लिवर में सूजन होने को हेपेटाइटिस कहा जाता है। यह तब होता है जब हमारा शरीर अलग-अलग प्रकार की चोटों या इंफेक्शन, जिसमें टॉक्सिक रसायनों के संपर्क में आना भी शामिल है, वायरल इंफेक्शन, और पित्त प्रवाह संबंधी परेशानियों पर रिस्पॉन्स देता है। यह सूजन कम अवधि (Acute) या दीर्घकालिक (Chronic) अवधि के लिए हो सकती है। एक्यूट हेपेटाइटिस (Acute hepatitis) शरीर में पैदा होने वाली अधिक गंभीर किस्म की समस्याओं का परिणाम होता है। जबकि क्रोनिक हेपेटाइटिस (Chronic Hepatitis) की वजह लगातार बनी रहने वाली परेशानियां होती हैं। मगर ये लाइलाज नहीं हैं। समय रहते लक्षणों को पहचानना और सही निदान हेपेटाइटिस के उपचार (Hepatitis treatment) को आसान बना सकते हैं।
शुरू में, हेपेटाइटिस के कोई खास लक्षण दिखायी नहीं देते। जब लक्षण दिखायी देते हैं, तो पेट के ऊपरी भाग में दर्द (खासतौर से दायीं तरफ), मितली, भूख में कमी, थकान और बुखार (खासतौर से वायरल इंफेक्शन के साथ) जैसे लक्षण दिखायी देते हैं।
कई बार गंभीर या पुराने मामलों में, जॉन्डिस (आंखों एवं त्वचा में पीलापन) बढ़ जाता है, पेशाब का रंग गाढ़ा हो जाता है, मल का रंग हल्का, प्रूरिटस (त्वचा में खुजली), और हेपेटिक एंसेफेलोपैथी (भ्रम होना, ओरिएंटेशन की समस्या, या उनींदेपन की समस्या) जैसे लक्षण भी दिखायी देते हैं।
हेपेटाइटिस कई स्रोतों से हो सकता है, और यह एक्यूट या क्रोनिक इंफ्लेमेशन में बदल सकता है। इसके सामान्य कारणों में निम्न शामिल हैः
हेपेटाइटिस ए (एक्यूट), हेपेटाइटिस बी (शुररू में एक्यूट, जो क्रोनिक में बदल सकता है), हेपेटाइटिस सी (प्रायः क्रोनिक), हेपेटाइटिस डी (यह हेपेटाइटिस बी से ग्रस्त मरीजों को होता है और क्रोनिक बन सकता है), तथा हेपेटाइटिस ई (एक्यूट) जैसे वायरस हमारे लिवर में सूजन का कारण बन सकते हैं।
यह इंडस्ट्रियल केमिकल्स के संपर्क में आने, एनएसएआईडीएस जैसी ओवर द काउंटर दवाओं के अधिक सेवन या एसिटामिनोफेन, प्रेस्क्रिप्शन ड्रग्स, रिक्रिएशनल ड्रग्स, के अधिक सेवन और कुछ खास किस्म की हर्ब तथा सप्लीमेंट्स भी लिवर को नुकसान पहुंचा सकती हैं।
हेवी और बिंज ड्रिंकिंग के कारण भी हेपेटाइटिस हो सकता है। लिवर में चर्बी का जमाव (फैटी लिवर) होने से भी सूजन पैदा हो सकती है।
यह कंडीशन इम्यून सिस्टम द्वारा गलती से लिवर टिश्यू पर हमला करने के कारण पैदा होती है।
वायरल हेपेटाइटिस संक्रामक होता है और यह दूषित भोजन, पानी, ब्लड, तथा बॉडी फ्लूड्स के जरिए फैल सकता है। हेपेटाइटिस के अन्य प्रकार संक्रामक नहीं होते।
हेल्थकेयर प्रदाता हेपेटाइटिस रोग का निदान और इसके कारणों का पता लगाने के लिए कई विधियों का प्रयोग करते हैंः
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कस्टमाइज़ करेंब्लड टेस्ट से लिवर द्वारा उत्पन्न पदार्थों की जांच की जाती है और उनकी अधिक मात्रा लिवर स्ट्रैस का इशारा होती है। ये टेस्ट ALT (एलानाइन एमिनोट्रांसफरेस) और AST (एस्पारटेट एमिनोट्रांसफरेस), ALP (एल्केलाइन फॉस्फेटेस), GGT (गामा ग्लूटामाइल ट्रांसफरेस) जैसे एंज़ाइम्स की जांच करते हैं जो आमतौर पर लिवर में सूजन होने या उसे किसी प्रकार की क्षति पहुंचने पर अधिक बनते हैं।
इमेजिंग तकनीकें जैसे अल्ट्रासाउंड, एमआरआई, या सीटी स्कैन से यह पता लगाया जाता है कि लिवर को कितना नुकसान पहुंच चुका है और उसमें किस प्रकार की संरचना संबंधी समस्याएं हैं।
कुछ विशिष्ट टेस्ट वायरल एंटीजेन तथा एंटीबडीज़ का पता लगाते हैं जिनसे हेपेटाइटिस ए, बी, सी, डी और ई को डायग्नॉस किया जाता है।
इस आसान प्रक्रिया में एक सुई से लिवर का एक टिश्यू सैंपल लिया जाता है। लिवर बायप्सी से लिवर कंडीशन की विस्तृत जानकारी, उसमें कितनी सूजन है, फाइब्रॉसिस है या नहीं, तथा किसी अन्य रोग के मौजूद होने की पुष्टि होती है।
इस नॉन इन्वेसिव टेस्ट से लिवर की कसावट की जांच की जाती है ताकि फाइब्रोसिस और सिरोसिस का पता लगाया जा सके। यह इलास्टोग्राफी टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर लिवर हेल्थ की तत्काल और दर्दरहित तरीके से जांच करता है।
अल्कोहल का सेवन कम करें, टॉक्सिंस से बचें, और स्वास्थ्यवर्धक खुराक लें तथा लिवर स्ट्रैस घटाने के लिए नियमित व्यायाम करें। इसके अलावा, मेटाबोलिक फैक्टर्स जैसे ब्लड लिपिड्स और ब्लड शूगर को भी मैनेज करना जरूरी है। रेग्युलर एक्सरसाइज़, वेट मैनेजमेंट तथा लिवर को नुकसान पहुंचाने वाले पदार्थों के सेवन से बचना भी लाइफस्टाइल में सुधार की दृष्टि से जरूरी है।
कुछ खास क्रोनिक हेपेटाइटिस का इलाज दवाओं से भी किया जा सकता है। एंटीवायरल ड्रग से क्रोनिक हेपेटाइटिस सी का इलाज किया जाता है जबकि क्रोनिक हेपेटाइटिस बी के लिए आजीवन एंटीवायरल थेरेपी लेने की जरूरत होती है। ऑटोइम्यून हेपेटाइटिस के लिए इम्यूनोसप्रेसेंट्स लिए जाते हैं और दवाओं का सेवन भी लक्षणों से राहत तथा लिवर को और नुकसान पहुंचने से बचाने के लिए किया जाता है।
लक्षणों को मैनेज करने से लेकर जटिलताओं से बचाव के लिए उपचार उपलब्ध है। कुछ गंभीर मामलों में, लिवर ट्रांसप्लांटेशन भी जरूरी होता है। शुरुआत में ही डायग्नॉसिस और इंटरवेंशन से लक्षणों से कारगर तरीके से निपटने में मदद मिलती है और रोग को भी अधिक गंभीर होने से बचा जा सकता है।
लिवर हेल्थ के लिए सही न्यूट्रिशन बेहद जरूरी होता है। फलों, सब्जियों, साबुत अनाज और लीन प्रोटीनयुक्त संतुलित खुराक से लिवर फंक्शन को सपोर्ट मिलता है। अधिक फैट, शूगर और प्रोसेस्ड फूड्स के सेवन से बचें ताकि लिवर स्ट्रैस कम हो।
अधिक लिवर डैमेज होने या लिवर फेल होने के मामलों में, लिवर ट्रांसप्लांट कराना जरूरी होता है। ऐसे में क्षतिग्रस्त लिवर की जगह किसी डोनर से हेल्दी लिवर लेकर ट्रांसप्लांट किया जाता है।
चलते-चलते
हेपेटाइटिस से बचाव के लिए वैक्सीनेशन (हेपेटाइटिस ए एवं बी के लिए), स्वच्छता, अल्कोहल का सीमित मात्रा में सेवन, और उपयुक्त दवाओं का सेवन जरूरी होता है। वैक्सीनेशन प्रोग्राम खासतौर से उन इलाकों में महत्वपूर्ण होते हैं जहां हेपेटाइटिस ए एवं बी का प्रकोप होता है। साफ-सफाई का पालन करें, जैसे हाथ धोएं और स्वच्छ, संतुलित भोजन लें ताकि इंफेक्शंस से बचाव हो सके।
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