गर्भवती महिलाओं के खानपान का खास ख्याल रखा जाता है। प्रेगनेंसी के दौरान फूड क्रेविंग्स (food craving during pregnancy) भी काफी बढ़ जाती है। कभी आइसक्रीम खाने के लिए मन ललचाता है, तो कभी तीखा खाने के लिए मन उतावला हो उठता है। जबकि कुछ महिलाओं की भूख प्रेगनेंसी में एकदम कम हो जाती है। मगर एक बात जो ज्यादातर गर्भवती महिलाओं में कॉमन है, वह है खट्टा खाने (sour food craving in pregnancy) की ललक। अपनी गर्भावस्था के दौरान ज्यादातर महिलाएं नींबू, संतरा, मौसमी, कच्चा आम या इमली जैसे खट्टे खाद्य पदार्थों के लिए क्रेव करने लगती हैं। क्या आप जानते हैं कि ऐसा क्यों होता है? और क्या खट्टा खाना प्रेगनेंसी में सेफ है (sour food craving during pregnancy)? आइए जानते हैं इन सभी सवालों के जवाब विस्तार से।
नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के अनुसार महिलाओं में पेरिमेंस्ट्रुअल और प्रीनेटल यानि बच्चे के जन्म से पहले फूड क्रेविंग्स (food craving during pregnancy)बढ़ने लगती हैं। शरीर में पोषण की कमी, हार्मोन में आने वाले बदलाव और मतली व उल्टी फूड क्रेविंग्स का कारण हो सकते हैं।
साइंस डायरेक्ट की रिपोर्ट के अनुसार सॉल्टी क्रेविंग्स होने का कारण शरीर में फाइबर की अधिक मात्रा होती है। वहीं खट्टा और चटपटा खाने की क्रेविंग होने का कारण फैटी एसिड का उच्च स्तर है। पहली तिमाही (first trimester) में महिलाओं को खट्टा खाने का मन ज्यादा करता है। दूसरी तिमाही में इसमें थोड़ा इजाफा होता है मगर तीसरी तिमाही तक यह लालसा कम होने लगती है।
प्रेगनेंसी के दौरान शरीर में एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन हार्मोन का स्तर बढ़ने लगता है, जिसका प्रभाव टेस्टबड्स और स्मेल पर नज़र आने लगता है। इसके चलते जहां खट्टे और तीखे खाद्य पदार्थों की ओर आर्कषण बढ़ जाता है, तो कुछ के प्रति अरुचि पैदा होने लगती है। मुंह के स्वाद और गंध के प्रति संवेदनशीलता बढ़ने लगती हैं।
गर्भावस्था के दौरान महिलाओं के शरीर में कैल्शियम और आयरन की कमी बढ़ जाती है। जहां आइसक्रीम की क्रेविंग कैल्शियम की कमी को दर्शाती है, वहीं गर्भवती महिलाओं में बढ़ने वाली विटामिन सी की कमी के चलते उनका मन खट्टा और तीखा खाने के लिए ललचाता है। तले भुने स्नैक्स खाने से शरीर को वेटगेन के अलावा एसिडिटी का सामना करना पड़ता है। शरीर में विटामिन सी की कमी को पूरा करने के लिए तरबूज, नींबू, संतरा और अंगूर का सेवन करें। दूसरी तिमाही में इसकी क्रेविंग बढ़ जाती है।
पहली तिमाही में गर्भवती महिलाओं को मॉर्निंग सिकनेस का सामना करना पड़ता है। वे महिलाएं जो खट्टा खाती हैं, उनमें मार्निंग सिकनसे की समस्या कम होती है। दरअसल, खट्टा खाने से शरीर में विटामिन सी की कमी पूरी हो जाती है, जिससे शरीर एक्टिव रहता है। इसके अलावा शरीर में इलेक्ट्रोलाइट बैलेंस मेंटेन रहता है। ऐसे में दिनभर में छोटी मील्स लें और रात को सोने से पहले ऑयली और स्पाइसी फूड खाने से बचें।
जर्नल ऑफ फूड एंड न्यूट्रिशन रिसर्च के अनुसार गर्भावस्था के दौरान मतली और उल्टी क्रेविंग्स का कारण बन जाती है। इस स्थिति से निपटने के लिए नींबू पानी, संतरा और मौसमी का सेवन करें। ऐसे में आहार में स्मूदीज़, हरी पत्तेदार सब्जियों से तैयार सैलेड, रोस्टिड सॉल्टी नट्स, योगर्ट और प्रोटीन बेस्ड फूड्स को शामिल करें।
हवाई पेसिफिक हेल्थ की रिपोर्ट के अनुसार महिलाओं को पहली तिमाही में अचार, नमकीन स्नैक्स जैसे आलू के चिप्स या फ्रेंच फ्राइज़ खाने में खूब पंसद होते हैं। इससे शरीर में सोडियम की मात्रा को बढ़ाने में मदद मिलती है। दरअसल, प्रोजेस्टेरोन का स्तर यूरिन के ज़रिए सोडियम लॉस का कारण साबित होता है।
इस बारे में डायटीशियन मनीषा गोयल बताती हैं कि गर्भावस्था में महिलाओं के खाने के स्वाद में बदलाव आने लगता है। महिलाओं को भूख कम लगती है और कभी फीका, कभी मीठा तो कभी खट्टा खाने का मन करता है। वे महिलाएं जिन्हें खट्टा खाने की लालसा रहती है, उनके शरीर में विटामिन सी की कमी पाई जाती है। साथ ही हार्मोन में आने वाले बदलाव इस समस्या का मुख्य कारण होते हैं।
इसके चलते शरीर में एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन का लेवल प्रभावित होता है। बार-बार उल्टी आने फीलिंग या मतली जैसा महसूस होने के कारण भी महिलाएं खट्टा अधिक खाने लगती हैं। इस क्रेविंग को संतुष्ट करने के लिए खाने के साथ दही, लस्सी, होममेड अचार और चटनी का सेवन कर सकती हैं। इसके अलावा सब्जी और हेल्दी स्नैक्स व सैलेड में नींबू का रस एड करके खाना भी एक अच्छा और हेल्दी विकल्प है। डिहाइड्रेशन बढ़ने की स्थितित में भी नींबू पानी पिया जा सकता है।
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कस्टमाइज़ करेंमनीषा गोयल मानती हैं कि गर्भावस्था में खट्टा खाने की क्रेविंग पूरी तरह नॉर्मल है। अगर आप हेल्दी विकल्पों को चुनती हैं, तो इसका कोई नुकसान भी नहीं है।