खाना जैसे शरीर का भोजन है, उसी तरह विचार और कथाएं आत्मा का भोजन है। अंग्रेजी में कहते हैं फूड फॉर थॉट (Food for thought)। हमने जब लिखना और पढ़ना नहीं सीखा था, तब से हम कथाएं सुनते-सुनाते आ रहे हैं। आज जब तकनीक ने हर असंभव को संभव कर दिखाया है, तब भी कथाओं की जादुई दुनिया आकर्षित करती है। आज इसी दुनिया में शहतूत को ढूंढते हैं। शहतूत एक ऐसा रसीला और स्वादिष्ट फल है, जिसे आयुर्वेद में औषधि की संज्ञा दी गई है। पर क्या आप जानते हैं कि यह देसी फल असल में विदेशी है।
हमारे स्कूल की बाउंड्री वॉल के साथ-साथ शहतूत के पेड़ों की कतार थी। स्मृतियों में अब भी इनकी छांव और फलों की मिठास से भरी है दोपहर। दिल्ली में शहतूत के पेड़ इतने अधिक थे कि आप इन्हें यहां का स्थानीय फल मान सकते हैं। शहतूत एक ऐसा रसीला और स्वादिष्ट फल है, जिसे आयुर्वेद में औषधि की संज्ञा दी गई है। पर क्या आप जानते हैं कि यह देसी फल असल में विदेशी है। यह मूलत: चीन का फल है। जिसका इतिहास तकरीबन 5 हजार साल पुराना है।
खासतौर से सफेद रंग का शहतूत (White Mulberry aks Morus alba) की उत्पत्ति चीन में हुई बताई जाती है। सफेद शहतूत की पत्तियां ही रेशम के कीड़ों का प्रिय भोजन हैं। यानी रेशम उद्योग में भी शहतूत की भूमिका बहुत खास है। यही वजह है कि चीन और जापान में इसे रेशम का पेड़ या सिल्क ट्री कहा जाता है।
सबसे पहले चीन में ही तकरीबन 5000 साल पहले शहतूत की खेती शुरू हुई। उसके बाद यह एशिया, यूरोप, अमेरिका, ईरान तक फैला।
भारत में भी इस फल की मौजूदगी इतनी पुरानी है कि प्राचीन ग्रंथों में भी इसका उल्लेख मिलता है। डोगरी और बांग्ला भाषा में इसे तूत कहा जाता है। तूत के नाम से ही आयुर्वेद में इसे औषधीय फल के नाम से संदर्भित किया गया है। चरक संहिता और सुश्रुत संहिता में इसे शीतल, वात-पित्त शामक और बलवर्धक माना गया है। इसलिए गर्मियों के आहार में इसे शामिल करने की सलाह दी गई है।
फिलहाल भारत के मैदानी और पहाड़ी इलाकों में इसके दरमियाने कद के पेड़ देखे जा सकते हैं। स्थानीय बाजार से लेकर ऑनलाइन मार्ट तक शहतूत बेचा और खरीदा जा रहा है। इसका अपना नेचुरल स्वाद इतना खास होता है कि बिना कोई नमक या मसाला मिलाए भी आप इसे खा सकते हैं। हालांकि दिल्ली की सड़क किनारे के खोमचों पर इसे हरे पत्ते में नमक छिड़ककर बेचा जाता है।
अगर आपके नाखून बहुत ज्यादा टूटते हैं, इम्युनिटी कम हो गई है, गर्मी में भी सर्दी-जुकाम से परेशान रहती हैं और त्वचा की रंगत खोने लगी है, तो आपको अपनी समर डाइट में शहतूत (Mulberry) जरूर शामिल करने चाहिए। इसमें विटामिन सी, कैल्शियम, आयरन, एंटीऑक्सीडेंट और फाइबर भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। बढ़ती उम्र के साथ महिलाओं के लिए इन सभी पोषक तत्वों की जरूरत बढ़ जाती है। यही वजह है कि महिलाओं के लिए शहतूत (Mulberry) को सुपरफूड कहा जाता है।
गर्भावस्था और स्तनपान के अलावा भी बहुत सारी महिलाएं खून की कमी एवं एनीमिया का सामना करती हैं। शहतूत आयरन से भरपूर होता है, जिससे हीमोग्लोबिन का स्तर बढ़ाने में मदद मिलती है। अगर आपको भी पीरियड्स के दौरान बहुत ज्यादा कमजोरी महसूस होती है, तो यह शहतूत आपके लिए फायदेमंद हो सकता है।
शहतूत में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट्स और विटामिन सी आपकी त्वचा को उम्र से पहले बूढ़ा नहीं होने देते। वे झुर्रियां और महीन रेखाओं से त्वचा की रक्षा करते हैं और इसकी कुदरती रंगत बनाए रखते हैं।
स्कैल्प में ब्लड सर्कुलेशन बढ़ाकर शहतूत बालों को जड़ों से मज़बूत बनाता है। जिससे वे कम टूटते-झड़ते हैं। खासतौर प्रसव के बाद शरीर में कमजोरी से बालों का झड़ना शुरू हो जाता है, तब शहतूत खाना फायदेमंद होता है।
हॉर्मोनल असंतुलन महिलाओं में एक कॉमन समस्या है। डिलीवरी के बाद, पीएमएस के दौरान और मेनोपॉज के बाद हॉर्मोनल असंतुलन और भी ज्यादा परेशान करने वाला हो सकता है। जिससे हॉट फ्लैश, मूड स्विंग्स और थकान का सामना करना पड़ता है। ऐसी स्थिति में शहतूत के आयरन, फाइबर और एंटीऑक्सीडेंट्स तत्व राहत देने वाले साबित होते हैं।
ज्यादातर महिलाएं 30 के बाद बोन डेंसिटी खोने लगती हैं। जबकि शहतूत में मौजूद विटामिन के हड्डियों को घनत्व खोने से बचाता है और उन्हें मजबूत बनाता है।
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