लॉरीन पॉवेल जॉब्स (Laurene Powell jobs) का महाकुंंभ में आना काफी दिनों से चर्चा में था। वे महाकुंभ में शामिल होने भारत आईं थीं। इसके लिए उन्हें उनके आध्यात्मिक गुरू स्वामी कैलाशानंद जी महाराज ने अपना गोत्र और एक नया नाम ‘कमला’ दिया था। लॉरीन को मकर संक्रांति पर अखाड़े के साथ संगम में स्नान करना था। मगर लॉरीन ने इससे पहले कभी इतनी भीड़ नहीं देखी थी। महाकुंभ (Maha Kumbh 2025) की भीड़ देखकर वे बीमार पड़ गईं।
लॉरीन एप्पल के को-फाउंडर स्टीव जॉब्स की पत्नी हैं। स्टीव जॉब्स का अक्टूबर 2011 में निधन हो गया था। भीड़ से परेशान होना, उसमें शामिल हाेने से घबराना या अन्य समस्याओं का सामना करने को मेडिकल टर्म में एगोराफोबिया (Agoraphobia) कहा जाता है। दुनिया भर में 1.7 प्रतिशत लोग इससे ग्रसित हो सकते हैं।
हो सकता है कि आपके सभी दोस्त किसी पार्टी या आउटिंग का प्लान बना रहे हों, और आप उस भीड़ में शामिल होने की कल्पना मात्र से ही डरे बैठे हों। मन मारकर जैसे–तैसे शामिल भी हों, तो आपको घबराहट होने लगे, सांस लेने में तकलीफ हो। तो ये सभी एगोराफोबिया के संकेत हो सकते हैं। दुनिया की 1.7 प्रतिशत आबादी एगोराफोबिया (AgoraPhobia) से जूझ रही है।
अगर आप में या आपके किसी प्रियजन में ऐसे संकेत हैं, तो यह लेख आप ही के लिए हैं। हेल्थ शॉट्स पर एक विशेषज्ञ से जानते हैं इसके कारण और इससे डील करने के तरीके। हेल्थ शॉट्स के इस लेख में न्यूरोलॉजिस्ट डॉक्टर राजीव अग्रवाल से जानते हैं क्यों होती है यह समस्या और इससे कैसे डील किया जा सकता है।
एगोरफोबिया एक मानसिक स्थिति है जिससे पीड़ित व्यक्ति को भीड़ से डर महसूस होता है। यह आमतौर पर पैनिक अटैक (Panic Attacks) के कारण होता है, जिससे व्यक्ति उन जगहों से बचने की कोशिश करता है, जहां उसे पैनिक अटैक्स आए हों या जो जगहें उसके मानसिक अवसाद का कारण बनी हों। कई बार इसका कारण जीनेटिक भी होता है, यानी यह जन्म से भी हो सकता है। और कारणों में, किसी ट्रॉमा का असर, डिप्रेशन और एंग्जाइटी भी शामिल हैं।
न्यूरोलॉजिस्ट डॉक्टर राजीव अग्रवाल के मुताबिक एगोराफोबिया (Agoraphobia) के लक्षण हर किसी में अलग हो सकते हैं लेकिन कुछ एक लक्षण ऐसे होते हैं जो कॉमन हो सकते हैं।
1. एगोराफोबिया से पीड़ित किसी इंसान को खुली जगहों में जाने से या भीड़ के करीब जाने से डर लगता है। उन्हें ऐसी जगहों पर घबराहट होती है और उन्हें लगता है कि वहाँ उनका कुछ नुकसान हो सकता है।
2. भीड़-भाड़ वाले इलाकों में एगोराफोबिया से ग्रस्त किसी भी व्यक्ति को पसीना आ सकता है, दिल की धड़कनें तेज हो सकती है और यहाँ तक कि उन्हें सांस लेने में भी परेशानी हो सकती है।
3. एगोराफोबिया (Agoraphobia) से पीड़ित लोगों को हमेशा अकेलेपन का एहसास हो सकता है। उन्हें लगता है कि अगर कोई मुश्किल आ गई तो वे अकेले होंगे और कोई मदद नहीं मिल पाएगी।
4. ऐसे व्यक्तियों को सोशल गैदरिंग से भी चिढ़ होती है,वे पार्टी, म्यूजिक या फिर सिनेमा जैसी चीजों से भी दूर रह सकते हैं।
अलग- अलग रिसर्च में यह सिद्ध हो चुका है कि लैवेंडर का तेल मानसिक दिक्कतों के लिए बहुत मददगार है। ये तेल घबराहट को कम करने में मदद करता है। अगर आप एगोराफोबिया से जूझ रहे हैं तो इस तेल को अपने नाल के पास या माथे के पास लगाने से आपको घबराहट से राहत मिल सकती है। नहाने के पानी में इसकी कुछ बूंदें डालकर आप इसका नियमित तौर पर भी इस्तेमाल कर सकते हैं, ये तरीका भी फायदेमंद है।
हर्बल चाय का सहारा एगोराफोबिया (Agoraphobia) के केस में आपके लिए मददगार हो सकता है। जैसे पुदीने की चाय – आपके दिमाग को आराम पहुंचाती है। आपकी चिंता,स्ट्रेस और घबराहट दूर करने में हर्बल चाय आपके काम की हो सकती है।
एगोराफोबिया के लक्षण अक्सर भीड़ में दिखते हैं। इससे पीड़ित इंसान बिना बात के डरने लगता है। जब भी ऐसी स्थिति में आपको घबराहट महसूस हो आप लंबी सांस लेना शुरू करें। जब शरीर में पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन जाएगा तभी आपको तनाव और घबराहट से मुक्ति मिल पाएगी।
रात को सोने से पहले गाय का गरम दूध पीना भी आपको एगोराफोबिया (Agoraphobia) से राहत दिलाने में मदद कर सकता है।
दरअसल, गाय के दूध में ट्रिप्टोपैन नाम का एक एलीमेंट पाया जाता है जो दिमागी तौर पर आपको शांत करता है और अच्छी नींद के लिए मदद करता है। अच्छी नींद एगोराफोबिया से पीड़ित लोगों के लिए बहुत जरूरी है।
डॉक्टर राजीव के मुताबिक, एगोराफोबिया का इलाज दो तरीकों से हो सकता है। पहला है थेरेपीज के सहारे और दूसरा है दवाओं के सहारे।
एगोराफोबिया (Agoraphobia) को दूर करने के लिए थेरेपीज अमूमन 4 स्टेप्स में की जाती हैं।
इस पहले चरण में पीड़ित इंसान को यह समझाने की कोशिश की जाती है कि उनका डर हकीकत से बहुत अलग है यानी उनका डर झूठा है। उन्हें बार बार यह बताने की कोशिश की जाती है कि भीड़ में और भी तो लोग हैं जो बिना डरे चल- फिर रहे हैं तो यह डर आपको क्यों लग रहा है? पीड़ित लोगों को बार बार कहा जाता है कि उनका डर वास्तविक नहीं है।
थेरेपी के सेकेंड स्टेप में एगोराफोबिया (Agoraphobia) से जूझ रहे व्यक्ति से यह जानने की कोशिश की जाती है कि उन्हें डर किस बात का लग रहा है?
उदाहरण के तौर पर अगर कोई यह सोच रहा है कि भीड़ में कोई उसे मार देगा, तो यह जानकर उनके इस डर की हकीकत बताई जाती है कि ऐसा कुछ नहीं होने वाला।
इसके बाद का अगला कदम होता है पीड़ित व्यक्ति में पॉजिटिव थिंकिंग बिल्ड करना। थेरेपी के इस स्टेप में एगोराफोबिया (Agoraphobia) से पीड़ित व्यक्ति को उसके डर से निपटने के लिए पॉजिटिव तरीके सिखाए जाते हैं।
ये थेरेपी का फाइनल स्टेज है जब एगोराफोबिया (Agoraphobia) के मरीज को उसके डर से एक्सपोज किया जाता है। धीरे-धीरे व्यक्ति को उस जगह या उस स्थिति में भेजा जाता है जहां उन्हें डर लगता है ताकि उन्हें ये महसूस कराया जा सके कि उनका डर सही नहीं है।
कई बार ऐसा भी हो सकता है जब डॉक्टर थेरेपी के साथ एगोराफोबिया के पेशेंट्स को दवाइयां भी लिखते हैं। फिर ऐसी स्थिति भी बनती है जब जब एगोराफोबिया (Agoraphobia) बहुत गंभीर हो जाता है और दूसरे इलाज से मदद नहीं मिलती तब भी डॉक्टर दवाइयां लिखते हैं।
डॉ. राजीव बताते हैं कि इन दवाइयों में एंटीडिप्रेसेंट भी हो सकते हैं जो डिप्रेशन से पीड़ित लोगों के लिए जरूरी होती हैं क्योंकि एगोराफोबिया का असर कई बार डिप्रेशन के तौर पर भी होता है। बहुत गंभीर सिचुएशन में डॉक्टर्स बेंजोडायजेपाइन दवाइयां जो तुरंत राहत देती हैं, वे भी लिख सकते हैं। आप अगर ऐसी किसी भी समस्या से जूझ रहे हैं तो बिना डॉक्टरी सलाह के कोई भी दवाई ना लें, हाँ घरेलू नुस्खे जरूर आजमाए जा सकते हैं।
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