मैंने हमेशा से सुना हुआ था कि वेट लॉस के लिए 70 प्रतिशत हेल्दी डाइट और 30 प्रतिशत एक्सरसाइज का योगदान होता है। मुझे याद था कि मेरे ट्रेनर ने मुझे अपनी डाइट में प्रोटीन बढ़ाने की सलाह दी थी, ताकि वजन तेजी से कम हो सके। लेकिन मुझे यह बात ठीक तरह से समझ नही आई और मुझे लगा ज्यादा प्रोटीन यानी ज्यादा वेट लॉस।
किसी भी डाइट में संतुलन बनाना आवश्यक होता है, लेकिन जब तक मुझे यह बात समझ आई तब तक देर हो चुकी थी। इसलिए मुझे अपना अनुभव साझा करना जरूरी लगा। ताकि कोई और मेरी तरह गलती ना कर बैठे।
यह पांच कारण हैं जिनसे मुझे समझ आया कि प्रोटीन की अति खराब है-
जी हां, ज्यादा प्रोटीन खाने से वजन बढ़ जाता है। जब मैंने वेट नापकर देखा तो मैं दंग रह गई कि वजन घटने के बजाय उल्टा बढ़ गया था। अत्यधिक प्रोटीन के स्रोत खासकर अंडे और चिकन मेरी डाइट का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा बन गए।
प्रोटीन अत्यधिक होने से मेरा कोलेस्ट्रॉल स्तर बढ़ गया और कम होने के बजाय मेरा वजन और बढ़ गया। जब मैंने यह स्थिति अपने ट्रेनर को सुनाई तो उन्होंने मुझे यही बताया कि अति किसी भी चीज की अच्छी नहीं है। प्रोटीन भी अगर इस्तेमाल नहीं होता तो शरीर में फैट के रूप में स्टोर हो जाता है। शरीर में एमिनो एसिड की बहुतायत होने पर भी वजन बढ़ता है।
प्रोटीन डाइट के कारण मुझे हमेशा प्यास लगती थी। जब मैंने इसका कारण खोजने के लिए रिसर्च की, तो पता चला कि बहुत ज्यादा प्रोटीन होने के कारण मेरी किडनी को ज्यादा मेहनत करनी पड़ रही थी। और प्रोटीन के साथ-साथ शरीर से मैग्नीशियम, पोटैशियम और सोडियम जैसे जरूरी मिनरल्स भी बाहर निकल रहे थे। इन मिनरल्स की कमी से मुझे डिहाइड्रेशन होने लगा। इसके साथ ही इससे मुझे बहुत थकान भी महसूस हुई और सर दर्द की शिकायत भी रहने लगी। और डिहाइड्रेशन से ब्लोटिंग होती है यह तो आप जानते ही हैं।
ऐसा नहीं था कि मुंह से ऐसी बदबू आए जैसी कच्चा लहसुन खाने से आने लगती है। मगर प्रोटीन खाने के कारण भी मेरी सांसों में दुर्गंध आने लगी थी।
इसका कारण है कीटोसिस नामक प्रक्रिया जिसमें कार्बोहाइड्रेट ना लेने के कारण मेरे शरीर में स्टोर हुए फैट को ऊर्जा के लिए इस्तेमाल किया जा रहा था।
सिर्फ प्रोटीन खाने के कारण मैंने फाइबर लेना बंद कर दिया था, जिसका प्रभाव मेरे पाचनतंत्र पर पड़ा। फाइबर की कमी के कारण मेरा पेट ठीक से साफ नहीं होता था और मुझे कब्ज हो गया।
इस डाइट के दौरान एक बात तो मुझे अच्छे से समझ आ गयी, जो खुशी मुझे कार्बोहाइड्रेट से मिलती है उसकी जगह जीवन में कोई और चीज नही ले सकती। चाहें कार्बोहाइड्रेट परांठे के रूप में हों, छोले भटूरे के रूप में या पास्ता हो, यह मेरे लिए खाने से बढ़कर खुशी का जरिया थे। और यह सिर्फ मेरे साथ नहीं है, यह वैज्ञानिक तथ्य है कि कार्ब्स सेरोटोनिन के स्तर को बढ़ाते हैं जिससे मूड अच्छा रहता है। डाइट में कार्बोहाइड्रेट की कमी होने पर मैं बहुत चिड़चिड़ी हो गयी थी।
तो यह था मेरा अनुभव हाई प्रोटीन डाइट का। प्रोटीन बहुत जरूरी है इसमें कोई शक नहीं लेकिन एक सीमा में। ज्यादा प्रोटीन फायदा करने के बजाय नुकसान पहुंचा सकता है।