खाना पकाने के लिए कुछ खास तरह के तेलों का उपयोग करने के स्वास्थ्य लाभ बताने वालों की कमी नहीं है। इसकी बस एक वजह है कि वे पश्चिम से आए हैं और उनके बारे में ढेर सारी पॉजिटिव बातें की जाती हैं।
कुकिंग ऑयल के रूप में जैतून के तेल के इस्तेमाल के बारे में खूब चर्चा है। इसका श्रेय जाता है इटेलियंस को, जो पास्ता से पिज्जा और रैवियोली तक सब कुछ जैतून के तेल में ही पकाते हैं।
हम भारतीयों के खाना पकाने के लिए इसका इस्तेमाल करना थोड़ा जल्दबाजी में लिया गया फैसला मालूम होता है। क्योंकि हम जिस तरह के व्यंजन बनाते हैं, उने के लिए कई और हेल्दी ऑयल पहले से उपलब्ध हैं।
चेन्नई बेस्ड आहार एवं पोषण विशेषज्ञ डॉ धारिणी कृष्णन बताती हैं, “ जैतून का तेल निश्चित रूप से दिल के स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करता है। हालांकि, इसके लो स्मोक प्वाइंट के कारण, यह भारतीय खाना पकाने के लिए उपयुक्त नहीं है। क्योंकि ज्यादा तापमान पर यह जलने लगता है। हालांकि इसे सलाद और पास्ता को गार्निश करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। पर यह कड़ाई या तवे के उच्च तापमान पर खाना पकाने के लिए उपयुक्त नहीं है।”
तब आप सोचेंगे तो फिर भारतीय व्यंजनों के लिए कौन से तेल का उपयोग करना चाहिए? डॉ. कृष्णन इसके लिए पांच आसानी से उपलब्ध तेलों को इस्तेमाल करने का सुझाव देती हैं :
दक्षिण भारत में खाना पकाने के लिए तिल का तेल का प्रयोग व्यापक रूप से किया जाता है। इसका उपयोग कई तरह के भारतीय व्यंजन बनाने के लिए किया जा सकता है और साथ ही यह आपकी सेहत के लिए फायदेमंद भी है। तिल का तेल स्वस्थ वसा से समृद्ध है, जो हृदय स्वास्थ्य को बढ़ावा देता है। यह एंटीऑक्सिडेंट में भी समृद्ध है और एंटी-इंफ्लामेटरी गुणों के कारण आपकी इम्यूनिटी को भी मजबूत बनाए रखता है। यह त्वचा और बालों के लिए भी काफी फायदेमंद है।
इसे खार्दी ऑयल भी कहा जाता है। यह व्यापक रूप से महाराष्ट्र में प्रयोग किया जाता है, लेकिन हर किसी के द्वारा खाना पकाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। यह लिनोलिक एसिड में समृद्ध है, जो एलडीएल कोलेस्ट्रॉल (खराब कोलेस्ट्रॉल) को कम करता है और वजन घटाने और हृदय स्वास्थ्य को बढ़ावा देने में मददगार है।
यह अपनी विशिष्ट सुगंध के लिए जाना जाता है। नारियल का तेल दक्षिण भारतीय और थाई व्यंजनों में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। इसमें दिल के अनुकूल गुण हैं, अल्जाइमर जैसी बीमारियों को रोकने के लिए भी यह अच्छा है , और एंटीऑक्सिडेंट में भी समृद्ध है जो प्रतिरक्षा को मजबूत रखते हैं। हालांकि, इसका स्मोक प्वाइंट भी कम है। इसलिए इसका इस्तेमाल डीप फ्राई करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए।
उत्तर भारत में सरसों का तेल का ही ज्यादातर इस्तेमाल किया जाता है। अगर इसे सीमित मात्रा में उपयोग किया जाए तो यह हृदय स्वास्थ्य को बढ़ावा देता है, खराब कोलेस्ट्रॉल को कम करता है, और कई तरह के संक्रमणों से लड़ने में भी मदद करता है।
मूंगफली का तेल अन्य खाना पकाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले अन्य तेलों की तुलना में हाई स्मोक प्वाइंट वाला ऑयल है। यह विटामिन ई और एंटीऑक्सिडेंट का एक अच्छा स्रोत भी है, जो शरीर में मुक्त कणों को कम करने में मदद करता है, जिससे आपको कई गैर-संचारी बीमारियों और संक्रमणों से सुरक्षित रखा जाता है।
अपनी रुचि के विषय चुनें और फ़ीड कस्टमाइज़ करें
कस्टमाइज़ करेंकिसी भी कुकिंग ऑयल का उपयोग करते समय आपको इन बिंदुओं को ध्यान में रखना चाहिए
डॉ. कृष्णन बताती हैं, “खाना पकाने के दौरान तेल को कभी ज़्यादा गरम न करें, ऐसा करने से तेल के धुएं के ऊपर तापमान में वृद्धि हो सकती है और इससे मुक्त कण बनाने, तेल की पौष्टिकता नष्ट होने लगती है, जिससे वह सेहत के लिए नुकसानदायक हो जाता है।”
याद रखने योग्य एक बात और है, वह यह कि जब भी कुकिंग ऑयल के प्रयोग की बात आती है, तो संयम का नियम जरूर फॉलो करना चाहिए। वह चेतावनी देती हैं, “एक वयस्क को प्रति दिन 15-20 मिलीलीटर से अधिक तेल का उपभोग नहीं करना चाहिए। तेलों की अत्यधिक खपत कोलेस्ट्रॉल के स्तर को बढ़ा सकती है और आपके पाचन को प्रभावित कर सकती है। चूंकि पाचन पोषक तत्वों के अवशोषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, इसलिए ज्यादा मात्रा में तेल की खपत पोषक तत्वों को शरीर द्वारा ठीक से अवशोषित कर पाने में बाधा उत्पन्न करती है। इससे मोटापा भी बढ़ सकता है।”
अंत में, डॉ. कृष्णन ने वनस्पति तेलों के उपयोग से बचने की सलाह देती हैं, क्योंकि इनमें ट्रांस फैट मौजूद होता है। वह चेतावनी देती हैं, “ट्रांस फैट से भरपूर तेलों का प्रयोग आमतौर पर स्मॉल बेकरी जॉइंट्स पर पफ्स और पेस्ट्री बनाने में मक्खन के सस्ते विकल्प के तौर पर किया जाता है। यह किसी के हृदय स्वास्थ्य और वेट लॉस के लिए खतरा पैदा कर सकता है।”