क्या आपको पता है कि दुनिया भर में ऐसे लोग जो किसी तौर पर न्यूरो की समस्या से ग्रसित हैं, उनमें से 95 प्रतिशत मरीज गरीब या मिडल क्लास आबादी बाहुल्य देशो से हैं। अफसोस ही कहेंगे कि भारत भी ऐसे ही देशों की सूची में है। ये रिपोर्ट अमेरिकी स्वास्थ्य विभाग की है।
इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि ऐसे रोगों का बढ़ने का एक कारण जागरूकता की कमी भी है क्योंकि लोग (autistic child parenting tips) समझ ही नहीं पाते कि ऐसे लक्षण किसी माइंड डिसॉर्डर के कारण है। इन्हीं डिसॉर्डर्स की सूची में एक नाम जुड़ता है जिसका नाम है ऑटिज्म।
ऐसी बीमारी जिससे पीड़ित मरीज बात करने में, किसी से नजरें मिलाने में या फिर किसी से मिलने जुलने में कठिनाई महसूस करता है और कई बार ये सब काम करने में अक्षम भी हो सकता है।
ज्यादातर जन्म से होने वाली इस बीमारी में बच्चों का ख्याल रखना मुश्किल हो जाता है और आज हम इसी बारे में बात करने वाले हैं कि अगर बच्चा ऑटिस्टिक है तो उसका कैसे ख्याल (autistic child parenting tips) रखा जाए?
ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों के लक्षण ( Symptoms of Autistic Child)
न्यूरोसर्जन डॉक्टर डॉक्टर मोहम्मद इकबाल के अनुसार – बच्चों में इसका लक्षण सबसे ज्यादा इसलिए दिखता है क्योंकि ये अधिकतर बार जन्मजात बीमारी है। उन्होंने हमसे बातचीत में बच्चों में ऑटिज्म के कुछ लक्षण बताए थे, वे लक्षण हैं –
ऑटिज़्म से पीड़ित बच्चों में यह कॉमन है कि उनमें आत्मविश्वास की कमी होती है। अक्सर बच्चे किसी से आँख नहीं मिला पाते। दूसरों के अंदर क्या भावना चल रही है इसे समझने में भी उन्हें वक्त लग सकता है। इससे पीड़ित लोग अक्सर किसी से आँख नहीं मिला पाते। इसके साथ ही उन्हें दूसरों के इमोशंस को समझने में भी वक्त लगता है।
ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे अक्सर एक ही काम को बार बार दुहराते हैं। दरअसल उन्हें याद नहीं होता कि वे कोई काम पहले कर चुके हैं या नहीं। काम के अलावा कई बार वे अपनी बातें भी दुहरा सकते हैं।
ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों को अक्सर बातचीत करने में भी मुश्किल आती है। कई बार वे हिचकिचाहट के साथ बोल लेते हैं लेकिन ऐसे भी लक्षण देखे गए हैं जब ऐसे बच्चे बोलते बोलते अचानक चुप हो जाएं।
ऑटिज्म के मरीज़ बच्चों के साथ ऐसा अक्सर होता है कि अगर कोई काम उनके अनुसार ना हुआ हो तो वे चिढ़ने लगते हैं। कई बार ऐसा भी होता है जब उन्हें वक्त से पहले जगा दिया जाए या फिर खाना खाने के वक्त से पहले या थोड़े देर से खाना दिया जाए तो वे जोर से चिल्ला भी सकते हैं।
ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों में यह भी देखा गया है कि वो अगर किसी विषय या चीज़ को पसन्द करेंगे तो अति कर देंगे। और नहीं करेंगे तो फिर आप कितनी भी कोशिश कर लें,वे उसकी ओर ध्यान ही नहीं देंगे। उदाहरण के लिए- जैसे कोई बच्चा मैथ्स में टॉप करे और बाकी सब्जेक्ट्स में फेल हो जाए।
ऑटिज्म से पीड़ित बच्चे सीक्वेंस से बहुत प्यार करते हैं। उन्हें व्यवस्थित चीजें बहुत अच्छी लगती हैं। बिखरी हुई चीजें देखकर वो नाराज हो सकते हैं।
कई बार ऐसे बच्चों में पाया गया है कि वो कमरे में पड़ी सारी चीजों को अक्सर करीने से सजाते रहते हैं। या कई बार कमरे की सारे चीजें लेकर बिस्तर पर सजाते हैं।
7. ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों को तेज आवाज या तेज रोशनी से भी चिढ़ होती है। अगर कोई बहुत चमकीली चीज उनके सामने रख दिया जाए तो उनके अंदर डर और गुस्से का इमोशन तेजी से बढ़ने लगता है।
डॉक्टर इकबाल के अनुसार, ऑटिस्टिक बच्चे को अक्सर बातचीत करने में मुश्किल आ सकती है। उन्हें इसका एहसास ना होने दें कि ये उनकी कमजोरी है।
हमेशा इस बात का ध्यान (autistic child parenting tips) रखें कि उनसे बात करते वक्त सरल भाषा का इस्तेमाल करें जो उन्हें समझ में आ जाए। घुमा-फिरा कर बात मत ही करिए तो अच्छा। उनकी बातें समझने की कोशिश करें और फिर उसी अनुसार प्रतिक्रिया दीजिए।
ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों को उनकी दिनचर्या में छेड़छाड़ से बहुत परेशानी होती है। इसलिए हमेशा उनके लिए चीजें व्यवस्थित रखें। एक वक्त पर खाना, एक तय वक्त पर सोने का समय तय करें।आपका उनके समय का ख्याल (autistic child parenting tips) रखना उन्हें मानसिक तौर पर शांति देगा जिससे बच्चे बेहतर महसूस करेंगे।
ऑटिस्टिक बच्चे को ऐसा माहौल दें जो शांत हो और जहां वे सुरक्षित महसूस करें। घर में बहुत ज्यादा शोर करने से बचें ताकि बच्चे निश्चिंत हो कर खेल सकें या अपनी दिनचर्या का जो भी काम हो उसे पूरा कर सकें।
अगर ऑटिस्टिक बच्चा बाहर जा रहा हो जहां वो बाकी बच्चों से मिलेगा तो उसे शुरुआत में अकेले मत जाने दें। आप उनके साथ रहें ताकि वो दूसरों से बातचीत करने में कंफरटेबल हो सके और आप बातचीत में उनकी मदद कर सकें। इससे बच्चे के अंदर कॉन्फिडेंस आएगा और वो धीरे धीरे इंटरेक्शन के लिए तैयार होता जाएगा।
ऑटिस्टिक बच्चों के लिए स्पेशल एजुकेशन और थेरेपी (autistic child parenting tips) की जरूरत होती है जहां उनकी कमजोरियों को समझते हुए उन्हें पढ़ाया-लिखाया जा सके।
ऐसे में उन स्कूलों की पहचान करें जो इस तरह की शिक्षा देते हों और उनकी सुरक्षा के प्रति आश्वस्त होने पर ही उनका दाखिला वहां करवाएं। कई बार इस काम में लापरवाही में बच्चों में ऑटिज्म और भयानक हो सकता है।
1.अगर बच्चे की उम्र बोलने की है फिर भी वो बोल ना पा रहा हो तो डॉक्टर से जांच करवाना जरूरी है। बच्चा बोलने में देरी करता है या समय पर बात नहीं करता है, तो डॉक्टर से सलाह लें।
2. अगर बच्चा अक्सर अकेले रहना पसंद करता है और आपके सहयोग के बावजूद वो बाकी दूसरे बच्चों से घुलने-मिलने में डरता हो या उनके साथ खेलने से भागता हो, तो ये सीरियस संकेत (autistic child parenting tips) हैं कि आपको डॉक्टर से मिल लेना चाहिए। अगर बच्चा दूसरों से नहीं खेलता या किसी से बात नहीं करता, तो डॉक्टर से मिलें।
3. ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों में शोर और रौशनी से घबराहट तो कॉमन होती है लेकिन अगर ये घबराहट दिन ब दिन बढ़ती जा रही हो तो बच्चे को मेडिकल ट्रीटमेंट (autistic child parenting tips) के जरूरत हो सकती है।
4. अगर आपका बच्चा बार-बार चीजें भूल रहा हो और बार बार एक ही काम कर रहा हो या कोई एक ही बात को दोहराता हो तो ये गंभीर ऑटिज्म के संकेत हो सकते हैं। इसे केस में आपका डॉक्टर से मिल लेना जरूरी है।
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