“बिरयानी” यह नाम सुनकर जरूर आपके मुंह में पानी आ गया होगा। स्वाद में तो यह लजीज होती ही है, साथ ही इसकी महक भूख भी बढ़ा देती है। इसके मसाले, पारंपरिक सामग्री और परोसने का अंदाज सभी को अपनी ओर लुभाता है। यकीनन पार्टी सीजन में बिरयानी न बने यह तो हो ही नहीं सकता। मगर प्लेट में बिरयानी की ओवरलोडिंग आपकी सेहत पर भारी पड़ सकती है। जानना चाहती हैं कैसे? तो इसे पढ़ती रहिए।
जब बिरयानी की बात आती है, तो दो ही जगह याद आती हैं। हैदराबाद और नवाबों का शहर लखनऊ। वैसे लखनवी बिरयानी और हैदराबादी बिरियानी दोनों काफी अलग होती हैं। दोनों को बनाने का तरीका भी अलग होता है। दुनिया भर से जो भी लखनऊ की सरजमी पर कदम रखता है, वह यहां के व्यंजन, खास तौर पर बिरयानी खाए बिना वापस नहीं जा पाता।
कई लोग तो लखनऊ में सिर्फ बिरयानी का स्वाद चखने आते हैं और मसालों की खुशबू उन्हें अपने जीवन में कभी बिरयानी का स्वाद भूलने नहीं देती।
अपने अदब, तहजीब, मेहमान नवाजी और शालीनता वाला यह शहर अवधी जायके के लिए जाना जाता है। बिरयानी की यह स्वाद यहां नवाबों के समय से चला आ रहा है। हालाकि अब बदलते भारत में बढ़ती तकनीकी के सहयोग से कोई भी रेसिपी छुपी नहीं रह गई है। बिरयानी के शौकीन लोग अक्सर अपने घर में ही बिरयानी बना लेते हैं। लेकिन बिरयानी को अपनी प्लेट में परोसने से पहले स्वास्थ्य से जुड़ी बातें जान लेना जरूरी है। फिर चाहे वह लखनवी बिरयानी हो या हैदराबादी।
बिरयानी को बनाने में कई प्रकार के मसालों का इस्तेमाल किया जाता है। जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक माने जाते हैं। जिसमें लहसुन, अदरक, दालचीनी, और लौंग शामिल हैं। ये मसाले एंटी इंफ्लामेटरी गुणों, एंटी कैंसर, ब्लड शुगर को कम करने और और हृदय स्वास्थ्य को बेहतर रखने वाले गुणों से भरपूर हैं।
इसके अलावा बिरयानी में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, विटामिन, खनिज और फाइबर जैसे पोषक तत्वों भी मौजूद होते हैं। पर जब आप अपनी क्रेविंग को कंट्रोल नहीं कर पातीं और प्लेट को बिरयानी से ओवरलोड कर लेती हैं, तब इसका खामियाजा आपकी सेहत को उठाना पड़ता है।
बिरयानी को उच्च कैलोरी युक्त आहार के रूप में जाना जाता है, जिसमें प्रत्येक परोसने में औसतन 500 कैलोरी होती है, उनकी तैयारी में इस्तेमाल किया जाने वाला घी, वनस्पति और रेड मीट आपको पाचन संबंधी दिक्कतें दे सकते हैं।
सिर्फ शराब से ही नहीं, बल्कि आपकी पसंदीदा मटन बिरयानी के सेवन से भी आपके लीवर पर असर पड़ सकता है। जिससे आप नॉन अल्कोहलिक फैटी लिवर ( NAFLD) की शिकार हो सकती हैं। इसे विकसित देशों में सबसे तेजी से बढ़ती जीवनशैली की बीमारी के रूप में जाना जाता है। हर साल इस समस्या के रोगियों की संख्या बढ़ती जा रही है।
इसका पूरा नाम नॉन अल्कोहलिक फैटी लिवर डिजीज है। लिवर हमारे शरीर का एक अहम हिस्सा है यह हमारे शरीर में मेटाबॉलिज्म को मेंटेन करने का काम करता है। NAFLD में लीवर में फैट जमा हो जाता है जिसका इलाज अगर समय पर नहीं कराया गया तो यह परमानेंट रोक के तौर पर भी उभर सकता है जो लिवर सिरॉसिस के तौर पर जाना जाता है। यह आगे चलकर कैंसर ही बन सकता है।
ज्यादातर गति ही जीवन शैली और खराब खान-पान के कारण लोग इसके शिकार हो जाते हैं इसके लक्षणों में पेट में दर्द, सीने में दर्द, थकान शामिल है।
एनसीबीआई के अनुसार जिन लोगो का बीएमआई ज्यादा होता है, उनको इस तरह के खाने से नॉन अल्कहोलिक फैटी लिवर यानी एनएएफएलडी (NAFLD) का जोखिम ज्यादा होता है।
एनएएफएलडी से खुद को बचाने का एक ही आसान तरीका है। बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) की जांच करना। यह वैज्ञानिक रूप से सिद्ध है कि 23.5 से अधिक बीएमआई वाले लोग एनएएफएलडी के प्रति संवेदनशील हैं। हालांकि, एक अन्य प्रकार की बीमारी है जिसे लीन-एनएएफएलडी या लीन एनएएसएच कहा जाता है, जो सामान्य बीएमआई वाले लोगों को प्रभावित कर सकता है।
इसलिए लेडीज, जो भी खाएं उसे मॉडरेशन में खाएं। पार्टी और स्वाद के साथ सेहत का भी ख्याल रखें।
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