ज्यादा वर्कलोड के चलते नींद का आना स्वाभाविक है, जिससे मस्तिष्क रिलैक्स हो जाता है और शरीर में एनर्जी के स्तर में सुधार आने लगता है। मगर रातभर सोने के बाद भी कुछ लोगों को दिन में नींद की समस्या का सामना करना पड़ता है। हर वक्त थकान, आलस्य और नींद आने के चलते उसका प्रभाव दिनचर्या पर दिखने लगता है, जिससे कार्यक्षमता प्रभावित होने लगती है। इससे वे किसी कार्य को उचित प्रकार से नहीं कर पाते हैं। जानते हैं किन कारणों से लोगों को दिन में नींद की समस्या का सामना करना पड़ता है (sleepiness during daytime) ।
जर्नल ऑफ स्लीप मेडिसिन के अनुसार वे लोग जो दिन में बार- बार नींद (sleepiness) का अनुभव करते हैं, उनमें हाईपरसोमनिया, पार्किंसंस डिजीज़ और हृदय रोगों की संभावना रहती है। इसके अलावा रेस्टलेस लेग सिंड्रोम के चलते भी नींद की समस्या बढ़ने लगती है। वे लोग जो तनाव, डिप्रेशन और एंग्ज़ाइटी से ग्रस्त रहते है, उनमें डे टाइम स्लीपीनेस के मामले पाए जाते हैं।
अमेरिकन साइकॉलोजी एसोसिएशन के अनुसार वे लोग जो रात में पूरी नींद नहीं ले पाते यानि नींद की गुणवत्ता कम रहती है, उन्हें दिनभर नींद की समस्या का सामना करना पड़ता है। इससे इनसोमनिया और स्लीप फ्रेगमेंटेशन का रिस्क बढ़ने लगता है।
इस बारे में कंसल्टेंट, पल्मोनरी मेडिसिन डिपार्टमेंट, डॉ पुजन पारिख बताते हैं कि आयरन की कमी पीरियोडिक लिंब मूवमेंट यानि पीएलएमडी का कारण बनने लगती है, जिससे नींद की समस्या बढ़ जाती है। इसमें रोगियों को शाम और रात के पैर में दर्द होता है जो नींद के दौरान होता है और नींद की समस्याओं का कारण बनता है। आयरन की कमी में रात में नींद पूरी न हो पाने के चलते दिनभर नींद की समस्या (sleepiness) से दो चार होना पड़ता है।
शरीर में ब्लड का सर्कुलेशन नियमित न हो पाने से लो ब्लड प्रेशर का सामना करना पड़ता है। रक्त प्रवाह उचित न होने से शरीर के सभी अंगों को ऑक्सीजन की उचित मात्रा नहीं मिल पाती है। इसके चलते थकान और नींद का सामना करना पड़ता है। इस दौरान आलस्य, बेहोशी और ब्लर विज़न की समस्या भी बढ़ जाती है।
हाइपोथायरायडिज्म नींद की समस्या का कारण साबित होता है। इस समस्या से ग्रस्त लोगों को नींद के दौरान जोड़ों या मांसपेशियों में दर्द बढ़ने लगता है। हाइपोथायरायडिज्म से ग्रस्त लोग दिन में भी बेहद नींद महसूस करते हैं। इस स्थिति को हाइपरसोमनिया भी कहा जाता है।
अमेरिकन साइकॉलोजिकल एसोसिएशन के अनुसार तनाव के कारण स्लीप पैटर्न (sleep pattern) में बदलाव आने लगता है। इससे ग्रस्त व्यक्ति के शरीर में तनाव हार्मोन रिलीज़ होने लगता है, जिससे व्यक्ति थकान महसूस करता है और नींद की गुणवत्ता घटने लगती है। जर्नल ऑफ स्लीप मेडिसिन के मुताबिक तनाव का बढ़ता स्तर इनसोमनिया के स्तर को भी बढ़ाता है। इससे ग्रस्त व्यक्ति डिप्रेस्ड और रेस्टलेस फील करने लगता है।
हेल्दी डाइट लेने से शरीर में सभी पोषक तत्वों की कमी को पूरा किया जा सकता है और शरीर एक्टिव व हेल्दी बना रहता है।
स्लीप पैटर्न को फॉलो करने से सोने और उठने का समय तय हो जाता है, जिससे शरीर कई तरह की स्वास्थ्य संबधी समस्याओं से बच जाता है।
दिन की शुरूआत एक्सरसाइज़ से करें। कुछ देर की वॉक और एक्सरसाइज़ मेंटल हेल्थ को बूस्ट कर शरीर में हैप्पी हार्मोन को रिलीज़ करने में मदद करती है।
शरीर को हाइड्रेट रखें और शरीर की आवश्यकता के अनुसार पानी पीएं। इससे शरीर में ऑक्सीजन का स्तर उचित बना रहता है।
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