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कम या ज्यादा पलकें झपकाना भी हो सकता है कुछ समस्याओं का संकेत, जानिए इसे कैसे ठीक करना है

पलकें झपकाना एक प्राकृतिक क्रिया है। ये आपकी आंखों को आराम देने और उन्हें लुब्रिकेट करने के लिए जरूरी भी है। पर जरूरत से ज्यादा या कम पलकें झपकाना कुछ बीमारियों का संकेत भी हो सकता है। इनके बारे में आपको जानना चाहिए।
Updated On: 14 Oct 2024, 05:05 pm IST
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causes of excessive eye blink
आंखे झपकने से संबंधित हो सकती है ये समस्याएं। चित्र- अडोबीस्टाॅक

अंदर क्या है

  • क्यों झपकाते हैं पलकें?
  • ब्लिंक करना क्यों है जरूरी?
  • आंखे ज्यादा या कम ब्लिंक करना किन समस्याओं का लक्षण है?
  • क्या है इनसे निपटने के उपाय?

कभी सोचा है आपने कि आप एक मिनट में कितनी बार पलकें झपकाते (blinking of eyes) हैं? एक आम इंसान एक मिनट में 12 से 15 बार पलकें झपकाता है। मगर ये सब के लिए सामान्य नहीं है। कुछ लोग पलकें बहुत कम झपकाते हैं, तो कुछ लोग बहुत ज्यादा। कई इसके पीछे कुछ गंभीर स्थितियां या समस्याएं भी हो सकती है। आज हेल्थशॉट्स में हम समझेंगे कि पलकें झपकने का कारण (blinking of eyes causes) क्या है? और क्या होता है जब हम पलकें कम झपकाते हैं या जरूरत से ज्यादा झपकाने लगते हैं।

क्यों झपकाते हैं पलकें (blinking of eyes)

आंखो को ब्लिंक करना या पलकें झपकाना एक सामान्य, स्वस्थ रिफ्लेक्स है। आपकी ऑटोनॉमिक नर्वस सिस्टम के कारण, आपको ब्लिंक करने के लिए सोचने की जरूरत नहीं होती। यह अपने आप होता है। लेकिन आप “कमांड पर” भी ब्लिंक कर सकते हैं। वास्तव में, ब्लिंक करने के तीन अलग-अलग तरीके हो सकते हैं:

1. स्वाभाविक ब्लिंकिंग (Spontaneous Blinking):

यह एक खुद-ब-खुद होने वाली प्रक्रिया है, जो किसी सोचने या समझने की जरूरत के बिना होती है, जैसे कि सांस लेना। इसी के लिए कहा जाता है कि एक साधारण व्यक्ती एक मिनट 12 से 15 बार अपनी आंखे झपकता है। नियमित ब्लिंकिंग से आंखों की सतह पर नमी बनी रहती है, जिससे सूखापन और इरिटेशन से बचा जा सकता है।

2. स्वैच्छिक ब्लिंकिंग (Voluntary Blinking):

यह तब होती है जब आप जानबूझकर अपनी आंखें बंद करते हैं। उदाहरण के लिए, आप अपनी आंखें झपका सकते हैं या किसी चीज़ को देखना बंद कर सकते हैं। यह आमतौर पर ध्यान केंद्रित करने या आराम करने के लिए किया जाता है।

3. रिफ्लेक्स ब्लिंकिंग (Reflex Blinking):

यह तब होती है जब आपकी आंखों के बहुत करीब कोई चीज़ आ जाती है, जिससे आपको खतरा महसूस होता है। उदाहरण के लिए, अचानक किसी वस्तु का आंखों के पास आना या धूल का सामना करना। इस स्थिति में, आंखें तुरंत बंद हो जाती हैं ताकि सुरक्षा के लिए तेज़ी से प्रतिक्रिया हो सके। यह प्रक्रिया हमारे शरीर की स्वाभाविक सुरक्षा प्रणाली का हिस्सा है।

ये तीनों प्रकार आंखों की सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण हैं।

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polluted air me apke ankho ki halat buri ho sakti hai
लंबे समय तक प्रदूषित माहौल में रहने से आंखों की हालत बिगड़ सकती है। चित्र : शटरस्टॉक

ब्लिंक करना क्यों है जरूरी? (blinking of eyes benefits)

नारायणा हॉस्पिटल गुरुग्राम में ऑप्थल्मोलॉजी के सीनियर कंसल्टेंट एंड हेड, डॉ. दिग्विजय सिंह, कहते हैं कि “बिना आंखो को ब्लिंक किए, आपकी आंखें सूखी, असहज या दर्दनाक हो जाएंगी। आप स्पष्ट रूप से नहीं देख पाएंगे, और आंखों के इन्फेक्शन का जोखिम भी बढ़ जाएगा। ब्लिंकिंग कई तरीकों से आपकी आंखों को स्वस्थ रखती है। यह प्रक्रिया आंखो की सतह को नमी और सुरक्षा प्रदान करने के लिए आवश्यक है।

जब आप पलकें झपकाते हैं, तो आंसुओं की एक पतली परत आंखों की सतह पर फैलती है। जिससे आंखें ड्राई होने और धूल या अन्य कणों से होने वाले नुकसान से बचती है। डेड सेल्स, सूखे आंसुओं और अन्य प्रदूषकों को आपकी आंखों से हटाता है। इसके अलावा, पलकें झपकाना मस्तिष्क के थकान से बचाकर आपको रिफ्रेश करने का एक नेचुरल तरीका है। इससे आपकी आंखों को ऑक्सीजन और पोषक तत्व मिलते हैं।”

आंखे कम या ज्यादा ब्लिंक करना हो सकता है इन समस्याओं की तरफ इशारा

ज्यादा पलकें झपकाना (Excessive blinking of eyes)

डॉ. दिग्विजय सिंह आगे जोड़ते हैं “कुछ लोगों में पलकें कम या अधिक बार झपकने का कारण विभिन्न स्वास्थ्य स्थितियां भी हो सकती हैं जैसे ब्लेफेरोस्पाज्म या ब्लेफराइटिस (पलक की सूजन) और त्रिचियासिस (आंखों की ओर मुड़ने वाली पलकें) नामक स्थिति में पलकें अनियंत्रित रूप से बार-बार झपकती हैं, जो न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर का संकेत हो सकता है।

कम पलकें झपकाना (Less blinking of eyes)

तनाव, थकान, आंखों में सूखापन (ड्राई आई सिंड्रोम), आंखों की चोटें जैसे कॉर्नियल एब्रेशन, आंखों का इन्फेक्शन या कुछ प्रकार की दवाएं भी पलकों की सामान्य झपकने की दर को प्रभावित कर सकती हैं। ज्यादा ब्लिंकिंग को परिभाषित करने वाला कोई संख्या नहीं है। ब्लिंकिंग तब अधिक होती है जब यह आपकी दैनिक गतिविधियों या जीवन की गुणवत्ता में बाधा डालती है।

अत्यधिक ब्लिंकिंग बच्चों को भी प्रभावित कर सकती है। यदि आपका बच्चा या टॉडलर बहुत ज्यादा आंखे ब्लिंक कर रहा है, तो इसके कारण हो सकते हैं:

child verbal abuse se bachche ko swasthya samasyaen
ड्राय आइज के कारण बच्चे की आंखों पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। चित्र: शटरस्टॉक

रिफ्रैक्टिव एरर्स

रिफ्रैक्टिव एरर्स यानी दृष्टि संबंधी समस्याएं , जिनमें आंखों की लेंस या कॉर्निया के आकार के कारण रोशनी सही तरीके से फोकस नहीं होती। जिसके कारण साफ देखने में समस्या होने लगती है। इन समस्याओं को सुधारने के लिए चश्मे, कांटेक्ट लेंस या सर्जरी का सहारा लिया जा सकता है। सामान्य रिफ्रैक्टिव एरर्स में मायोपिया ( दूर का देखने में कठिनाई) और हायपरोपिया ( नजदीक का देखने में कठिनाई) शामिल हैं।

एक्सोट्रॉपिया

एक्सोट्रॉपिया एक स्थिति है जिसमें एक या दोनों आंखें बाहर की ओर मुड़ जाती हैं। यह स्थिति विशेष रूप से तब दिखाई देती है जब व्यक्ति किसी चीज़ पर ध्यान केंद्रित करता है। एक्सोट्रॉपिया के कारण व्यक्ति को बाइनोक्यूलर दृष्टि (दोनों आंखों से एक साथ देखने की क्षमता) में कठिनाई होती है, जिससे आई साइट धुंधली या दोहरी हो सकती है। इस स्थिति का इलाज चश्मे या सर्जरी के माध्यम से किया जा सकता है।

एस्ट्रोट्रॉपिया

एस्ट्रोट्रॉपिया में आंखें अंदर की ओर मुड़ती हैं, जिससे एक आंख सामान्य दिशा में देखती है जबकि दूसरी आंख अंदर की ओर होती है। यह स्थिति अक्सर जन्मजात होती है और बच्चों में अधिक आम होती है। इसके कारण व्यक्ति को बाइनोक्यूलर आई साइट में परेशानी होती है। इसके उपचार में चश्मे सर्जरी शामिल हो सकते हैं।

स्ट्रैबिज्मस

स्ट्रैबिज्मस, जिसे सामान्यतः “क्रॉस्ड आइज़” के नाम से जाना जाता है, एक स्थिति है जिसमें दोनों आंखें सही दिशा में नहीं होती हैं। यह स्थिति किसी भी दिशा में हो सकती है—आगे, अंदर या बाहर। स्ट्रैबिज्मस के कारण आई साइट में धुंधलापन और बाइनोक्यूलर आई साइट में कमी होती है। इसका इलाज चश्मे या सर्जरी से किया जा सकता है।

इनवायरमेंटल चेंज

इनवायरमेंटल चेंज में ऐसे कारक शामिल होते हैं जो आई साइट को प्रभावित कर सकते हैं, जैसे तेज रोशनी या नमी में बदलाव। अचानक तेज रोशनी में आने पर आंखें अपने आप सिकुड़ जाती हैं। इसी तरह, अधिक नमी या धूल से आंखों में जलन या असहजता महसूस हो सकती है। इन स्थितियों में आंखों की सुरक्षा के लिए उचित उपाय करना महत्वपूर्ण है।

पिंक आई (कंजंक्टिवाइटिस)

पिंक आई, जिसे कंजंक्टिवाइटिस भी कहा जाता है, एक सामान्य आंखों की बीमारी है, जिसमें आंखों की परत (कंजंक्टिवा) सूज जाती है। इसके लक्षणों में आंखों का लाल होना, जलन, खुजली और पानी निकलना शामिल है। यह इनफेक्शन बैक्टीरिया, वायरस या एलर्जी के कारण हो सकता है। कंजंक्टिवाइटिस का इलाज उसकी वजह के अनुसार होता है, जिसमें एंटीबायोटिक्स या एंटीहिस्टामिन शामिल हो सकते हैं।

कुछ बच्चों, अक्सर लगभग 5 साल की उम्र में, एक अनिवार्य ब्लिंकिंग की आदत विकसित हो जाती है। यह स्पष्ट नहीं है कि ऐसा क्यों होता है, लेकिन यह आमतौर पर कुछ महीनों बाद अपने आप ठीक हो जाता है। यह भी पढ़ें: World Eyesight Day : आंखों की सेहत के लिए उतार देने चाहिए भ्रम के चश्‍में, यहां हैं 9 मिथ्‍स की सच्‍चाई

apni ankhon ka khyaal rakhein
अपनी आँखों का ख्याल रखें: चित्र : शटरस्टॉक

पलकें कम या ज्यादा बार झपका रहें हैं, तो इस तरह करें इन्हें कंट्रोल (How to stop excessive blinking habit)

डाॅ. दिग्विजय बताते हैं ऐसे में यदि आपको भी असामान्य पलक झपकने की समस्या है, तो उपचार का तरीका इसके कारण पर निर्भर करता है। अगर समस्या तनाव या थकान से जुड़ी हो, तो पर्याप्त आराम और तनाव प्रबंधन मददगार हो सकता है। इसके अलावा किसी भी असामान्य लक्षण के लिए नेत्र विशेषज्ञ या न्यूरोलॉजिस्ट से परामर्श करना जरूरी है। अपने अत्यधिक ब्लिंकिंग की आदत को रोकने के लिए, यहां कुछ सुझाव दिए गए हैं:

1. हर दिन ल्यूब्रिकेटिंग आई ड्रॉप्स का उपयोग करें।

2. पढ़ाई करते समय या कंप्यूटर पर काम करते समय बार-बार ब्रेक लें।

3. ऐसे वातावरण से बचें जो आपकी आंखों को परेशान करते हैं (जैसे धुएं वाले कमरे या धूल)।

4. माइंडफुलनेस, ध्यान या अन्य तनाव-घटाने वाली गतिविधियों का अभ्यास करें।

5. आंखों के व्यायाम करें, जैसे कि आंखों को घुमाना या पलकों को धीरे-धीरे बंद करना।

6. पर्याप्त पानी पिएं, क्योंकि सूखी आंखें भी ब्लिंकिंग को बढ़ा सकती हैं।

7. पर्याप्त नींद लें, क्योंकि थकान से आंखों में तनाव हो सकता है।

8. पढ़ाई या काम करते समय सही रोशनी में बैठने का ध्यान रखें।

9. नियमित आंखों की जांच कराएं।

अधिकतर मामलों में, अत्यधिक ब्लिंकिंग अपने आप ठीक हो जाती है। लेकिन गंभीर मामलों में समस्या का अनुभव करने पर एक्सपर्ट की सलाह से उचित उपचार लें।

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लेखक के बारे में
जान्हवी शुक्ला
जान्हवी शुक्ला

कानपुर यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट जान्हवी शुक्ला जर्नलिज्म में मास्टर्स की पढ़ाई कर रही हैं। लाइफस्टाइल, फूड, ब्यूटी, हेल्थ और वेलनेस उनके लेखन के प्रिय विषय हैं। किताबें पढ़ना उनका शौक है जो व्यक्ति को हर दिन कुछ नया सिखाकर जीवन में आगे बढ़ने और बेहतर इंसान बनाने में मदद करती हैं।

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