प्रोटीन मसल्स डेवलपमेंट के लिए जरूरी है। इसके अलावा डायजेस्टिव सिस्टम, चेहरे या स्किन पर किसी भी प्रकार का सूजन होता है, तो यह प्रोटीन की कमी के कारण हो सकता है। ऊर्जा की कमी का एहसास भी इसी ख़ास पोषक तत्व की कमी से हो सकता है। जाड़े के दिनों में शरीर को गर्म रखने के लिए सबसे अधिक प्रोटीन फ़ूड की ही जरूरत पड़ती है। इसलिए आपने आहार में प्रोटीन से भरपूर दालों को शामिल करें। आपने चना, मूंग, अरहर, मसूर की दाल और उससे तैयार रेसिपीज तो आप नियमित तौर पर खाती होंगी, पर क्या आपने कभी कुल्थी की दाल खाई है? कुल्थी की दाल बहुत पौष्टिक होती है। यदि हेल्दी तरीके से इसे बनाया जाए, तो यह ब्लड शुगर लेवल को भी कंट्रोल करने में मदद (kulthi dal aka horse gram recipes for diabetic patient) कर सकती है।
कुल्थी की दाल को बहुत कम लोग जानते हैं। हालांकि यह बिहार, झारखंड, बंगाल और ओडिशा में खूब उपजाई और खाई जाती है। कुछ लोग इस दाल को गरिष्ट मानते हैं, तो कुछ लोग सिर्फ इसे दवा मानते हैं। यह सच है कि आयुर्वेद में कुल्थी के पानी का प्रयोग यूरीन संबंधी समस्याओं को दूर करने में प्रयोग किया जाता रहा है। पर कुल्थी की दाल के कई और फायदे हैं। यकीन नहीं हो, तो मशहूर क्लिनिकल न्यूट्रीशनिष्ट अंशुल का कुल्थी दाल के फायदे पर हालिया इन्स्टाग्राम पोस्ट देख सकती हैं।
अंशुल बताती हैं, ‘कुल्थी दाल में हाई प्रोटीन, आयरन, कैल्शियम, जिंक, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन, एंटीऑक्सीडेंट और सोलूबल फाइबर काफी मात्रा में पाए जाते हैं। एंटी-एडिपोजेनिक (वसा के जमाव को कम करना) और एंटी इन्फ्लामेटरी गुणों वाली कुल्थी ब्लड शुगर को भी रेगुलेट (एंटी-हाइपरग्लाइसेमिक) करती है। यह कोलेस्ट्रॉल को भी कम (एंटी-हाइपरकोलेस्टेरोलेमिक) करती है। सूप के रूप में यह यूरीन की समस्याओं को खत्म करने के लिए भी प्रयोग में लायी जाती है। यह हृदय स्वास्थ्य के लिए भी बहुत अच्छा है। यदि आप वेट लॉस प्लान शुरू कर चुकी हैं, तो अपने आहार में कुल्थी दल को शामिल कर सकती हैं।’
कुलथी दाल में ग्लाइसेमिक इंडेक्स(Low Glycemic index) कम होता है। इसलिए डायबिटीज के मरीज के लिए यह उपयोगी दाल है। इसमें अल्फा-एमाइलेज इनहिबिटर है, जो सीरम ग्लूकोज के स्तर को कम करता है। इससे ब्लड शुगर लेवल कंट्रोल होता है।
कुल्थी दाल में हाई फैट से होने वाले ऑक्सीडेटिव तनाव में सुधार होता है। यह ग्लूटाथियोन कनसनट्रेशन में वृद्धि करता है। इससे सुपरऑक्साइड डिसम्यूटेज कैटालेज जैसे एंटीऑक्सिडेंट एंजाइम की गतिविधि में सुधार हो सकता है।
कुल्थी की दाल में फेनोलिक कंपाउंड मौजूद होते हैं। यह मल में कोलेस्ट्रॉल के उत्सर्जन को बढ़ा देती है। यह हाइपोलिपिडेमिक गतिविधि भी हो सकती है। कुल्थी की दाल लिथोजेनिक पित्त के निर्माण को कम करती है। इसलिए यह एंटीलिथोजेनिक यानी कोलेस्ट्रॉल लेवल को घटाने में मदद कर सकती है। इससे पित्त में कोलेस्ट्रॉल का सीक्रेशन कम हो पाता है। यह हेपेटिक फैट को भी कम कर सकती है। यदि आप हाई कोलेस्ट्रॉल से पीड़ित हैं, तो डॉक्टर की सलाह पर कुल्थी को अपने आहार में शामिल कर सकती हैं।
कुल्थी दाल के अर्क में ग्राम-पॉजिटिव और ग्राम-नेगेटिव बैक्टीरिया के खिलाफ एंटी-माइक्रोबियल गतिविधि दिखाई हो सकती है। यह बैसिलस सबटिलिस, स्टैफिलोकोकस ऑरियस, एस्चेरिचिया कोलाई के खिलाफ एंटी-माइक्रोबियल एक्टिविटी दिखा सकती है।
साबुत कुल्थी को उबाल कर बारीक कटी प्याज, हरी मिर्च, नमक, नींबू, धनिया पत्ती के साथ खा सकती हैं।
कुल्थी को पानी में भिगोकर अंकुरित कर लें। इसे बारीक कटी प्याज, हरी मिर्च, नमक, नींबू, धनिया पत्ती के साथ खा सकती हैं।
नमक, हल्दी के साथ कुल्थी पका लें। इसे सरसों तेल, हींग, जीरा से छौंक कर चावल के साथ खाएं।
कुल्थी को बिना तेल के कुछ देर भून लें।
फिर दाल की तरह पका लें।
सरसों तेल, बिना तेल में भुनी लाल मिर्च, बारीक प्याज और धनिया पत्ती, नींबू रस के साथ खाएं।
मूंग या किसी अन्य दाल के स्थान पर चावल के साथ कुल्थी दाल के साथ खिचड़ी पका सकती हैं।
कुल्थी को उबालते और छौंकते समय हींग का प्रयोग अवश्य करें। इससे दाल सुपाच्य होगी और गैस नहीं बनेगा। कुल्थी पकाते समय अधिक तेल मसाले का प्रयोग नहीं करें। इससे यह दाल गरिष्ट नहीं हो पाएगी।
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