जीवन में किसी न किसी मोड़ पर हर व्यक्ति खुद को हताश महसूस करने लगता है। मनचाहे नंबर न आने पर बच्चे निराश हो जाते हैं, नौकरी न मिलने पर युवाओं को जीवन बोझ लगने लगता है और ब्रेकअप के बाद प्रेमी अकेलेपन से भागने लगते है। ऐसी बहुत सी परिस्थितियां हैं, जब व्यक्ति परेशान होकर स्यूसाइड का कदम उठाने की कोशिश करता है। दरअसल, ये दबाव उनके मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने लगता है। इस प्रकार के विचारों से मुक्त (How to stop suicidal thoughts) होने के लिए कुछ बातों पर ध्यान केंद्रित करना ज़रूरी है। जानते हैं कि कैसे स्यूसाइड की फीलिंग से डील किया जा सकता है।
सेंटर ऑफ डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के अनुसार आत्महत्या के विचार का मन में आना बायपोलर डिसऑर्डर को दर्शाता है। ये डिप्रेशन और मेजर डिप्रेशन में से किसी एक समस्या का कारण बनने लगता है। मानसिक बीमारियों से ग्रस्त लोगों को इसका सबसे अधिक सामना करना पड़ता है।
सीडीसी की रिसर्च के अनुसार स्यूसाइड विचार दो प्रकार के होते है, एक्टिव और पैसिव। पैसिव स्यूसाइड आइडिएशन (suicide ideation) में व्यक्ति खुद को मारना चाहती है। वो मन ही मन खुद को मारने की प्लानिंग करता है। वहीं एक्टिव स्यूसाइडल आइडिएशन (Active suicidal ideation) में व्यक्ति स्यूसाइड की प्लानिंग (suicide planning) से लेकर आत्महत्या का प्रयास कर लेता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार आत्महत्या एक प्रमुख पब्लिक चैलेंज है। इसके चलते विश्वभर में हर साल 700,000 से अधिक लोगों की जान जाती है। आत्महत्या के मामलों का बढ़ना समाज पर गहरा प्रभाव डाल रहा है। इसी के चलते साल 2003 में वर्ल्ड स्यूसाइड प्रिवेंशन डे (world suicide prevention day) की शुरूआत की गई।
इस मुहिम की शुरूआत विश्व स्वास्थ्य संगठन (world health organization) और इंटरनेशनल एसोसिएशन फॉर स्यूसाइड प्रिवेंशन (International association for suicide prevention) ने मिलकर की।
सालाना 10 सितंबर को वर्ल्ड स्यूसाइड प्रिवेंशन डे (world suicide prevention day) मनाया जाता है। इस खास दिन का मकसद लोगों को आत्महत्या के विचारों से मुक्त करके हर समस्या का मज़बूती से सामना करने के लिए तैयार करना है। लोगों को जागरूक करने के लिए कार्यक्रम, वर्कशॉप्स और कैम्प्स लगाए जाते हैं।
इस बारे में डॉ युवराज पंत बताते हैं कि आत्महत्या के बारे में सोचना एक मेडिकल इमरजेंसी (suicidal thought is medical emergency) है। ऐसी स्थिति में तुरंत इलाज की आवश्यकता होती है। अधिकतर लोग जीवन में अपनी क्षमताओं ये ज्यादा टारगेट निधार्रित कर लेते हैं, जो पूरा न होने पर व्यक्ति स्यूसाइड का कदम उठाते है। इसके अलावा तनाव के चलते विचारों में नकारात्मकता बढ़ने लगती है।
लंबे वक्त तक डिप्रेशन में रहना भी स्यूसाइड का कारण साबित होता है। ऐसे में विचारों में सकारात्कता को बढ़ाने का प्रयास करें और लोगों से मिलेंजुले। वे लोग जो दोस्तों और माता पिता से अपनी समस्या शेयर नहीं कर पाते हैं, उन्हें डॉक्टर से अवश्य संपर्क करना चाहिए।
क्रानिक डिप्रेशन के कारण आत्महत्या का विचार मन में पनपने लगता है। व्यक्ति मायूस महसूस करता है और हर समस्या के लिए खुद को जिम्मेदार मानने लगता है। इससे ऐसे लोग छोटी सी बात को बड़ा रूप देकर चिल्लाने लगते हैं।
वे लोग जो लंबे वक्त से किसी शारीरिक बीमारी के शिकार है, वे खुद को असहाय मानने लगते है। अन्य लोगों की उनके प्रति दया की भावना उनकी परेशानी का कारण बनने लगती है। दूसरों लोगों पर अपने कार्यों के लिए निर्भर होने के चलते वे स्यूसाइड की कोशिश करने लगते हैं।
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कस्टमाइज़ करेंअल्कोहल, स्मोकिंग और नशा करने वाले अधिकतर लोग स्यूसाइड की कोशिश करते हैं। दरअसल, अत्यधिक नशा शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाता है। इससे गुर्दे और फेफड़ों समेत अन्य शारीरिक अंगों को पहुंचता है
हर बात पर गुस्सा करना और खुद को सही समझने वाले व्यक्ति पर्सनैलिटी डिसऑर्डर का शिकार होते है। ऐसे लोग मनमाना रैवया अपनाते है और छोटी सी बात पर इंपल्सिव हो जाते है। इंपल्सिव पर्सनैलिटी भी स्यूसाइड का कारण बन जाती है।
डॉ आरती आनंद बताती हैं कि मन कई कारणों से चिंतित रहता है, मगर आत्महत्या का ख्याल मन में बार बार आना खतरे का कारण बन सकता है। बहंत से लोग इंटरोवर्ट पर्सनैलिटी (introvert personality) के होते हैं और वो अन्य लोगों से अपनी बात को साझा नहीं कर पाते है।
ऐसे में अपने स्वास्थ्य को उत्तम बनाए रखने के लिए डॉक्टर से संपर्क करें और अपने मानसिक स्वास्थ्य को शारीरिक स्वास्थ्य के समान प्राथमिकता दें। अगर विचारों में नकारात्मकता (negative thoughts) बढ़ रही है, तो थेरेपी लें।
तनाव के कारण कुछ लोगों के मन में हर पल मरने का ख्याल रहता है। इसके चलते व्यक्ति खुद को बोझिल, निराश और परेशान महसूस करता है। बहुत से लोग खुद को आइसोलेट (isolate) कर लेते हैं और खानपान की आदतों में भी बदलाव आने लगता है। सोशल सर्कल का कम होना तनाव और एंग्ज़ाइटी (stress and anxiety) को दर्शाता है। ऐसे में इन संकेतों की पहचान करके किसी एक्सपर्ट से अवश्य सलाह लेनी चाहिए।
बढ़ती समस्याओं से निराश होने की जगह अन्य लोगों से बातचीत करें और उन्हें अपनी समस्या से अवगत करवाएं। इससे मानसिक स्वास्थ्य उचित बना रहता है और समस्या का हल भी मिलने लगता है। ऐसे लोग जो अन्य लोगों से कनेक्टिड रहते हैं, उनमें स्यूसाइडल विचारों का खतरा कम होने लगता है। सप्ताह के अंत में आउटिंग के लिए जाएं और वर्कप्लेस पर भी लोगों से मेलजोल अवश्य बढ़ाएं।
अन्य लोगों की बातों को मन में बैठाकर उस पर चिंतन करने की जगह अपने शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का ख्याल रखें। इससे व्यक्ति खुद को एक्टिव और हेल्दी महसूस करता है। साथ ही स्यूसाइड जैसे विचारों से दूरी बनी रहती है। शरीर को हाइड्रेट रखें और पौष्टिक आहार लें। इसके अलावा व्यायाम के लिए समय निकालें। इससे शरीर में हैप्पी हार्मोन रिलीज़ होते है, जो नकारात्मक विचारों को कम कर देता है।
अगर मन में बार बार ऐसे विचार उठ रहे है, तो उन्हें दबाने की अपेक्षा साइकोलॉजिस्ट से मिलें और कारणों को जानने का प्रयास करें। कई बार लंबे वक्त से चला आ रहा डिप्रेशन इस समस्या का कारण सिद्ध होने लगता है । इसके लिए थेरेपी लें और डॉक्टर के अनुसार दवाओं का भी सेवन करें।
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