रुजुता दिवेकर बना रहीं हैं सिल-बट्टे पर चटनी, हम आपको बताते हैं इस पर बनी चटनी खाने के फायदे

ईट लोकल के साथ-साथ अगर आप अपने ट्रेडिशनल और लोकल उपकरणों की ओर भी लौट चलें तो क्या बात है! सेलिब्रिटी डायटीशियन रुजुता दिवेकर ने आज ऐसा ही किया।
Chutney low glycemic index wala hai.
चटनी में एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं। चित्र: शटरस्टॉक
टीम हेल्‍थ शॉट्स Updated: 26 Jun 2021, 18:44 pm IST
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अगर आपको अपनी दादी या नानी के हाथों की बनी चटनी का स्वाद याद है, तो इस बात की गारंटी है कि वो आपको कभी भी बाजार के कैचअप या मिक्सी में बनी चटनी में वह स्‍वाद नहीं आया होगा। नि:संदेह दादी-नानी के हाथ के बने खाने का स्वाद ही अलग होता है। पर इसमें कमाल उनके मसालों के साथ-साथ उनके ट्रेडिशनल उपकरणों का भी होता है।

ये तो आप जानती ही होंगी कि सेलिब्रिटी डायटीशियन रुजुता दिवेकर हमेशा ईट लोकल पर फोकस करती हैं। पर आज उन्होंने लोकल खाद्य सामग्री के साथ ही एक ऐसे लोकल उपकरण का भी प्रयो‍ग किया, जिसने चटनी के स्वाद को और भी बढ़ा दिया। जी हां आज रुजुता सिल बट्टे का इस्तेमाल करते हुए पूरी तरह इसके प्यार में थीं। और उन्हों ने इसे अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर भी शेयर किया।

बदल जाता है स्वाद

इसी तरह इलेक्ट्रिक पारम्परिक तरीकों से चटनी या मसाला पीसने से उनका नैचुरल स्वाद बना रहता है। अक्सर इलेक्ट्रॉनिक मशीनों की मदद से मसाले पीसने से मसालों के स्वाद बदल जाते हैं।

रुजुता दिवेकर लोकल फूड के साथ लोकल उपकरणों की भी सिफारिश करती हैं। चित्र: Rujuta/fb

वे लिखती हैं- 

मैं खुशकिस्म त हूं कि मैं ऐसी महिलाओं के बीच बड़ी हुई हूं जो खाना बनाने और खिलाने को लेकर काफी उत्सा ही रहीं हैं। हमारे पहली मंजिल पर एक मंगलोरियन आंटी रहती थीं। जो मुझे और मेरी बहनों को खूब प्याकर करती थीं और वे हमें हमेशा सिल बट्टे पर चटनी बनाकर खिलाती थीं।

जो भारत में रहता है वह मंगलोरियन इडली से परिचित होगा। नरम, फ्लफी और एक अलग स्वाकद से भरी हुई। मुझे लगता है कि मेरी शारीरिक शक्ति विविधता से आती है, और उसका श्रेय उस समृद्ध भोजन को जाता है, जो मुझे मेरे बचपन में मिला। इसके लिए उन सभी महिलाओं का धन्यवाद।

सही अर्थों में कहें तो भोजन एक आशीर्वाद है। जब इसे सही तरह से पकाया जाता है, तो यह मानसिक और शारीरिक शक्ति दोनों प्रदान करता है। सिल बट्टे पर जब चटनी पीसी जाती है तो वह इतनी बारीक होती है कि आप उसे कपड़े में छान सकती हैं।

मुझे ऐसी चटनी बनाने में कई साल लग गए। पर आज सब फाइनली मैंने इसे बना लिया तो मुझे लगा कि मैंने कुछ अचीव कर लिया है। पाटा-वरवंता (सिल-बट्टा) पर मैंने आज सुबह चटनी बनायी। फूड भी एक कल्चिर है, आप जैसा खाते हैं, वैसा बनाना भी सीख जाते हैं। बस हां थोड़ा सा समय लगता है।

आज मैंने जो चटनी बनायी उसमें नारियल, अदरक, नमक, करी पत्ता, मिर्ची और थोड़ी सी चीनी मिलाई।

क्योंं जरूरी खाने में चटनी एड करना

दुनिया भर के फूड्स में किसी न किसी तरह की चटनी शामिल की जाती है। आहार विशेषज्ञ भी हर मील में चटनी या अचार एड करने की सलाह देते हैं। असल में चटनी नेचुरल फॉर्म में तैयार होती हैं। इसमें वे सभी पोषक तत्वे होते हैं, जिनकी हमारे शरीर को जरूरत होती है। भारतीय आहार में तरह-तरह की चटनियां शामिल की जाती हैं। इनमें धनिया, पुदीना, अदरक, लहसुन आंवला, मूंगफली, नारियल आदि की चटनियां मुख्यश तौर पर बनाई जाती हैं।

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अगर आप ि‍सिल बट्टेे पर चटनी बनाती हैं, तो बहुुत सारे विटामिन और खनिज आपको नेचुरल फॉर्म मेें मिलते हैं। चित्र: शटरस्‍टॉक

इनमें विटामिन बी, सी और एंटी बैक्टीबरियल गुण होते हैं, जो मौसमी संक्रमण से बचाने में मदद करते हैं। यह पाचन को दुरुस्तस करती हैं और भूख बढ़ाती हैं।

अगर आप चटनी में लहसुन को भी शामिल करती हैं तो यह एक प्राकृतिक एंटीबायोटिक, एंटी-फंगल और एंटी बैक्टीरियल हर्ब है। यह आपकी एजिंग की रफ्तार को भी धीमा कर देती है।

सिल-बट्टे पर बनी चटनी खाने के फायदे

तो अगर बात करें लोकल उपकरणों की तो इनमें सिल-बट्टे का खास स्थाीन है। गांवों में मसाला पीसने के लिए भी इसी का इस्ते माल किया जाता था। यह पत्थसर का बना होता है और इस पर बनी चटनी का अलग ही स्वा द होता है।

इसकी वजह है मसालों का धीमी रफ्तार से पीसा जाना। इलैक्ट्रिक ग्राइंडर या मिक्सी में तेजी से मसाला पिसता है और उससे गर्मी पैदा हो जाती है। अगर आप इसमें अदरक या लहसुन की चटनी पीसती हैं, तो वह कुछ कड़वा स्वाद देगी। जबकि सिलबट्टे पर यह आराम से पीसे जाते हैं और अपना नेचुरल स्वा द बरकरार रखते हैं।

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