेशन के ज़रिए डर को दूर करने में मदद मिलती है। इसके अलावा मेडिटेशन से अवेयरनेस और अटेंशन बढ़ने लगती है।

mindfulness darr dur krne mei madad karte hain
डीप ब्रीदिंग, मसल्स रिलैक्सेशन और विज्युलइजेशन के ज़रिए डर को दूर करने में मदद मिलती है। चित्र : अडोबी स्टॉक

4. कॉग्नेटिव बिहेवरल थेरेपी (Cognitive behavioral therapy)

संज्ञानात्मक व्यवहार थेरेपी यानि कॉग्नेटिव बिहेवरल थेरेपी की मदद से भी अंधेरे के कारण लगने वाले डर को निंयत्रित किया जाता है। इसे सीबीटी थेरेपी या टॉक थेरेपी भी कहा जाता है। वातचीत के ज़रिए ओवरथिकिंग को नियंत्रित करके नकारात्मक विचारों को काबू किया जाता है। साथ ही गोल सेंटिंग में मदद मिलती है।

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लेखक के बारे में

लंबे समय तक प्रिंट और टीवी के लिए काम कर चुकी ज्योति सोही अब डिजिटल कंटेंट राइटिंग में सक्रिय हैं। ब्यूटी, फूड्स, वेलनेस और रिलेशनशिप उनके पसंदीदा ज़ोनर हैं। ...और पढ़ें

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