उम्र के साथ शरीर में थकान बढ़ने लगती है और रात की नींद कम हो जाती है। अक्सर रात में भरपूर नींद न ले पाने के कारण सिरदर्द और दिन में बार बार नींद की झपकी का सामना करना पड़ता है। आमतौर पर घर में बड़े बुजुर्ग दिन के वक्त कुछ वक्त के लिए अवश्य सोते हैं। मगर क्या ये पूरी तरह से सामान्य है। बढ़ती उम्र में अगर आपको भी डे टाइम में थकान और नींद का सामना करना पड़ रहा है, तो ये डिमेंशिया का शुरूआत लक्षण भी हो सकता है। जानते हैं डिमेंशिया के कुछ और संकेत और इससे बचने के उपाय (tips to deal with dementia) ।
अमेरिकन एकेडमी ऑफ न्यूरोलॉजी के मेडिकल जर्नल न्यूरोलॉजी में प्रकाशित एक नए अध्ययन के अनुसार, जो वृद्ध लोग दिन में अत्यधिक नींद लेते हैं या जिन्हें नींद से संबंधित गंभीर समस्याएं होती हैं। उनमें मोटरिक कॉग्निटिव रिस्क सिंड्रोम (Motoric cognitive risk syndrome) यानि एमसीआर का जोखिम बढ़ जाता है, जो प्री-डिमेंशिया का जोखिम बढ़ा सकता है।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के अनुसार 2019 की रिसर्च के अनुसार वे लोग जो एलबीडी यानि लेवी बॉडी डिमेंशिया के शिकार हैं। उनमें अन्य लोगों की तुलना में दिन में नींद आने की संभावना दोगुनी से भी ज़्यादा होती है। दरअसल, एल बी डी की समस्या ब्रेन में अल्फा सिन्युक्लिन नामक प्रोटीन के जमाव के कारण बढ़ने लगती है। इन स्थितियों से ग्रस्त लोग दिन में ज़्यादा झपकी लेते हैं, जिससे रात में सोना और भी मुश्किल हो जाता है।
इस बारे में मनोचिकित्सक डॉ युवराज पंत बताते हैं कि उम्र के साथ ब्रेन सेल्स प्रभावित होते है। इसके चलते सेरेब्रल एट्रोफी का सामना करना पड़ता है, जिससे मस्तिष्क न्यूरॉन्स खोने लगता है। इसके चलते एकाग्रता कम होने लगती है और चीजों को भूलने की समस्या बढ़ती है। ऐसे में ब्रेन के अलर्ट न रहने से डिमेंशिया के लक्षण बढ़ने लगते हैं।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के अनुसार मेलाटोनिन से शरीर का तापमान, ब्लड प्रेशर और ग्लूकोज़ लेवल को नियमित बनाए रखने में मदद मिलती है। इसके अलावा रात में नींद की गुणपत्त को बढ़ाने और दिन में शरीर को एक्टिव बनाए रखना भी आसान होता है। इसके लिए ट्रिप्टोफैन या मेलाटोनिन से भरपूर खाद्य पदार्थों का सेवन करें। दरअसल, अमीनो एसिड ट्रिप्टोफैन शरीर में सेरोटोनिन हार्मोन का प्रोडक्शन बढ़ता है। इससे मेलाटोनिन का उत्पादन बढ़ने लगता है। इसके लिए आहार में अंडे, मछली, मेवे और चेरी का सेवन करें।
खाली बैठकर वक्त गुज़ारने की जगह किसी न किसी कार्य में खुद को व्यस्त रखने का प्रयास करें। इससे मानसिक सक्रियता बढ़ने लगती है, जिससे ब्रेन हेल्थ बूस्ट होती है और दिन में नींद आने की समस्या से बचा जा सकता है। साथ ही किसी भी कार्य में ध्यान लगाने से फोकस बढ़ने लगता है और एकाग्रता की कमी से भी राहत मिलती है।
अधिकतर समय पढ़ने और लिखने में लगाने का प्रयास करें। इससे ब्रेन मसल्स एक्टिव होते हैं और उनकी कार्यक्षमता बढ़ने लगती है, जिससे नींद से बचा जा सकता है। रीडिंग करने से चीजों को याद रखने की कपेसिटी बढ़ने लगती है। इससे हार्मोन का स्तर बढ़ने लगता है और शरीर एक्टिप रहता है।
ब्रेन को एक्टिव रखने के लिए आहार में ओमेगा 3 फैटी एसिड को शामिल करें। इससे तनाव, बायपोलर डिसऑर्डर, सिज़ोफ्रेनिया और डिमेंशिया का जोखिम कम हो जाता है। एफडीए के अनुसार दिनभर में 3 ग्राम ओमेगा 3 फैटी एसिड का सेवन करना चाहिए। इससे मूड स्वि्ांग से राहत मिलती है और मानसिक तनाव कम होने लगता है। इसके लिए आहार में नट्स और सीड्स को शामिल करें।
वर्कआउट करने से मसल्स हेल्थ इंप्रूव होने के अलावा मानसिक स्वास्थ्य भी उचित बना रहता है। वे लोग मेंटल डिसऑर्डर का शिकार है, उन्हें अवश्य व्यायाम करना चाहिए। इससे शरीर हेल्दी और एक्टिव रहता है। साथ हार्मोनल संतुलन बना रहता है।