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World Parkinson’s Day 2022: उम्र के बैरियर तोड़, युवाओं में भी बढ़ रही है यह खतरनाक बीमारी

ताजा आंकड़े बता रहे हैं कि बढ़ती उम्र में होने वाली यह बीमारी अब युवाओं को भी अपनी गिरफ्त में ले रही है। जिसके कारण उनका प्रजनन स्वास्थ्य और प्रोफेशनल लाइफ प्रभावित हो रहे हैं।
युवाओं में भी बढ़ रहे हैं इस रोग के मामले। चित्र: शटरस्टॉक
Dr Rohit Pai Published: 11 Apr 2022, 14:30 pm IST
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विश्व पार्किंसंस दिवस 2022 (World Parkinson’s Day 2022) पर, हम इस मिथ को तोड़ रहे हैँ कि यह बीमारी केवल बुजुर्गों को होती है। ताज़ा आंकड़े बता रहे हैं कि अब यह बीमारी उम्र के बैरियर भी तोड़ रही है। यानी युवा लोग भी अब पार्किंसंस या पार्किंसनिज़्म (Parkinsonism) की चपेट में आ सकते हैं। यह एक न्यूरोडीजेनेरेटिव डिसऑर्डर ( Neuro degenerative disorder) है, जो लगातार सिकुड़न के कारण मस्तिष्क के एक हिस्से के लगातार पतन का कारण बनता है। जिसे बेसल गैन्ग्लिया (basal ganglia) कहा जाता है।

उम्र के साथ बढ़ती थी यह बीमारी 

यकीनन, अभी तक इस बीमारी के बारे में कहा जाता था कि यह उम्र के साथ बढ़ती है। पर मरीजों के आंकड़े बताते हैं कि इससे पीड़ित लोगों का एक वर्ग युवाओं का भी है। युवावस्था में इसकी शुरुआत 50 वर्ष से कम उम्र के लोगों में देखी गई है। जबकि जुवेनाइल पार्किंसनिज़्म नामक रोगियों में इससे प्रभावित लोगों की आयुक 21 वर्ष और उसके आसपास है। यह आमतौर पर आनुवंशिक उत्परिवर्तन के कारण भी हो सकता है।

पार्किंसंस रोग युवाओं को भी हो सकता है। चित्र सौजन्य: शटरस्टॉक

पार्किंसनिज़्म को शरीर के किसी अंग के कंपकंपाने, कठोरता (किसी अंग में जकड़न), ब्रैडकिनेसिया (धीमी गति) और पोस्टुरल अस्थिरता (खराब संतुलन और समन्वय) के रूप में देखा जाता है। समय के साथ, यह उनके चेहरे के भावों को भी प्रभावित कर सकता है। जिससे चेहरा  मास्क की तरह स्थिर लगने लगता है। इससे पीड़ित मरीजों को मुस्कुराने, निगलने और बोलने में भी परेशानी महसूस होने लगती है। हाथों में कंपन के कारण यह उनकी लिखावट को भी प्रभावित कर सकता है। जिसके चलते माइक्रोग्राफिया (micrographia) हो सकता है, यानी लिखावट छोटी होने लगती है।

पार्किंसनिज़्म से जुड़े मामले 40 से कम आयु वर्ग में 0.5 प्रति 100000 हैं। जबकि समग्र आयु वर्ग में यह आंकड़ा 13.4 प्रति 100000 है।

क्या हो सकते हैं पार्किंसंस रोग के कारण

कुछ आनुवंशिक उत्परिवर्तन युवाओं में पार्किंसनिज़्म का कारण बन सकते हैं। जीन में होने वाले इन उत्परिवर्तनों को PARK, Synuclein, PINK1, LRRK2 कहा जाता है।

  1. पार्किंसनिज़्म के लक्षणों को पोस्ट एन्सेफलाइटिस (मस्तिष्क बुखार) के बाद देखा जा सकता है जिसे पोस्ट एन्सेफलाइटिस पार्किंसनिज़्म कहा जाता है।
  2. कुछ पार्किंसोनियन विशेषताओं के साथ सेरेब्रल पाल्सी भी इसका कारण हो सकती है। जिसमें टॉडलर्स को चलने-फिरने में असमर्थता के लक्षण देखे जा सकते हैं।
  3. कभी-कभी यह विरासत में मिला विकार भी हो सकता है। जिसके कारण अंगों में बहुत अधिक तांबा जमा हो जाता है। इसे विल्सन रोग कहा जाता है, जो पार्किंसनिज्म का कारण बन सकता है।

कई अन्य न्यूरोडीजेनेरेटिव विकार भी हैं जो पार्किंसनिज़्म का कारण बन सकते हैं। जैसे मचाडो जोसेफ रोग, हंटिंगटन रोग।

पार्किंसंस एक न्यूरोडीजेनेरेटिव डिसऑर्डर है। चित्र सौजन्य: शटरस्टॉक

युवाओं में कैसे अलग है पार्किंसनिज़्म 

पार्किंसनिज़्म के युवा मामलों में पार्किंसनिज़्म का पारिवारिक इतिहास देखा गया है। वे लक्षणों की धीमी प्रगति और डोपामिनर्जिक दवाओं से अधिक दुष्प्रभाव दिखा सकते हैं। उनमें डिस्टोनिया अर्थात अंगों के अलग तरह से घूम जाने या डिसलोकेट हो जाने के मामले भी ज्यादा हो सकते हैं।

क्यों जरूरी है युवाओं में पार्किंसनिज़्म की पहचान करना ?

पार्किंसंसवाद अथवा पार्किंसनिज़्म से पीड़ित युवाओं में इसकी समय रहते पहचान जरूरी है। बुजुर्ग रोगियों के विपरीत, वे इस बीमारी, अपने कॅरियर और जीवन के अलग-अलग चरणों में हो सकते हैं। वे बच्चे पैदा करने वाले आयु वर्ग में भी हो सकते हैं। ऐसे में वे प्रेगनेंसी प्लान करना चाहेंगे और उन्हें आनुवंशिक परामर्श की भी आवश्यकता होगी।

छोटे आयु वर्ग में न्यूरोनल प्लास्टिसिटी (neuronal plasticity) होती है और वे पुराने समकक्षों की तुलना में इस बीमारी को अलग तरह से संभालने की क्षमता रखते हैं। युवा रोगियों में एक विशिष्ट मुद्दा मासिक धर्म पर इसका प्रभाव भी है। महिला रोगियों ने अकसर बिगड़ते लक्षणों की शिकायत की है। उनमें लेवोडोपा जैसी दवाओं की प्रतिक्रिया भी कम हो जाती है। इस पर और ध्यान दिए जाने की जरूरत है। गर्भावस्था के दौरान लक्षणों के बिगड़ने का जोखिम रहता है। हालांकि दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों को करने की क्षमता पर ज्यादा प्रभाव पड़ता दिखाई नहीं देता।

यह भी देखें –
https://www.youtube.com/watch?v=YS_BrOFRs3o

हालांकि पार्किंसंस विरोधी दवाओं से जुड़े जन्मजात दोषों में किसी तरह की वृद्धि नजर नहीं आई है। युवा पार्किंसंस रोगियों की नौकरी से संबंधित मांगों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। युवा पार्किंसंस रोगियों को न केवल अपने कार्य क्षेत्र में कठिनाइयां होती हैं, बल्कि उन्हें अपनी बीमारी के कारण भेदभाव का भी सामना करना पड़ सकता है। आक्रामक उपचार से लंबे समय तक जटिलताएं हो सकती हैं – जैसे कि डिस्केनेसिया को नियंत्रित करना मुश्किल है। इसलिए, किसी भी तरह के उपचार के लिए प्रोफेशनल से मदद लेना अपरिहार्य है।

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पार्किंसंस के इलाज में दवाएं आपकी मदद कर सकती हैं छवि सौजन्य: शटरस्टॉक

क्या हो सकता है पार्किंसंस रोग का उपचार

युवा रोगी पुराने रोगियों की तुलना में लेवोडोपा (दो दवाओं कार्बिडोपा और लेवोडोपा के संयोजन) की प्रतिक्रिया अलग-अलग हो सकती है। इन रोगियों में गंभीर डिस्केनेसिया होता है। साथ ही, लेवोडोपा की क्रिया की अवधि कम होती है। लेवोडोपा के साथ सुधार का स्तर पुराने रोगियों की तुलना में मात्रात्मक और गुणात्मक रूप से अधिक है।

इसके बावजूद युवा रोगियों को लेवोडोपा शुरू करने से पहले पूरी तरह सचेत रहना चाहिए। डोपामाइन एगोनिस्ट जैसे रोपिनिरोल या प्रमिपेक्सोल या अमांटिडाइन को प्राथमिकता दी जाती है।क्योंकि यह भविष्य में डिस्केनेसिया (motor fluctuations) जैसी लेवोडोपा से संबंधित जटिलताओं को कम करता है।

यदि लेवोडोपा शुरू किया जाता है, तो न्यूनतम खुराक के साथ शुरू करना बेहतर होता है। मरीजों को मनोवैज्ञानिक परामर्श, सामाजिक सहायता समूहों के लिए रेफरल की भी आवश्यकता होती है। उपचार का उद्देश्य रोगियों के सक्रिय सामाजिक और व्यावसायिक जीवन को संरक्षित करना है और डिस्केनेसिया जैसी अपेक्षित जटिलताओं की घटनाओं को कम करने का प्रयास करना है।

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Dr Rohit Pai

Dr Rohit Pai, Consultant - Neurology, KMC Hospital, Mangalore ...और पढ़ें

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