हम दाल मखनी, मटर पनीर और मलाई मशरूम खूब शौक से खाते हैं। मन ही मन यह सोचते भी हैं कि स्वादिष्ट खाने के साथ ही शरीर को जरूरी पोषक तत्वों की पूर्ति भी हो गई। हालिया अध्ययन बताते हैं कि हमारी सोच गलत है। पीआईजीएमईआर अध्ययन से पता चलता है कि उत्तर भारतीयों को अपने पोषक तत्वों, खासकर नमक, फास्फोरस, पोटेशियम और प्रोटीन के सेवन को संतुलित करने की जरूरत है। उत्तर भारतीय आहार में फॉस्फोरस अधिक और पोटेशियम कम होता है। यह हमारे स्वास्थ्य को नुकसान (healthy nutrition) पहुंचाता है।
भारत के द जॉर्ज इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ के सहयोग से चंडीगढ़ के पोस्टग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (पीआईजीएमईआर) ने उत्तर भारतीय भोजन पर एक अध्ययन किया। इसमें उत्तर भारतीयों की आहार संबंधी आदतों पर नज़र रखी गई। स्टडी में स्वस्थ एडल्ट और क्रोनिक किडनी रोग से पीड़ित वयस्कों को शामिल किया गया।
इसमें 400 से अधिक सब्जेक्ट के आहार पैटर्न का विश्लेषण किया गया। यह पाया गया कि ज्यादातर उत्तर भारतीय भोजन में अनुशंसित मात्रा से अधिक नमक और फास्फोरस का सेवन किया गया था। उनमें प्रोटीन और पोटेशियम की मात्रा कम थी। अध्ययन में शामिल 65% व्यक्तियों ने प्रतिदिन आठ ग्राम सोडियम का सेवन किया। यह अध्ययन फ्रंटियर्स इन न्यूट्रिशन जर्नल में प्रकाशित हुआ था।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) दैनिक आहार में 2 ग्राम सोडियम (पांच ग्राम नमक के बराबर) की सिफारिश करता है। 19 वर्ष और उससे अधिक फॉस्फोरस इंटेक 700 एम जी से अधिक नहीं होना चाहिए। साथ ही वयस्कों को उनके प्रत्येक किलोग्राम वजन के लिए प्रतिदिन लगभग 0.8 ग्राम प्रोटीन जरूरी है। यह प्रत्येक 10 किलो वजन के लिए लगभग 7 ग्राम है। बहुत अधिक नमक और बहुत कम प्रोटीन के भी साइड इफेक्ट हैं।
अध्ययन में पाया गया कि उत्तर भारतीयों में फास्फोरस का सेवन अनुशंसित मात्रा के स्तर से अधिक है। अतिरिक्त फास्फोरस हड्डियों से कैल्शियम खींच लेता है, उन्हें कमजोर करता है। ब्लड वेसल्स, फेफड़ों, आंखों और हृदय में कैल्शियम जमा होने लगता है।
शरीर में फास्फोरस का हाई लेवल बोन डेंसिटी को कमजोर कर सकता है। ऑस्टियोपोरोसिस या हड्डी के फ्रैक्चर के खतरे को बढ़ा सकता है, क्योंकि यह कैल्शियम अवशोषण में हस्तक्षेप करता है। यह हड्डियों की मजबूती के लिए एक आवश्यक मिनरल है।
अत्यधिक फास्फोरस का सेवन विशेष रूप से प्रोसेस्ड फ़ूड और हाई फास्फोरस वाले खाद्य पदार्थों से किडनी डिजीज हो सकता है। हाई फास्फोरस का सेवन इलेक्ट्रोलाइट असंतुलन में योगदान कर सकता है, जिससे अनियमित हार्ट बीट जैसे लक्षण हो सकते हैं।
पोटेशियम युक्त खाद्य पदार्थ जैसे नट्स, हरी सब्जियां, कीवी और केले जैसे फलों का सेवन (healthy nutrition) करना चाहिए। शरीर को पर्याप्त पोटेशियम नहीं मिलने पर मांसपेशियों में कमजोरी और थकान हो सकती है। कम पोटेशियम के स्तर से मांसपेशियों में कमजोरी, ऐंठन और थकान हो सकती है, जिससे शारीरिक प्रदर्शन और समग्र ऊर्जा स्तर प्रभावित हो सकता है।कम पोटेशियम का सेवन हाई ब्लड प्रेशर, अनियमित दिल की धड़कन के बढ़ते जोखिम से जुड़ा हुआ है।
सोडियम, कैल्शियम और मैग्नीशियम के साथ पोटेशियम शरीर में प्रमुख इलेक्ट्रोलाइट्स में से एक है। पोटेशियम लेवल में असंतुलन इलेक्ट्रोलाइट संतुलन को बाधित कर सकता है, जिससे अनियमित दिल की धड़कन, मांसपेशियों में कमजोरी और डीहाइड्रेशन जैसे लक्षण हो सकते हैं।
लो पोटैशियम लेवल मेटाबोलिक असंतुलन, इंसुलिन रेसिस्टेंस और ग्लूकोज मेटाबोलिज्म में व्यवधान हो सकता है। इससे टाइप 2 मधुमेह, मेटाबोलिक सिंड्रोम और अन्य मेटाबोलिक स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा बढ़ सकता है।
प्रोटीन लेवल कम रहने पर लिवर डिजीज, किडनी डिजीज हो सकता है। प्रोटीन मालन्यूट्रीशन होने से शरीर को आवश्यक कैलोरी, विटामिन और मिनरल्स नहीं मिल पाते हैं। प्रोटीन मालन्यूट्रीशन क्वाशियोरकोर डिजीज का कारण बनता है, जिसमें गंभीर प्रोटीन की कमी होती है। यह फ्लूइड रिटेंशन,सूजन, फूले हुए पेट का कारण बनता है। क्वाशियोरकोर सबसे अधिक बच्चों को प्रभावित करता है, विशेषकर विकासशील देशों में जहां गरीबी और खाद्य असुरक्षा (healthy nutrition) है।
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