अपने बच्चे के लिए हेल्दी डाइट प्लान बनाना चाहती हैं, तो आयुर्वेद कर सकता है आपकी मदद
आप में से अधिकांश लोग मानते हैं कि आयुर्वेद केवल वयस्कों के लिए है न कि बच्चों के लिए। लेकिन यह एक गलत धारणा है। चाहे वह पोषण हो, प्रतिरक्षा निर्माण हो या मालिश, यह प्राचीन चिकित्सा प्रणाली बच्चों से लेकर किशोरों और युवाओं तक के विकास में मदद कर सकती है।
आयुर्वेद में आयु का वर्गीकरण बहुत व्यावहारिक रूप से किया गया है। यह वर्तमान समय के अनुसार सटीक माना जाता है:
- 1-16 वर्ष की आयु को बाल्यवस्था (बचपन) कहा जाता है।
- 16-60 वर्ष के बीच की आयु को मध्यमावती (मध्य-आयु) कहा जाता है।
- 60 वर्ष से ऊपर की आयु को वार्धक्य (वृद्धावस्था) कहा जाता है।
शरीर के दोषों के अनुसार यह वर्गीकरण किया जाता है। जैसे बाल आयु के दौरान, प्रमुख दोष कफ दोष है। इसके कारण, कुछ विशिष्ट विशेषताएं हैं, जो बचपन को परिभाषित करती है।
एक नवजात बच्चे को एक दिन में 18 से 20 घंटे की नींद की आवश्यकता होती है। इसी तरह, बचपन के दौरान, आमतौर पर मीठे खाद्य पदार्थों की ओर झुकाव होता है। जबकि कुछ चुनिंदा लोग खट्टा और नमकीन स्वाद पसंद करते हैं। आपने बहुत कम ही ऐसे बच्चे देखे होंगे जिन्हें मिर्च या नीम पसंद हो।
आयुर्वेद के अनुसार बच्चों के लिए वर्षों का वर्गीकरण
बचपन का एक महत्वपूर्ण पहलू है वर्षों का वर्गीकरण करना। यह एक सुंदर वर्गीकरण है जिसका वर्णन कश्यप संहिता में किया गया है, और यह उस भोजन पर आधारित है जिसे बच्चा मुख्य रूप से खाता है।
इनमें से पहला है क्षीरपा, जो जन्म से लेकर पहले वर्ष तक होता है। इस समय बच्चा मुख्य रूप से दूध आधारित आहार पर होता है, विशेष रूप से स्तन के दूध पर।
क्षीरानंद एक से दो साल की उम्र के बीच की अवधि है, जब बच्चा दूध और खाद्य पदार्थों को संतुलित रूप में खाता है।
अन्नदा दो वर्ष से अधिक का होता है, जब बच्चा पूरी तरह से ठोस आहार पर होता है।
इस वर्गीकरण का महत्व यह है कि यह बच्चे के बदलते पाचन का भी वर्णन करता है। यह विशेष रूप से नन्हें शिशुओं में देखा जाता है जब बच्चे की भूख में लगातार उतार-चढ़ाव होता है। आम तौर पर यह माता-पिता को परेशान कर देता है।
आयुर्वेद बच्चे के आहार में इन 9 बातों का ध्यान रखने का सुझाव देता है
अपने बच्चे के डाइट चार्ट को बनाते समय इनमें से प्रत्येक चीज़ का ख्याल रखने की कोशिश करें:
1. विभिन्न प्रकार के स्वाद
बच्चे के आहार में सभी छह स्वादों – मीठा, खट्टा, नमकीन, तीखा, कड़वा और कसैला शामिल करना महत्वपूर्ण है।
2. मीठा
यहां मीठे का मतलब सिर्फ चीनी या गुड़ नहीं है। इसमें अनाज, दूध और उसके उत्पाद, मीट के साथ-साथ दाल की पूरी श्रेणी शामिल है। स्तनपान कराने वाले बच्चे के मामले में भोजन के प्रमुख हिस्से में अनाज और डेयरी प्रोडक्ट शामिल होने चाहिए। अन्य खाद्य समूह जैसे सब्जियां, फल, मांस और दालें धीरे-धीरे और कम मात्रा में देनी चाहिए।
3. अनाज
बच्चे के आहार में महत्वपूर्ण अनाज जैसे चावल, गेहूं, जौ, रागी को भी शामिल करें। सबसे अच्छी दालों में से एक है मूंग दाल। इसके अलावा, अनार और खट्टे फल जैसे फलों को शामिल करना महत्वपूर्ण है। क्योंकि वे भूख में सुधार करते हैं। साथ ही दस्त जैसे सामान्य विकारों को रोकते हैं, जो इस आयु वर्ग में प्रचलित हैं। किशमिश भी एक महत्वपूर्ण घटक है, क्योंकि वे कब्ज को रोकने में मदद करती है।
4. दूध
याद रखें कि दूध अपने आप में एक भोजन है। इसलिए दूध और भोजन के बीच आधे घंटे से एक घंटे के अंतराल का पालन करना चाहिए। अन्यथा, दूध के साथ खट्टा या नमक का संयोजन स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
5. भोजन का समय
एक बच्चे के मामले में भोजन का समय बहुत कठिन होता है। डिमांड फीडिंग एक बच्चे में भोजन के संकेतों की आवश्यकता पैदा करने का सबसे अच्छा तरीका है। ज्यादातर मामलों में जबरदस्ती खिलाने से तनाव हो सकता है। आम तौर पर, जब बच्चा भूखा होता है, तो वह आपके पास आता है।
6. चीट फूड या ट्रीट
जहां तक हो सके भोजन के स्थान पर उन्हें जंक फूड देने से बचना चाहिए। ऐसा इसलिए है क्योंकि बच्चे बहुत जल्दी सीखने वाले होते हैं, और कुछ ही समय में परिस्थितियों के अनुकूल हो जाते हैं। जब उन्हें पता चलता है कि उन्हें भोजन के स्थान पर ये खाने को मिल सकता है, तो वे जंक फूड के सेवन पर अड़े रहते हैं।
7. खाना बनाना
भोजन की तैयारी में अपने बच्चे को शामिल करें। उसे सब्जियां चुनने दें, अनाज नापने दें, आटा गूंथने दें और मसालों की पहचान कराएं, ताकि भोजन में बच्चे की रुचि बढ़े।
8. कुछ नया करने की कोशिश करें
बच्चे के खाने या उससे परहेज करने के दृष्टिकोण को बदलने के लिए एक ही खाद्य सामग्री को अलग-अलग व्यंजनों में बदलें। उदाहरण के लिए अलग-अलग आकार की रोटियां बनाने से खाने में उनकी रुचि बढ़ सकती है।
9. अलग-अलग प्रकार का खाना
जब तक बच्चा किसी तरह की एलर्जी से पीड़ित न हो, अपने बच्चे के आहार में विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों को शामिल करने का प्रयास करें। इससे वे हर चीज को चुनकर नहीं खाएंगे।
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