कुकिंग के लिए इन दिनों बाज़ार में कई प्रकार के ऑयल मौजूद है। अलग-अलग विज्ञापनों और खूबियों से अपनी इमेज बना रहे इन कुकिंग ऑयल को लोग प्रचुर मात्रा में रोजमर्रा के जीवन में इस्तेमाल करते है। मुझे आज भी याद है बचपन में मां के हाथ से बनी हर सब्जी सरसों के तेल में ही तैयार होती थी और वो परंपरा अब भी जारी है। सरसों के तेल में पकी सब्जी खाने में जितनी स्वादिष्ट हुआ करती थी, पचाना भी उतना ही आसान था। वो इसे उत्तर भारतीयों का अपना तेल कहा करती थी। खाने के अलावा बालों को पोषण देने के लिए भी इसी का इस्तेमाल किया करती थीं। सरसों का तेल आहार में स्वाद जोड़ने के अलावा हार्ट हेल्थ के लिए बेहद कारगर है। जानते हैं सरसों का तेल हृदय स्वास्थ्य के लिए किस तरह से है फायदेमंद (mustard oil benefits for heart health) ।
रिसर्च गेट के अनुसार भारत में हर साल 2.3 मिलियन मीट्रिक टन सरसों तेल की खपत होती है, ये आंकड़ा देश के कुल खाद्य तेल बाजार का लगभग 30 फीसदी है। भारत में ये आंकड़ा पिछले 40 वर्षों में 5 फीसदी तक बढ़ चुका है। खासतौर से उत्तर भारत, उत्तर पूर्व और पूर्व में इसकी डिमांड में इज़ाफा हुआ है। इस बारे में आयुर्वेद एक्सपर्ट डॉ अंकुर तंवर बताते हैं कि औषधीय गुणों से भरपूर सरसों की पैदावार उत्तर भारत में प्रचुर मात्रा में होती है। जलवायु के हिसाब से ये तेल स्वास्थ्य के लिए बेहद फायदेमंद है। इससे हृदय रोगों से बचा जा सकता है।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के अनुसार सरसों के तेल में मोनोअनसैचुरेटेड फैटी एसिड की उच्च मात्रा पाई जाती है। इससे हृदय स्वास्थ्य को मज़बूती मिलती है। रिसर्च के अनुसार सरसों के तेल में खाना पकाने से शरीर में ट्राइग्लिसराइड, रक्तचाप और ब्लड शुगर के स्तर को नियंत्रित करने में मदद करता हैं। ये सभी हृदय रोग का मुख्य कारण साबित होते हैं।
सरसों के तेल से शरीर को ओमेगा-3 फैटी एसिड की प्राप्ति होती है। इससे शरीर में बैड कोलेस्ट्रॉल यानि एलडीएल के स्तर को कम करके गुड कोलेस्ट्रॉल एचडीएल को बढ़ाने में मदद मिलती है। हेल्दी लिपिड प्रोफाइल की मदद से सरसों का तेल हार्ट अटैक और स्ट्रोक के खतो से बचाने में मदद करता है।
लिपिड एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया के मुताबिक सरसों का तेल एशिया में सबसे लोकप्रिय खाना पकाने वाले तेलों में से एक है। खासतौर से भारत में प्रचुर मात्रा में लोग इसका सेवन करते हैं। इसमें मौजूद अल्फा लिनोलेनिक एसिड की मात्रा सूजन और आफक्सीडेटिव तनाव को दूर करके हृदय रोगों के जोखिम को कम कर देता है।
इस बारे में बातचीत करते हुए इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट डॉ विनीता अरोड़ा बताती हैं कि कुकिंग के लिए किसी भी तेल को सीमित मात्रा में इस्तेमाल करना चाहिए। दरअसल, सरसों के तेल का सेवन करने से शरीर को मोनोअनसैचुरेटेड फैटी एसिड की प्राप्ति होती है। इसमें मौजूद ओमेगा 3 फैटी एसिड की मात्रा हृदय रोगों से राहत दिलाने में मदद करती है।
इसके अलावा सरसों के तेल में एंटी इंफ्लामेटरी गुण पाए जाते हैं। इससे शरीर में बढ़ने वाली सूजन व दर्द को कम किया जा सकता है। सरसाें के तेल शरीर में वसा के स्तर को बढ़ने से रोकता है और ब्लड सर्कुलेशन को नियमित बनाए रखता है। इससे आर्टरीज़ में बनने वाले प्लाक को रोकने में मदद मिलती है।
सरसों के तेल का सेवन करने से शरीर को एरुसिक एसिड की प्राप्ति होती है। इससे हाई ब्लड प्रेशर की समस्या को नियंत्रित करके शरीर में ब्लड सर्कुलेशन को बढ़ा मिलता है। इससे प्रदान करता हैए ऑक्सीजनेटिड ब्लढ शारीरिक अंगों में पहुंचता है और शरीर में हृदय रोगो का जोखिम कम होने लगता है। इसके सेवन से शरीर में बैक्टीरियल इंफेक्शन का खतरा कम होने लगता है।
सरसों के तेल का सेवन करने से शरीर को ओमेगा 3 और ओमेगा 6 फैटी एसिड की प्राप्ति होती है। इससे शरीर में गुड कोलेस्ट्रॉल के स्तर को बढ़ाने में मदद मिलती हैं। हेल्दी लिपिड प्रोफ़ाइल से हार्ट अटैक और स्ट्रोक के खतरे से बचा जा सकता है। इसके अलावा सरसों के तेल का सेवन शरीर में इंफ्लामेशन को भी कम किया जा सकता है।
इसमें पाए जाने वाले हेल्दी फैट्स न केवल कोलेस्ट्रॉल में सुधार करते हैं, बल्कि शरीर में ट्राइग्लिसराइड के स्तर को कम करके आर्टरीज़ में जमने वाले प्लाक की समस्या को हल कर देते हैं। इससे हार्ट अटैक के खतरे से बचा जा सकता है और शरीर संतुलित बना रहता है। इसके सेवन से शरीर को विटामिन, मिनरल और एंटीऑक्सीडेंटस की प्राप्ति होती है। इससे शरीर कई समस्याओं के खतरे से बचा रहता है।
ब्रिटिश जर्नल ऑफ न्यूट्रिशन की रिपोर्ट के अनुसार सरसों के तेल में पके खाने से एपिटाइट को नियंत्रित किया जा सकता है, जिससे शरीर में अतिरिक्त कैलेरीज़ जमा होने से बचा जा सकता है। इसके अलावा शरीर का मेटाबॉलिज्म बूस्ट होने लगता है। इसमें पाए जाने वाले हेल्दी फैट्स शरीर में जमा होने वाली चर्बी की समस्या का हल कर देते है। मोटापा कम होने से शरीर में हृदय रोगों के खतरे को कम किया जा सकता है।
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