कई बीमारियों के लिए पूरी तरह जीन जिम्मेदार होते हैं। ये रोग हमें विरासत में माता-पिता से मिलते हैं। थैलेसीमिया (thalassaemia) इनमें से एक है। ये इनहेरिट किया हुआ ब्लड डिसआर्डर (inherited blood disorder) है। थैलेसीमिया के कारण शरीर में हीमोग्लोबिन सामान्य से कम हो जाता है। हमेशा थकान महसूस करने के अलावा गंभीर परिस्थितियों में यह जानलेवा भी हो जाता है। इस रोग के प्रति जागरूक करने के लिए विश्व थैलेसीमिया दिवस या वर्ल्ड थैलेसीमिया डे (world thalassemia day) मनाया जाता है।क्या है थैलेसीमिया और इसके लक्षण और उपचार क्या हो सकते हैं। इसके लिए हमने बात की गुरुग्राम के आर्टिमिस हॉस्पिटल के इंटरनल मेडिसिन हेड डॉ. पी वेंकट कृष्णन से ।
वर्ल्ड थैलेसीमिया डे हर वर्ष 8 मई को मनाया जाता है। लोगों को जागरूक करने, सूचनाओं के आदान-प्रदान और थैलेसीमिया एजुकेशन के माध्यम से लोगों को स्वस्थ, लंबा और प्रोडक्टिव जीवन जीने में मदद करने के उद्देश्य से यह दिवस मनाया जाता है। वर्ल्ड थैलेसीमिया डे 2023 की थीम है-जागरूक रहें। शेयर करना। देखभाल: थैलेसीमिया केयर गैप को पाटने के लिए शिक्षा को मजबूत करना। ”
डॉ.पी वेंकट कृष्णन बताते हैं, हीमोग्लोबिन रेड ब्लड सेल्स को ऑक्सीजन ले जाने में सक्षम बनाता है। थैलेसीमिया में हीमोग्लोबिन सामान्य से कम हो जाता है। यह एनीमिया का कारण बनता है, जिससे आप हमेशा थका हुआ महसूस कर सकती हैं।
यदि हल्का थैलेसीमिया है, तो व्यक्ति को उपचार की आवश्यकता नहीं हो सकती है। गंभीर रूप में नियमित ब्लड ट्रांसफ्यूजन (blood transfusions) की जरूरत पड़ती है। थकान से निपटने के लिए हेल्दी फ़ूड और नियमित एक्सरसाइज को अपनाया जा सकता है।’
डॉ.पी वेंकट कृष्णन के अनुसार, थैलेसीमिया कई प्रकार के हो सकते हैं। लक्षण और मरीज की स्थिति के आधार पर इसकी गंभीरता बताई जा सकती है। थैलेसीमिया के कारण थकान, कमज़ोरी, फेस बोन की विकृति, बच्चे का डेवलपमेंट धीमा होना, पेट में सूजन, यूरीन गहरे रंग का होना जैसे लक्षण प्रकट हो सकते हैं।
कुछ बच्चे जन्म के समय, तो कुछ बच्चों में जन्म के दो वर्ष बाद थैलेसीमिया के लक्षण दिखते हैं। कुछ लोग जिनमें केवल एक प्रभावित हीमोग्लोबिन जीन होता है, उनमें थैलेसीमिया के लक्षण नहीं होते हैं।
थैलेसीमिया कोशिकाओं के डीएनए में बदलाव आ जाने के कारण यह होता है। इससे पूरे शरीर में ऑक्सीजन ले जाने वाला हीमोग्लोबिन प्रभावित हो जाता है। थैलेसीमिया से जुड़े म्यूटेशन माता-पिता से बच्चों में आ जाते हैं। थैलेसीमिया का पारिवारिक इतिहास होने पर यह जीन के माध्यम से माता-पिता से बच्चों में आ जाता है।
बार-बार ब्लड चढ़ाने या बीमारी से थैलेसीमिया वाले लोग शरीर में बहुत अधिक आयरन प्राप्त कर सकते हैं। बहुत अधिक आयरन हार्ट, लिवर और एंडोक्राइन तंत्र को नुकसान पहुंचा सकता है।
थैलेसीमिया से पीड़ित लोगों में संक्रमण का खतरा भी बढ़ जाता है।
गंभीर थैलेसीमिया के मामलों में यह बोन मैरो का विस्तार कर सकता है, जिससे हड्डियां चौड़ी हो जाती हैं। इससे हड्डी की संरचना असामान्य हो जाती है। विशेष रूप से चेहरे और स्कल में। अस्थि मज्जा का विस्तार हड्डियों को पतला और कमजोर बनाता है, जिससे हड्डियों के टूटने की संभावना बढ़ जाती है।
स्प्लीन शरीर को संक्रमण से लड़ने में मदद करती है और पुरानी या क्षतिग्रस्त रक्त कोशिकाओं को फ़िल्टर करती है। थैलेसीमिया के कारण बड़ी संख्या में लाल रक्त कोशिकाएं खत्म हो जाती हैं। इससे स्प्लीन बढ़ जाता है। स्प्लीन बढ़ने से एनीमिया बढ़ जाता है। डॉक्टर इसे हटाने के लिए सर्जरी का भी सुझाव दे सकते हैं। एनीमिया बच्चे के विकास को धीमा कर युवावस्था में देरी कर सकता है। इसके कारण हार्ट फेलियर भी हो सकता है।
ज्यादातर मामलों में थैलेसीमिया से बचाव नहीं किया जा सकता है। यदि थैलेसीमिया है या थैलेसीमिया की जीन है, तो बच्चे पैदा करने से पहले डॉक्टर से मिलना जरूरी है। असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी के माध्यम से थैलेसीमिया वाले माता-पिता की मदद हो सकती है।
दोषपूर्ण जीन के लिए भ्रूण का परीक्षण किया जाता है और केवल आनुवंशिक दोषों के बिना गर्भाशय में प्रत्यारोपित किया जाता है।
स्टेम सेल या बोन मैरो ट्रांसप्लांट ही थैलेसीमिया का एकमात्र इलाज है। इसमें शामिल महत्वपूर्ण जोखिमों के कारण वे बहुत बार नहीं किए जाते हैं। बोन मैरो में स्टेम कोशिकाएं उत्पन्न होती हैं। कुछ हड्डियों के केंद्र और विभिन्न प्रकार की रक्त कोशिकाओं में भी इसके विकसित होने की क्षमता होती है।
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