बोर्ड एग्जाम सिर पर हैं। इसके कारण न सिर्फ बच्चे, बल्कि पेरेंट्स भी तनाव में हैं। उन्हें रात में सोते समय भी चिंता (Anxiety) बनी रहती है। बच्चे 90 प्रतिशत से ज्यादा नंबर ला पाएंगे या नहीं। अच्छे कॉलेज में एडमिशन हो पायेगा या नहीं। इसी तरह की कई और तरह की चिंता लोगों को तनाव में डाल सकती हैं। एक्सपर्ट बताते हैं कि कुछ एंग्जाइटी सामान्य होते हैं। ये समय के साथ खत्म हो जाते हैं। वहीं दूसरी तरफ कुछ एंग्जाइटी असमान्य होते हैं। जिन्हें खुद से खत्म करने का प्रयास करना पड़ता है। एंग्जाइटी को कैसे दूर किया (How to fight anxiety) जा सकता है, इसके लिए हमने बात की सीनियर साइकोलोजिस्ट और मनस्थली की फाउंडर डॉ. ज्योति कपूर से।
कई बार सार्वजनिक रूप से बोलने से पहले एंग्जाइटी हो जाती है।परीक्षा देने जैसी तनावपूर्ण स्थितियों में भी एंग्जाइटी हो सकती है। ये सामान्य हो सकती है। लेकिन कई बार जब भावनाओं का प्रभाव बहुत अधिक हो जाता है, तो एंग्जाइटी की समस्या हो जाती है। यह किसी गंभीर बीमारी का भी संकेतक हो सकता है। इसके कारण दैनिक जीवन भी प्रभावित होने लगता है। इसके कारण घर और ऑफिस दोनों स्थान पर कामकाज पर प्रभाव पड़ने लगता है।
बचपन, किशोरावस्था या एडल्ट एज में कठिन अनुभव हो सकते हैं। येइन अनुभवों का मन पर गहरा असर पड़ता है। ये एंग्जाइटी की समस्या को ट्रिगर कर सकते हैं। बचपन में जब उम्र काफी कम होती है, तो तनाव और आघात से गुज़रने का विशेष रूप से प्रभाव पड़ने की संभावना अधिक होती है। शारीरिक या भावनात्मक शोषण भी एंग्जाइटी की समस्या को ट्रिगर कर सकते हैं। एंग्जाइटी के साथ जीना बहुत मुश्किल हो सकता है। इसलिए ऐसे उपाय करना जरूरी है, जो एंग्जाइटी को दूर करने में मदद कर सके।
डॉ. ज्योति कहती हैं, ‘शारीरिक रूप से सक्रिय नहीं होने का सबसे अधिक प्रभाव हमारे मस्तिष्क पर पड़ता है। शारीरिक गतिविधि आपको भावनात्मक रूप से बेहतर महसूस करने में मदद करते हैं। क्योंकि यह एंडोर्फिन और सेरोटोनिन हॉर्मोन के स्तर को बढ़ाती है। जब आप अंदर से बेहतर महसूस करती हैं, तो आपका सोचने का तरीका बदल जाता है। आपके पूरे नजरिए में सुधार हो जाता है।
डॉ. ज्योति के अनुसार, कैफीन तंत्रिका तंत्र (Nervous System) को पुश करता है। यह ऊर्जा के स्तर को बढ़ा सकता है।
वहीं व्यक्ति जब दबाव में होता है, तो यह नर्वस एनर्जी एंग्जाइटी के लेवल को बढ़ा सकता है।
ठीक से काम करने के लिए हम सभी को अच्छी नींद की जरूरत होती है। सोने से पहले अपने दिमाग को आराम दें। इसके लिए कोई हल्की-फुलकी किताब पढ़ने या माइंड को रिलैक्स करने वाले कुछ काम करें। इस तरह की आदत विकसित करें और अपने सोने के कार्यक्रम में जोड़ें। रात को अच्छी नींद लेने के लिए आप जितने बेहतर तरीके से तैयार होंगी, आपको उतनी ही अच्छी नींद मिलेगी।
अक्सर जब हम तनावग्रस्त होते हैं और एंग्जाइटी से प्रभावित होते हैं, तो खाने का मन नहीं करता है। हम जैसे-तैसे और कुछ भी खा लेते हैं। डॉ. ज्योति कहती हैं, ‘कभी भी खान-पान को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए।
कभी-कभी भूखे रहने और आहार में पोषक तत्वों की कमी से भी नींद नहीं आती है। वहीं ज्यादा खा लेने पर भी साउंड स्लीप नहीं हो पाता है। भोजन हमेशा संतुलित रूप में लेना चाहिए। अपने आहार में अधिक लीन प्रोटीन(Lean Protein), फल, सब्जियां और स्वस्थ वसा (Healthy Fat) शामिल करें।’
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