कीटो डाइट (Keto diet) में हाई फैट (High Fat) और लो कार्ब (Low Carbs) होते हैं। मीट, हाई फैटी एसिड वाली फिश, अंडे, चीज आदि कीटो डाइट में शामिल होते हैं। इसमें लिवर और किडनी का कार्य बढ़ जाता है। अमेरिका में सबसे पहले एपिलेप्सी के इलाज के लिए कीटो डाइट का प्रयोग किया गया था। काफी बाद में इसे जल्दी वज़न घटाने के लिए अपनाया जाने लगा। अमूमन अल्जाइमर्स डिजीज में कीटो डाइट (keto diet and alzheimer’s disease) लेने की सलाह दी जाती है। पर क्या वाकई कीटो डाइट इस बीमारी के जोखिम को कम कर सकती है? आइए चेक करते हैं।
इस बात पर कई रिसर्च हो रहे हैं कि फैट ब्रेन के लिए एक शक्तिशाली ईंधन हो सकते हैं। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, माइंड के सेल्स यानी न्यूरॉन्स की क्षमता भी कम होने लगती है। उम्रदराज न्यूरॉन्स एनर्जी के लिए ग्लूकोज बर्न करने की अपनी क्षमता खोने लगते हैं।
हाल के कुछ नए रिसर्च से यह पता चला है कि कीटोजेनिक डाइट अल्माइमर्स के पेशेंट के लिए फायदेमंद होता है। यह ब्रेन की कई घातक बीमारियों की भी रोकथाम करने में मदद करता है। कीटो डाइट अल्जाइमर के रोगियों के लिए किस तरह काम करता है, यह जानने के लिए हमने बात की न्यूट्रीशनिस्ट और लाइफ स्टाइल कोच डॉ. अमृता मिश्रा से।
अल्जाइमर्स डिजीज न्यूरोडीजेनेरेटिव डिसऑर्डर है, जो मुख्य रूप से कॉगनिटिव फंक्शन यानी संज्ञानात्मक कार्य को नुकसान पहुंचाता है। अल्जाइमर (Alzheimer’s Disease) में मरीज को भूलने की बीमारी हो जाती है। याददाश्त की कमी होना, निर्णय न ले पाना, बोलने में दिक्कत आना इसके प्रमुख लक्षण हैं। दिक्कत बढ़ने पर इसकी वजह से रोगियों में एंग्जाइटी और डिप्रेशन की समस्या भी हो सकती है।
डॉ. अमृता के अनुसार, कीटो डाइट मुख्य रूप से ब्रेन डिसऑर्डर और मिर्गी (Epilepsy) के रोगियों के इलाज के लिए ही चलन में लाया गया। कीटो डाइट में अत्यधिक वसा वाला भोजन लिया जाता है। हमारे ब्रेन में भी 90 प्रतिशत फैट ही होता है। इसलिए यह न्यूरोन डैमेज को रोकने में मदद करता है।
कीटो डाइट न्यूरॉन्स के लिए वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत के रूप में कार्य करती है, जो अल्जाइमर के लक्षणों में सुधार करने में मददगार है। हाई फैट और लो कार्ब वाली डाइट ग्लूकोज के लिए एनर्जी का एक वैकल्पिक स्रोत है। इसमें मेटाबॉलिज्म को कार्बोहाइड्रेट से फैटी एसिड की ओर शिफ्ट कर दिया जाता है।
कीटोन डाइट हेपेटिक मेटाबॉलिज्म के बाद कीटोन बॉडी के प्रोडक्शन को बढ़ा देता है। यह सेंट्रल नर्वस सिस्टम द्वारा एक नई ऊर्जा विकल्प के रूप में उपयोग किया जा सकता है। ऐसा माना जाता है कि हाई फैट और लो कार्ब पर आधारित डाइट शरीर को कीटोसिस स्टेट में ले जाता है। इसका प्रभाव उपवास के समान होता है।
कीटोसिस उम्र बढ़ने वाली मस्तिष्क कोशिकाओं पर एक न्यूरोप्रोटेक्टिव क्रिया उत्पन्न करता है। इससे ब्रेन इन्फ्लामेशन कम हो जाता है और माइटोकॉन्ड्रिया की कार्यप्रणाली में भी सुधार हो जाता है। यह रिसर्च से प्रूव हो चुका है कि न्यूरोडीजेनेरेटिव डिसॉर्डर में ब्रेन की एनर्जी मेटाबॉलिज्म में बाधा उत्पन्न हो जाती है। इसलिए कीटोन बॉडी ब्रेन एनर्जी को सपोर्ट कर सकते हैं और अल्जाइमर जैसे न्यूरोडीजेनेरेटिव डिसऑडर की प्रगति को धीमा कर सकते हैं। हालांकि इस पर और अधिक शोध होना बाकी है।
कीटोन बॉडी लिवर के द्वारा उत्पन्न किया जाता है। शरीर में ग्लूकोज के नहीं रहने पर यह एनर्जी के वैकल्पिक स्रोत के रूप में प्रयोग किया जाता है। फैटी एसिड के टूटने से कीटोन्स उत्पन्न होते हैं। इसे केमकली कीटोन बॉडी कहा जाता है।
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