कुछ लोगों को आपने देखा होगा कि बातचीत करने में बहुत अच्छे होते है। उनकी बातें कई लोगों को प्रभावित कर जाती है। कई लोग उन्हें बिना रोके काफी देर तक सुन सकते है। कम्यूनिकेशन की ये स्किल हर किसी में होती है लेकिन बस आपको इसे पहचानने और निखारने की जरूरत होती है। आपको अपने ऑफिस, दोस्तों के ग्रुप में, कॉलेज या किसी पार्ट में ऐसे लोग मिल सकते है जिनके बाते ऐसी होती है कि आपको उनसे बात करके अच्छा लगता है। इस तरह की सुपरकम्युनिकेटर अगर आप भी बनने की सोच रहें है तो चलिए जानते है कि आप इसके लिए क्या कर सकते है।
अगर आप भी किसी पार्टी या गैद्रिंग में खुद को सभी लोगों के साथ बातचीत में भी चुप सा पाते है और सोचते है कि बातचीत में कैसे शामिल हो, तो ये आपके कम्युनिकेशन स्किल में एक समस्या हो सकती है। आप कितना बोलते है, अपने घर में दोस्तों के साथ आप कितना भी कुछ भी बोलते हो ये जरूरी नहीं है। बोलने के साथ आप क्या क्या बोल रहें हो ये मायने रखता है। आप सुपरकम्युनिकेटर तभी बन सकते है जब आपकी बातें ऐसी हो जो लोगों को प्रभावित कर सके।
इस बारे में बात करने के लिए हमने संपर्क किया क्लीनिकल सायकोलॉजिस्ट डॉ. आशुतोष श्रीवास्तव से।
डॉ. आशुतोष श्रीवास्तव बताते हैं कि कम्युनिकेशन एक दोतरफा रास्ता है। इसमें सुनना बोलने जितना ही महत्वपूर्ण है। सक्रिय रूप से सुनने में दूसरे व्यक्ति की बात पर पूरा ध्यान केंद्रित करना बहुत जरूरी है, बिना बीच में टोके या अपनी प्रतिक्रिया की योजना बनाए। यह अभ्यास न केवल सम्मान दिखाता है बल्कि आपको बोलने वाले के दृष्टिकोण को अधिक सटीक रूप से समझने में भी मदद करता है।
बातचीत में स्पष्टता सबसे महत्वपूर्ण है। शब्दजाल, तकनीकी शब्दों या कठिन वाक्यों का उपयोग करने से बचें, जो आपके श्रोताओं को भ्रमित कर सकते हैं। इसके बजाय, अपने संदेश को सीधे तरीके से पहुंचाने का लक्ष्य रखें।
एक सुपरकम्युनिकेटर जानता है कि अपने संदेश को उस दर्शक के अनुरूप कैसे ढालना है जिसे वह संबोधित कर रहा है। चाहे आप अधिकारियों के ग्रुप से बात कर रहे हों, छात्रों की क्लास से या दोस्तों के ग्रुप से, अपने लहजे, भाषा और सामग्री को अपने दर्शकों की ज़रूरतों और अपेक्षाओं से मेल खाने के लिए अनुकूलित करना महत्वपूर्ण है।
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