जानवरों और मनुष्यों के आपसी संबंध बहुत मजबूत, बहुत पुराने और बहुत सुंदर रहे हैं। जब तक मनुष्यों ने तकनीक का विकास नहीं किया था, तब से पशु उनके साथ रहे हैं। इस प्रगति के बावजूद ये दोनों का आपसी समन्वय ही है कि अब भी पशु हमारे घरों में मौजूद हैं। वे लोगों को भोजन, फाइबर, आजीविका और साहचर्य प्रदान करते हैं। मगर जानवरों में कुछ हानिकारक रोगाणु होते हैं, जो मनुष्यों में फैल सकते हैं और बीमारी का कारण बन सकते हैं। इन्हें जूनोटिक रोग (Zoonotic diseases) या जूनोज के रूप में जाना जाता है। आज वर्ल्ड जूनोसेस डे (World Zoonoses Day) के अवसर पर आइए इन्हीं बीमारियों और उनके लक्षणों के बारे में विस्तार (Zoonotic disease awareness) से बात करते हैं।
मनुष्यों के साथ पशुओं का समन्वय बहुत पुराना है। मगर दोनों के रहन-सहन और शारीरिक तंत्र में अंतर है। जंगली ही नहीं कस्बाई और घरेलू अर्थात पालतू पशुओं में भी कुछ हानिकारक रोगाणु होते हैं। ये पशुओं से मनुष्यों में फैलकर उन्हें संक्रमित कर सकते हैं। पशुओं के सहचर्य से मनुष्यों में फैलने वाली बीमारियों को जूनोटिक रोग कहा जाता है।
जूनोटिक रोगों के मामले बढ़ रहे हैं और वैज्ञानिकों का अनुमान है कि लोगों में ज्ञात हर 10 संक्रामक रोगों में से 6 से अधिक बीमारियां जानवरों से फैल सकती हैं। नए अध्ययनों से पता चला है कि लोगों में हर 4 नए या उभरते संक्रामक रोगों में से 3 जानवरों से आए हैं। कीटाणुओं के कारण होने वाली ये बीमारियां हल्के से लेकर गंभीर बीमारी और यहां तक कि मौत का कारण भी बन सकती हैं।
पशु जनित रोगों का संचरण मुख्य रूप से व्यक्ति के संक्रमित जानवर की लार, रक्त, मूत्र, बलगम, मल या शरीर के अन्य तरल पदार्थों के साथ सीधा संपर्क में आने से होता है। संचरण के अन्य तरीकों में सतही संपर्क के माध्यम से अप्रत्यक्ष संपर्क हैं, जिसमें वेक्टर जनित, विशेष रूप से टिक, मच्छर या पिस्सू तथा दूषित पानी एवं भोजन शामिल हैं।
जूनोटिक रोगों (Zoonotic disease) के हालिया उदाहरणों में प्लाक, निपाह वायरस (Nipah virus) का प्रकोप, इबोला रक्तस्रावी बुखार (Ebola), जीका वायरस (Zika Virus), सार्स रोग (SARS) और मंकी पॉक्स (Monkeypox) रोग शामिल हैं।
ग्रैम नेगेटिव और ग्रैम पॉजिटिव बैक्टीरिया, वायरस, परजीवी और कवक जूनोटिक रोग पैदा करने में सक्षम हैं। विभिन्न अध्ययनों से पता चलता है कि जूनोटिक रोगाणुओं में, 42% जीवाणु जनित हैं, 22% वायरस, 29% परजीवी और 5% कवक तथा 2% प्रियन जनित हैं। कभी-कभी जानवर भी इंसानों से संक्रमित हो सकते हैं, जिसे रिवर्स जूनोज के रूप में जाना जाता है।
उभरते हुए जूनोज को ऐसे जूनोज के रूप में परिभाषित किया गया है, जो नए पहचाने गए हैं, नए विकसित हुए हैं या पहले से मौजूद हैं लेकिन भौगोलिक, होस्ट या वेक्टर रेंज में वृद्धि या विस्तार को दर्शाता है। उदाहरण के लिए एवियन इन्फ्लूएंजा, इबोला, हंटवायरस संक्रमण, एमईआरएस और सार्स शामिल हैं। जूनोज इंसानों के लिए एक गंभीर खतरा बन गया है।
आम तौर पर सबसे अधिक जोखिम वाले समूह जैसे कि कैंसर रोगी, बुजुर्ग रोगी, गर्भवती रोगी, 5 वर्ष से कम उम्र के रोगियों में जूनोटिक संक्रमण होने का खतरा (Zoonotic infection risk) होता है।
जूनोसिस रोग रोकथाम और नियंत्रित करने के लिए इनकी निगरानी करना महत्वपूर्ण है। इसमें रोग का जल्दी पता लगाना, नियंत्रण रणनीतियां, उचित प्रबंधन और मनुष्यों तथा जानवरों की रुग्णता दर और मृत्यु दर को कम करना शामिल है। जूनोज भोजन और अन्य उपयोगों के लिए पशु उत्पादों के उत्पादन और व्यापार में व्यवधान पैदा कर सकते हैं।
कुछ रोग, जैसे कि एचआईवी, जूनोसिस के रूप में ही शुरू हुआ था, लेकिन बाद में केवल ह्यूमन स्ट्रेन्स में म्यूटेंट (उत्परिवर्तित) होते हैं। अन्य जूनोज बार-बार होने वाली बीमारी के प्रकोप का कारण बन सकते हैं, जैसे कि इबोला वायरस रोग और साल्मोनेलोसिस। अभी भी अन्य, जैसे कि नोबेल कोरोनवायरस जो कोविड-19 का कारण बना है, में वैश्विक महामारी का कारण बनने की क्षमता है।
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कस्टमाइज़ करेंजूनोटिक रोगों की रोकथाम के तरीके प्रत्येक रोगाणुओं के लिए भिन्न होते हैं। हालांकि कई प्रथाओं को समुदाय और व्यक्तिगत स्तरों पर जोखिम को कम करने में प्रभावी माना जाता है। कृषि क्षेत्र में जानवरों की देखभाल के लिए सुरक्षित और उपयुक्त दिशानिर्देश, मांस, अंडे, डेयरी या यहां तक कि कुछ सब्जियों जैसे खाद्य पदार्थों के माध्यम से खाद्य पदार्थ जनित जूनोटिक रोग के प्रकोप की आशंका को कम करने में मदद करते हैं।
जंगली क्षेत्रों के आस-पास या अधिक संख्या में जंगली जानवरों वाले कस्बाई इलाकों में रहने वाले लोगों को चूहों, लोमड़ियों या रैकून जैसे जानवरों से बीमारी का खतरा अधिक होता है।
लोग कई जगहों पर जानवरों के संपर्क में आ सकते हैं। इसमें घर पर और घर से बाहर, चिड़ियाघरों, मेलों, स्कूलों, दुकानों और पार्कों जैसी जगह शामिल हैं। मच्छरों और पिस्सू जैसे कीड़े और टिक दिन और रात में लोगों और जानवरों को काटते हैं।
वैश्विक जलवायु परिवर्तन, दवा में रोगाणुरोधी दवाओं का अत्यधिक प्रयोग और अधिक गहन खेती भी जूनोटिक रोगों की बढ़ती दर को प्रभावित करने वाला स्रोत माना जाता है। कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों को भी अधिक जोखिम रहता है।
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