जेस्टेशनल डायबिटीज का अर्थ है गर्भावस्था के दौरान महिलाओं में होने वाली डायबिटीज। प्रेगनेंट महिलाओं में ब्लड शुगर लेवल (blood sugar level) बढ़ जाता है, और जब वे निर्धारित सीमा क्रॉस कर लेता है, तो उसे “जेस्टेशनल डायबिटीज” (Gestational diabetes) का नाम दिया जाता है। गर्भावस्था की स्थिति में महिलाओं के शरीर में कई सारे बदलाव आते हैं। विशेष रूप से शरीर में हार्मोनल उतार-चढ़ाव होता रहता है। हार्मोनल उतार-चढ़ाव (hormonal imbalance) की वजह से महिलाओं को कई सारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है और जेस्टेशनल डायबिटीज भी इन्हीं समस्याओं में से एक है।
यदि प्रेगनेंसी (pregnancy) के दौरान महिलाएं ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित रखने में असमर्थ होती हैं, तो बच्चों में टाइप टू डायबिटीज का खतरा बढ़ जाता है। इसलिए सभी महिलाओं को जेस्टेशनल डायबिटीज के मैनेजमेंट टिप्स मालूम होने चाहिए।
मदरहुड हॉस्पिटल खारघर में कंसल्टेंट ऑब्सटेट्रिशियन और गाइनीकोलॉजिस्ट डॉ प्रतिमा थामके ने जेस्टेशनल डायबिटीज से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी दी है। उन्होंने सबसे पहले इसके कारण बताए हैं, साथ ही उन्होंने इसे मैनेज करने के कुछ जरूरी टिप्स भी दिए हैं। तो चलिए जानते हैं, आखिर जेस्टेशनल डायबिटीज को कैसे करना है मैनेज (how to manage Gestational diabetes)।
जेस्टेशनल डायबिटीज गर्भावस्था के दौरान महिलाओं को प्रभावित करती है। प्लेसेंटा वह अंग जो भ्रूण को पानी और पोषक तत्व पहुंचाता है, यह ऐसे हार्मोन का उत्पादन करता है, जो गर्भवती महिलाओं में इंसुलिन को प्रभावी ढंग से उपयोग करने की क्षमता को बाधित करता है। इस प्रकार महिलाओं में प्रेगनेंसी के दौरान डायबिटीज का खतरा बढ़ जाता है।
जब गर्भवती महिला का शरीर गर्भावस्था की अतिरिक्त ज़रूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त इंसुलिन का उत्पादन नहीं कर पाता, तब जेस्टेशनल डायबिटीज होती है।
इंसुलिन एक हार्मोन है, जो शरीर को सेल्स के उपयोग के लिए ग्लूकोज को ऊर्जा में बदलने में मदद करता है। गर्भावस्था के दौरान, शरीर कई बदलावों से गुजर रहा होता है, जिसमें वजन बढ़ना और हार्मोन का अधिक उत्पादन शामिल है। ये सभी शारीरिक बदलाव शरीर के लिए इंसुलिन का उपयोग करना कठिन बना देते हैं। इस स्थिति को इंसुलिन प्रतिरोध यानी कि इन्सुलिन रेजिस्टेंस (insulin resistance) कहा जाता है।
जेस्टेशनल डायबिटीज को नियंत्रित करने में आहार का एक सबसे महत्वपूर्ण रोल होता है। यदि आपको जेस्टेशनल डायबिटीज है, तो आपको कुछ ऐसे खाद्य पदार्थ चुनने होंगे जिससे आपका ब्लड शुगर लेवल न बढ़े। हर दिन नियमित अंतराल पर खाएं। यदि आप अपनी डाइट योजना को पहले से तैयार रखें, तो यह आपके लिए चीजों को आसान बना देगा।
वीकली डाइट प्लान बनाएं, और पहले से ही स्नैक्स तैयार करने का प्रयास करें। जेस्टेशनल डायबिटीज के अनुकूल खाद्य पदार्थ को अपने आसपास रखें, जैसे की होममेड हेल्दी स्नैक्स, लो कैलोरी डायट, फ्रेश फल और सब्जियां आदि। इस प्रकार आप आवश्यकता पड़ने पर हेल्दी खाद्य पदार्थों का सेवन करती हैं।
नियमित एक्सरसाइज से आपकी बॉडी अधिक से अधिक ग्लूकोज का प्रयोग करती है, जो बढ़ते ब्लड शुगर को कम करने में मदद करते हैं। भोजन के बाद टहलने से जेस्टेशनल डायबिटीज़ को मैनेज करने में काफी मदद मिलती है। इसके अलावा प्रेगनेंसी के अनुकूल शारीरिक गतिविधियों में भाग लें। वहीं यदि प्रॉपर वर्कआउट और एक्सरसाइज करना चाहती हैं, तो इसकी शुरुआत करने से पहले डॉक्टर की सलाह लेना जरूरी है।
जेस्टेशनल डायबिटीज को अनदेखा करना आपकी सबसे बड़ी भूल हो सकती है। यह सलाह दी जाती है कि आप रोजाना दो बार अपने ब्लड शुगर लेवल की जांच करें, ताकि इस पर सही निगरानी रखी जा सके। रक्त शर्करा परीक्षण से यह पता लगाने में मदद मिल सकती है, कि आपका शरीर खाद्य पदार्थों, भोजन के समय और व्यायाम के प्रति कैसी प्रतिक्रिया करता है। इससे आपको अपने आहार और गतिविधि को बेहतर तरीके से समायोजित करने में मदद मिल सकती है।
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नोट:
प्रेग्नेंट महिलाओं को ब्लड शुगर की जांच ब्रेकफास्ट से पहले करनी चाहिए, या खाने के 1 घंटे बाद।
नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ हेल्थ के अनुसार खाने के पहले, रात को सोने से पहले या आधी रात को आपका ब्लड शुगर लेवल 90 mg/dl से कम होना चाहिए। वहीं खाने के 1 घंटे के बाद आपका ब्लड शुगर लेवल 140 mg/dl से अधिक नहीं होना चाहिए, और खाने के दो घंटे के बाद 120 mg/dl के अंदर होना चाहिए।
जीवन के हर चरण में अच्छे स्वास्थ्य के लिए नींद महत्वपूर्ण है, और गर्भावस्था भी इन्हीं में से एक है। पर्याप्त आराम करने और नींद लेने से से आपके शरीर को जागते समय अधिक ऊर्जा मिलती है, और आप सभी शारीरिक गतिविधियों को प्रभावी रूप से परफॉर्म कर पाती हैं। यदि नींद नहीं आती है, किसी प्रकार की परेशानी है, तो सबसे पहले स्लीप हाइजीन में सुधार करें। उसके बाद भी यदि समस्या बनी रहती है, तो अपने डॉक्टर से संपर्क करें।
आप कितने घंटे काम कर पाएंगी, आपको किस समय कैसा आहार चाहिए, इसके बारे में अपने परिवार और कार्यस्थल पर लाेगों से बात करें। जब आप अपनी सेहत और स्थिति के बारे में अपने आसपास के सहयोगियों से बात करती हैं, तो कई समस्याओं का हल हो सकता है।
अपने पार्टनर और परिवार के अन्य सदस्यों से बात करें कि आपकी नई आहार संबंधी ज़रूरतें क्या हैं, ताकि वे आपके द्वारा किए जा रहे बदलावों को समझें और उन्हें प्रभावी ढंग से फॉलो करने में आपकी मदद करें। जब आपके परिवार को आपकी ज़रूरतें मालूम होती है, तो वे अपनी तरफ से भी आपकी सेहत के प्रति सचेत रहते हैं। इस प्रकार आप अपनी इस जर्नी को आसान बना सकती हैं।
गर्भावस्था के दौरान डायबिटीज को मैनेज करने के लिए कई बार महिलाओं को इंसुलिन की आवश्यकता पड़ती है। हालांकि, इंसुलिन कभी भी खुद से शुरू नहीं करना चाहिए। इसके पहले डॉक्टर से जांच करवाना अनिवार्य है, ताकि प्रेगनेंसी में किसी प्रकार की कॉम्प्लिकेशंस न आए। यदि डॉक्टर ने इंसुलिन प्रिसक्राइब किया है, तो इसे जरूर लें, ताकि ब्लड शुगर लेवल को कंट्रोल करना आसान हो जाए। इस प्रकार आप अपनी और अपने बच्चे दोनों की सेहत को सुरक्षित रख सकती हैं।
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