पोषक तत्वों से भरपूर दूध एक संपूर्ण आहार है। इसके सेवन से शरीर को एंटीऑक्सीडेंटस और एंटीमाइक्रोबियल गुणों की प्राप्ति होती है, जो माइक्रोबस की रोकथाम में मदद करते है। कुछ लोग दूध को उबालने की जगह कच्चा पीना ही पसंद करते है। उनके अनुसार दूध को उबालने से पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं। मगर क्या वाकई कच्चा दूध स्वास्थ्य को फायदा पहुंचाता है। जानते हैं एक्सपर्ट से कि कच्चे दूध का स्वास्थ्य पर होने वाला प्रभाव और इसे पीने का सही तरीका भी।
न्यूयॉर्क स्टेट डिपार्टमेंट आूफ हेल्थ के अनुसार कच्चे दूध में पाए जाने वाले बैक्टीरिया उल्टी, दस्त, पेट दर्द, बुखार और सिरदर्द का कारण साबित होता हैं। नियमित रूप से कच्चा दूध पीने से हेमोलिटिक यूरेमिक सिंड्रोम का जोखिम बढ़ जाता है, जो किडनी और हृदय को नुकसान पहुंचाता है।
इस बारे में डायटीशियन, डॉ अदिति शर्मा बताती हैं कि दूध का सेवन करने से शरीर को कैल्शियम, पोटेशियम और विटामिन डी की प्राप्ति होती है। इससे शरीर में हैप्पी हार्मोन का सिक्रीशन बढ़ जाता है। सेरोटोनिन का स्तर बढ़ने से नींद की गुणवत्त में सुधार आने लगता है। दूध में ऑयली और कूलिंग प्रॉपर्टीज़ पाई जाती हैं। आयुर्वेद के अनुसार कच्चा दूध हैवी होता है और इसका सेवन करने से शरीर में कई तरह के बैक्टीरिया का प्रभाव बढ़ जाता है। इसका सेवन करने से शरीर में ई कोलाई, लिस्टीरिया और सेल्मोनिला जैसे बैक्टीरिया का स्तर बढ़ जाता है। इस दूध का सेवन करने से डायरिया, वॉमिटिंग और गट लाइनिंग को नुकसान पहुंचने लगता है।
कच्चा दूध में पाए जाने वाली बैक्टीरिया की मात्रा से डायरिया, ब्लोटिंग और पेट दर्द का खतरा बना रहा है। दरअसल, रॉ मिल्क से शरीर में ई कोली और कैम्पिलोबैक्टर जैसे बैक्टीरिया की मात्रा बढ़ने लगती है, जो गट लाइनिंग को इरिटेट करती है। इसके चलते इरिटेबल बॉयल सिंड्रोम और फूड प्वाइजनिंग का जोखिम बढ़ जाता है।
कच्चे दूध से शरीर में लैक्टोज इनटॉलरेंस का खतरा बढ़ने लगता है। हार्मफुल बैक्टीरिया इनटेक से मिल्क एलर्जी की संभावना बढ़ जाती है। इससे वॉजिटिंग और अपच का सामना करना पड़ता है, जिससे पाचनतंत्र के अलावा किडनी और आर्टरीज़ को भी नुकसान का सामना करना पड़ता है।
दूध में पोटेशियम की उच्च मात्रा पाई जाती है, जिससे ब्लड प्रेशर को नियंत्रित किया जाता है। मगर रॉ मिल्क में सेचुरेटिड फैट्स की मात्रा पाई जाती है। इसके चलते हृदय रोग यानि सीवीडी, कोरोनरी हार्ट डिज़ीज़ यानि सीएचडी और स्ट्रोक जैसे हृदय संबंधी बीमारियों का जोखिम बढ़ जाता है। दरअसल, दूध में मौजूद बैक्टीरिया हेमोलिटिक यूरीमिक सिंड्रोम का कारण साबित होता है, जिससे स्ट्रोक का खतरा बढ़ने लगता है।
नेशनल किडनी फाउनडेशन के अनुसार किडनी की मदद से शरीर में मौजूद विषैले पदार्थों को डिटॉक्स करने में मदद मिलती है। मगर कच्चे दूध में पाए जाने वाले बैक्टीरिया किडनी को नुकसान पहुंचाते है और इसकी कार्यक्षमता में गिरावट आने लगती है। ऐसे में कच्चे दूध से तैयार डेयरी प्रोडक्टस को सीमित मात्रा में लें।
न्यू इंग्लेंड जर्नल ऑफ मेडिसिन की रिपोर्ट के अनुसार मार्च 2024 में गायों में बर्ड फ्लू वायरस पाया गया था। गायों में पाया जाने वाला वायरस उनके स्वस्थ्य का पुकसान पहुंचाता है, जिससे दूध में भी इम्प्यूरिटीज़ बढ़ने लगती है। ऐसे में कच्चे दूध को पीने से परहेज करना चाहिए। एफडीए और सीडीसी की रिपोर्ट के अनुसार पाश्चराइजेशन के बाद दूध में पोषक तत्वां की मात्रा ज्यों की त्यों बनी रहती है। ऐसे में कच्चे दूध को पीने से बचना चाहिए।
दूध को पीने से पहले उसे उबालें और फिर उसका सेवन करें। इससे पाचन संबधी समस्याएं हल हो जाती है। साथ ही शरीर में बैक्टीरिया के प्रभाव से बढ़ने वाला एलर्जी का जोखिम कम हो जाता है। कच्चे दूध को पीने से बचना चाहिए
ये एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें दूध को गर्म करके मौजूद कीटाणुओं को नष्ट किया जाता है। पाश्चरीकृत दूध को कम से कम 145° फ़ारेनहाइट तक गर्म किया जाता है और फिर जल्दी से ठंडा किया जाता है। इस प्रक्रिया की शुरूआत वैज्ञानिक लुई पाश्चर ने 1864 में की थी।