आज के दौर में वेटलॉस के लिए लोग कई फैंसी डाइटस को अपने लाइफस्टाइल का हिस्सा बना रहे हैं। अधिकतर किसी न किसी बीमारी से ग्रस्त लोगों को उपचार के तौर पर अलग अलग प्रकार की डाइटस फॉलो करने के लिए कहा जाता है। इसी फेहरिस्त में शामिल है कीटो डाइट। आमतौर पर इसे कैंसर (Cancer), ओवरी सिंड्रोम (Overy syndrome) और अल्जाइमर (Alzheimer) जैसी बीमारियों से निजात के लिए इस्तेमाल किया जाता है। दरअसल, इस डाइट में कीटो शेक्स, प्रोटीन रिच मटन, फिश और कुछ ही सब्जियों को इनक्लूड करते हैं।
इसमें सेब, केला और संतरे को एड नहीं किया जाता है। इस डाईट का प्रभाव एक सप्ताह के अंदर आपके शरीर पर दिखने लगता है (side effects of Keto diet)। कीटो डाईट को आप वेज और नॉनवेज दोनों प्रकार से ले सकते हैं।
कीटो डाइट एक ऐसी हाई.फ़ैट डाइट को कहा जाता है, जिसमें बॉडी एनर्जी के लिए फ़ैट पर निर्भर होने लगती है। इसमें कार्ब्स की मात्रा को सीमित और प्रोटीन को मॉडरेट तरीके से लिया जाता है।
मेडिकल न्यूज टुडे के मुताबिक कीटो डाइट वो डाइट है। जो आहार में फैट की मात्रा को बढ़ाते हुए एक व्यक्ति के डेली कार्ब्स इनटेक को नियंत्रित करता है। इसका मकसद शरीर को कार्बोहाइड्रेट लेने की जगह ऊर्जा के लिए फैट बर्न के लिए प्रोत्साहित करना है। ये एक तरह का मेटाबॉलिक चेंज (Metabolic Change) है, जो शरीर को केटोसिस की स्थिति में डाल देता है।
केटोसिस तब होता है जब बॉडी ब्लड शुगर के चलते फैट बर्न करने लगती है। उस वक्त बॉडी फैट को कीटोन्स में बदल देता है, जो शरीर को एनर्जी प्रदान करता है।
कीटो डाईट में रूटीन कार्बोहाइड्रेट इनटेक को 50 ग्राम या उससे कम तक हर रखा जाता हैं। कीटो आहार में हाई प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट कम रहता है। 70 से 80 प्रतिशत फैट, 10 से 20 प्रतिशत प्रोटीन और 5 से 10 फीसदी कार्बोहाइड्रेट होते हैं। दिनभर में 2ए000 कैलोरी के दैनिक सेवन के आधार पर इन्हें प्रपोर्शनेट किया जाता है।
डाइट में कार्बोहाइड्रेट को एड न करने से शरीर का ग्लूकोज़ लेवल कम होने लगता है। इससे हम धीरे धीरे शरीर में एनर्जी की कमी को महसूस करने लगते है। इससे दिनभर थकान का अनुभव रहता है। पूर्ण रूप से एनर्जी न मिल पाने के कारण आप किसी भी कार्य पर फोक्स नहीं कर पाते हैं। इसका प्रभाव आपकी वर्क प्रोडक्टिविटी पर भी नज़र आने लगता है।
अगर आप अपनी डाइट से अनाज और कई मौसमी फल व सब्जियों को निकाल रहे हैं। इससे आपके शरीर में पोषक तत्वों की कमी होने लगती है। मसल्स बिल्ड करने के लिए कार्ब्स और प्रोटीन शरीर के लिए बेहद ज़रूरी है। इसके अलावा आयरन, मैगनीशियम, विटामिन और मिनरल्स की कमी होने लगती है।
इसमें हाई फैट फूड को प्राथमिकता दी जाती है, जो हार्ट के लिए अनहेल्दी होते हैं। इससे शरीर में फैट की मात्रा बढ़ने लगती है। जो पूरी तरह से हार्ट फ्रैंडली नहीं है। ऐसे में हृदय रोगियों को इस डाइट से परहेज करना चाहिए। इसके अलावा ज्यादा फट लेने से कार्डियोवैस्कुलर डिजीज का खतरा भी बढ़ने लगता है।
फाइबर और कार्ब्स की मात्रा न होने के चलते ये पाचनतंत्र को कमज़ोर बना देता है। अधिक वसा वाले खाद्य पदार्थों को खाने से पेट में एसिडिटी की समस्या रहने लगती है।
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कस्टमाइज़ करेंफलों की कटौती और फैट युक्त फूड खाने से शरीर में डीहाइड्रेट की समस्या बढ़ने लगती है। निर्जलीकरण के चलते पेट में दर्द और एलर्जी का खतरा बढ़ने लगता है। अगर इस समस्या से बचना चाहते हैं, तो इस डाईट को फॉलो करने के साथ वॉटर इनटेक भी ज़रूरी है।
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