मित्रो दो बातें अगर हम जान लें तो सारी समस्या सुलझ जाती है। एक मनुष्य की आंतरिक शारीरिक बनावट (इंटरनल एनाटोमी) पर आधारित खाद्य पदार्थ और दूसरा पृथ्वी के जिस भू भाग में हम रहते हैं, वहां की उपजी हर खाद्य वस्तु का अपने शरीर के लिए उपयोग।
आइये पहले इस एक्सटर्नल व इंटरनल एनाटोमी को समझें। प्रकृति ने हर जीव को विशेष अंग दिये हैं, अपने जीवन यापन हेतु। जैसे मांसाहारी जीवों यथा शेर, चीते, गीदड़, लोमड़ी कुत्ते को पंजे से लेकर दांत तक चीर-फाड़ हेतु दिये हैं। वहीं हाथी, भैंस या गाय को नहीं दिये। हमें यानि मनुष्यों को भी नहीं दिये। यानि मनुष्य को प्रकृति ने शाकाहारी बनाया है, न कि मांसाहारी। अत: हर शाकाहारी खाद्य पदार्थ हमारी सेहत के लिए मुफीद या उपयुक्त है।
आप दूध-दही के बारे में मत सोचिए, क्योंकि वह भी प्लांट बेस्ड नहीं है। इस विषय पर एक रोचक तथ्य जिससे हमारी इंटरनल एनाटोमी की बात भी समझ आ जाएगी।
अधिकांश बच्चों में शरीर लैक्टोज नामक एंजाइम बनाता है, जिस वजह से वे दूध को पचा सकते हैं। कई हजार साल पहले तक, ये एंजाइम ब्च्चे के बड़े होने पर बनना बंद हो जाता था। ज्यादातर वयस्क लैक्टोज असहिष्णु रजिस्टेंट थे। एक अध्ययन में हाल ही में PNAS में प्रकाशित एक पत्र से पता चला है कि 3000 साल पहले मंगोलियाई लोगों ने अपने जानवरों से दूध लेना सीखा और विभिन्न प्रकार के डेयरी उत्पाद तैयार करना भी। लेकिन, अधिक पेचीदा तथ्य यह है कि प्राचीन मंगोलियाई लोग लैक्टोज असहिष्णु थे।
आधुनिक मंगोलिया में, पारंपरिक पशुपालक डेयरी उत्पादों से अपनी कुल कैलोरी खपत का लगभग एक तिहाई मिलता है। अपने डेयरी उत्पादों के लिए वे विविध चीज, दही और अन्य किण्वित दुग्ध उत्पादों के लिए वे सात प्रकार के स्तनधारियों का उपयोग करते हैं। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि उनमें से 95 प्रतिशत लोग लैक्टोज असहिष्णु हैं। वे कच्चा या अपरिशोधित दुग्ध नहीं पचा सकते, लेकिन प्रोसेस्सड मिल्क प्रोडक्ट पचा सकते हैं। क्योंकि इन प्रोडक्ट्स से दूध की चीनी जिसे लेक्टोज़ कहते हैं निकल जाती है।
एक अन्य थ्योरी के अनुसार प्राचीन बर्तनों से मिले रासायनिक सुबूत से पता चलता है कि तब किसानों को पनीर या दही में प्रयुक्त् दूध लैक्टोज रहित होते थे। यही नहीं समय के साथ-साथ जीन म्यूटेशन प्रक्रिया से मनुष्य ने लेक्टोज़ को पचाने की शक्ति भी प्राप्त करनी शुरू कर दी थी। इसीलिए कुछ अध्यय जब एनिमल फैट को हृदय के लिए हानिकारक बताते हैं, तो गलत नहीं कहते। क्योंकि प्रकृति ने हमें उसे पचाने के काबिल नहीं बनाया था।
अब दूसरे मुद्दे यानि प्रकृति द्वारा उस भू भाग की उपज ही सही खाद्य है, वहां रहने वालों के लिए। इसके लिए हम उदाहरण चुनते है आज बाजार द्वारा महिमा मंडित ओट्स नामक अनाज को और अपने गरीब से बाजरे रागी व ज्वार को। आइये इनकी फूड वैल्यू की तुलना करें।
बाजरा – कैलोरी 3.78 और ओट्स – कैलोरी 3.89।
सबसे पहले, मैक्रो पर एक नज़र डालते हैं। इनमें से प्रत्येक ग्राम में सूचीबद्ध है और हमेशा की तरह, आसान तुलना के लिए 200 कैलोरी के लिए सामान्यीकृत है।
पोषक तत्व बाजरा ओट्स
प्रोटीन 6 ग्राम 9 ग्राम
कार्बोहाइड्रेट 39 ग्राम 34 ग्राम
फाइबर 4 ग्राम 5 ग्राम
फैट 2 ग्राम 4 ग्राम
मोनोअनसैटुरेटिड फैट 0 ग्राम 4 ग्राम
पॉलीअनसैचुरेटिड फैट 1 ग्राम 1 ग्राम
सैचुरेटेड फैट 0 ग्राम 1 ग्राम
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कस्टमाइज़ करेंअब विटामिन
विटामिन B1 22% 39%
विटामिन B2 14% 7%
विटामिन B3 21% 4%
विटामिन B5 9% 14%
विटामिन B6 18% 6%
विटामिन B12 0% 0%
पोषक तत्व बाजरा ओट्स
सोडियम 0% 0%
पोटेशियम 3% 6%
कैल्शियम 1% 6%
मैग्नीशियम 17% 26%
फॉस्फोरस 26% 46%
आयरन 27% 40%
मैंगनीज 38% 110%
सेलेनियम 3% 0%
कॉपर 40% 32%
जिंक 9% 22%
ओट्स बाजरा व और रागी अपने तरीके से सेहत के लिए फायदेमंद हैं। जबकि ओट्स में घुलनशील (बीटा ग्लूकान) और अघुलनशील फाइबर में समृद्ध है जो खराब कोलेस्ट्रॉल को कम करने में मदद करता है। रागी व बाजरा कैल्शियम और आयरन के साथ फाइबर से भरपूर होता है जो मधुमेह रोगियों के लिए फायदेमंद है।
दोनों में परिवर्तनशील प्रोटीन सामग्री है। रागी ट्रिप्टोफेन, वेलिन, मेथियोनीन जैसे आवश्यक अमीनो एसिड का अच्छा स्रोत है, जो टिशू की मरम्मत और शरीर के अन्य कार्यों में मदद करता है, ट्रिप्टोफेन एक प्राकृतिक आराम दिलाने के रूप में कार्य करता है।
ओट्स टोकोट्रिनॉल विटामिन ई का एक अच्छा स्रोत है। जो धमनियों की दीवारों को होने वाली क्षति से बचाता है। ओट्स, बाजरा और रागी कब्ज को रोकने और पाचन तंत्र को साफ रखने में अच्छे हैं। रागी और ओट्स को अपने आहार में शामिल करना एक अच्छा विचार है। हालांकि दोनों में फाइबर की मात्रा अधिक होने के कारण सेवन की जाने वाली मात्रा से सावधान रहना चाहिए। इनके अतिरिक्त सेवन से दस्त हो सकता है।
इसके अतिरिक्त बाजरा व रागी न केवल सस्ते हैं, अपितु नेचुरल फॉर्म में उपलब्ध हैं। जबकि ओट्स अधिकतर प्रोसेस्ड फॉर्म में ही मिलता है। इसलिए उसमें कुछ रसायन मिले हो सकते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकते हैं।
आपने देखा है कि दक्षिण भारतीय अक्सर नारियल का तेल व पश्चिम भारतीय मूंगफली का तेल सदियों से उपयोग करते आ रहे हैं। इसी तरह राजस्थान में तिल का तेल जिसे मीठा तेल कहा जाता था तथा उत्तर भारत में सरसों का तेल उपयोग होता आया है, क्योंकि वह वहां की उपज है। अब फूड साइंटिस्ट मानते हैं कि यही सबसे उपयुक्त तेल हैं सेहत के लिए।
आप कोरोना के चलते जान गए होंगे कि वायरल रोग मनुष्य में पशुओं से ही आए हैं। यथा स्वाइन फ्लू, बर्ड फ्लू और कोविड 19 भी। तो मित्रों मनुष्य प्रजाति हेतु सही खाना तो शाकाहारी ही है। खैर अगली बार हम हृदय रोग हेतु उपलब्ध खाद्य पदार्थों शाकाहारी व मांसाहारी दोनों का जिक्र करेंगे|