वह टीवी ऐड तो आपको जरूर याद होगा, ‘हर एक फ्रेंड जरूरी होता है’। यह बात सिर्फ उस ऐड तक सीमित नहीं है, बल्कि हमारे जीवन में भी लागू होती है। हमारे दोस्त हमें मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं से दूर रखते हैं।
अमेरिकन जर्नल ऑफ सायकाइट्री में प्रकाशित शोध के अनुसार समाजिक अपनापन अवसाद से बचने का सबसे कारगर उपाय है। इस शोध में ही पाया गया कि दिन भर टीवी देखना, दोपहर में सोना और सुस्त जीवन जीना आपके अवसाद के जोखिम को बढ़ा देता है।
शोधकर्ताओं ने पाया कि 100 से भी अधिक कारण हो सकते हैं जो व्यक्ति को अवसाद से बचा सकते हैं।
हार्वर्ड टी एच स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के सायकाइट्री डिपार्टमेंट के हेड पीएचडी डॉ कार्मेल चोई बताते हैं, “डिप्रेशन विश्व भर में फैला हुआ है और मनुष्यों की क्षमता पर असर डाल रहा है। लेकिन इससे जुड़े शोध सिर्फ कुछ कारणों पर ही केंद्रित थे। हमारी स्टडी में हमने डिप्रेशन को प्रभावित करने वाले 100 से अधिक फ़ैक्टर्स पर बात की है।”
इन फैक्टर्स में सोशल इंट्रैक्शन्स, सोशल मीडिया का प्रयोग, नींद का पैटर्न, डाइट और फिजिकल एक्टिविटी मुख्य रूप से शामिल थे।
इस शोध के लिए मेडेलिन रैंडमाईजेशन (MR) मेथड का प्रयोग किया गया। MR मेथड में लोगों की जेनेटिक वेरिएशन को नेचुरल एक्सपेरिमेंट मानकर किसी प्रोसेस का कारण पता लगाने की कोशिश की जाती है।
“परिवार के साथ समय बिताने से आपको अपनी भावनाएं व्यक्त करने का अवसर मिलता है। साथ ही परिवार और दोस्तों की मौजूदगी आपको सोशली प्रोटेक्टेड महसूस कराती है।”, बताते हैं इस रिसर्च के एसोसिएट चीफ जॉर्डन स्मोलर।
यह सोशल प्रोटेक्शन की भावना उन लोगों में भी देखी गयी जो जेनेटिकली या ट्रॉमा के कारण डिप्रेशन के प्रति ज्यादा सम्भावित थे।
लॉकडाउन के वक्त में यह सोशल प्रोटेक्शन महसूस करना और अधिक जरूरी है।
चौंकाने वाली बात यह है कि कई फैक्टर्स हैं जो आपको डिप्रेशन की ओर धकेलते हैं। टीवी देखना उन फैक्टर्स में से एक है। हालांकि शोधकर्ताओं का मानना है कि टीवी देखने से डिप्रेशन क्यों बढ़ता है इस पर रिसर्च किया जाना बाकी है।
इसी तरह दोपहर में सोना और नियमित रूप से मल्टीविटामिन का सेवन भी डिप्रेशन बढ़ाता है। इस पर भी अभी और रिसर्च की जानी चाहिए।
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कस्टमाइज़ करेंस्मोलर बताते हैं,”डिप्रेशन किसी व्यक्ति, उसके परिवार और समाज पर बहुत नकारात्मक प्रभाव डालता है। फिर भी इसको रोकने के बारे में जानकारी बहुत कम है। हम अपने शोध की मदद से एक स्ट्रेटजिकल मेथड बनाने की कोशिश कर रहे हैं जिससे डिप्रेशन को कम किया जा सके। इस तरह का कोई काम पहले नहीं किया गया था। आने वाले सालों में इस मेथड की मदद से हम ऐसी स्ट्रेटेजी लाने की कोशिश करेंगे जिन्हें जमीनी स्तर पर लागू किया जा सके।”
यह दो स्टेज वाली स्टडी आने वाले सालों में डिप्रेशन से लड़ने और उसे रोकने का माध्यम हो सकती है।