प्रदूषित हवा में पल पल सांस लेना फेफड़ों के स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक साबित होता है। फिर चाहे वो आउटडोर हो या इंडोर। मेट्रो सिटीज़ में दिन ब दिन बढ़ रहा प्रदूषण का स्तर रेस्पिरेटरी हेल्थ (Respiratory health) को कई प्रकार से नुकसान पहुंचा सकता है। दरअसल, फेफड़ों के स्वास्थ्य का ख्याल न करना लंग कैंसर के जोखिम को बढ़ा सकता है। रोजमर्रा के जीवन में कई कारणों से फेफड़ों के कैंसर का खतरा (risks of lung cancer) बढ़ने लगता है। ये समस्या पुरूषों के साथ साथ महिलाओं को भी प्रभावित करती हैं। जानते हैं वर्ल्ड लंग कैंसर डे (World lung cancer day) पर वो जोखिम कारक, जो लंग कैंसर का कारण साबित होते हैं।
इस बारे में बातचीत करते हुए फोर्टिस हॉस्पिटल में पल्मोनोलॉजी विभाग के सीनियर कंसल्टेंट डॉ अवि कुमार बताते हैं कि लंग सेल्स में होने वाला परिवर्तन लंग कैंसर का कारण (Causes of lung cancer) बन जाता है। वे लोग जो लंबे वक्त से स्मोकिंग कर रहे हैं या फिर सेकण्ड हैंड और थंड हैंड स्मोकिंग का शिकार है। उनमें लंग कैंसर का जोखिम (risks of lung cancer) बढ़ जाता है। टॉक्सिक पदाथों को ग्रहण करने या उनके लगतार संपर्क में आने से इस समस्या का खतरा बढ़ जाता है।
डॉ अवि कुमार के अनुसार वे महिलाएं, जो नॉन स्मोकर्स हैं, उनमें लंग कैंसर (lung cancer) के अधिक मामले देखने को मिलते हैं। इसके अलावा अनुवांशिकता और एयर पॉल्यूशन से इस समस्या का खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा वे जगह जहां एस्बेस्टस शीट (asbestos sheet exposure) बनती है। उस जगह पर लंगे वक्त तक रहना भी सांसों की समस्या को बढ़ा सकता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनियाभर में लंग कैंसर (lung cancer) से होन वाली मौत का आंकड़ा दिनों दिन बढ़ रहा है। लंग कैंसर से पीडित 85 फीसदी मामले स्मोकिंग (smoking) के कारण बढ़ रहे हैं। खांसी, चेस्ट पेन (chest pain) और ब्रीदिंग प्रॉबल्म (breathing problem) लंग कैंसर के संकेत हैं, जिनकी समय रहते पहचान कर लेने पर इस समस्या को नियंत्रित किया जा सकता है। आईएआरसी यानि इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर के अनुसार साल 2020 में लंग कैंसर से 1.8 मीलियन लोगों ने अपनी जान गंवाई थी।
दुनियाभर में 1 अगस्त को वर्ल्ड लंग कैंसर डे मनाया जाता है। इस दिन का मकसद लोगों को लंग कैंसर के बारे जागरूक कर इस समस्या के संकेतों के अवगत करवाना है। वर्ल्ड लंग कैंसर डे (world lung cancer day) के मौके पर जगह जगह सेमिनार और वर्कशॉप्स का आयोजन किया जाता है। इसके अलावा स्कूली छात्रों को भी फेफड़ों से जुड़ी समस्या के बारे में जानकारी दी जाती है।
डॉ अवि कुमार बताते हैं कि फेफड़ों के कैंसर का प्रमुख कारण स्मोकिंग है। लंग कैंसर के 85 फीसदी मरीजों की मृत्यु स्मोकिंग के कारण होती है। सिगरेट के धुएं में मौजूद कार्सिनोजेन्स तत्व लंग के सेल्स को नुकसान पहुंचाते हैं। इससे सेल्स की ग्रोथ बढ़ने लगती है, जो कैंसर का कारण बन जाते हैं।
एस्बेस्टस शीटस को तैयार करने के दौरान निकलने वाली धूल और फाइबर को इनहेल करने से साँस संबधी समस्या बढ़ जाती है। इससे फेफड़ों के कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। एस्बेस्टस एक मिनरल होता है, जो हवा में लंबे समय तक मौजूद रहता है। इससे फाइबर बनता है। वे लोग माइनिंग, मेनुफेक्चरिंग और कंस्ट्रक्शन का कार्य करते हैं, वे ज्यादातर इसके संपर्क में रहते हैं।
चाहे इनडोर हो या आउटडोर एयर पॉल्यूशन लंग कैंसर (air pollution cause lung cancer) के मुख्य कारणों में से एक है। डॉ अवि कुमार बताते हैं कि रेडऑन गैस के संपर्क में आने से लंग सेल्स डैमेज का खतरा बढ़ जाता है। इंडोर पाई जाने वाली इस गैस में छोटे रेडियो एक्टिव पार्टिकल पाए जाते हैं, जिससे लंग कैंसर का जोखिम बढ़ने लगता है। इसके अलावा आउटडोर पॉल्यूटेंटस और हार्मफुल गैसिस एयरपॉल्यूशन को बढ़ाती हैं।
आनुवंशिक कारक भी फेफड़ों के कैंसर को बढ़ा सकते हैं। डज्ञॅ अवि कुमार बताते हैं कि पारिवारिक इतिहास के चलते हर साल स्क्रीनिंग करवाना बेहद आवश्यक है। ऐसे लोगों में लंग कैंसर का खतरा ज्यादा बढ़ जाता है। स्वस्थ्य को लेकर सतर्क रहने से समस्या से बचना आसान हो जाता है।
घर में वेंटिलेशन को बनाए रखने और पॉल्यूटेटस की रोकथाम के लिए एयर प्यूरी फायर आवश्यक है। इससे इनडोर गेसिस से भी राहत मिल जाती है, जिससे धूल और हवा में घुले कणों को दूर किया जा सकता है। एयर प्यूरीफायर का इस्तेमाल करने से सांस संबधी समस्याएं और रेस्पीरेटरी एलर्जी से भी राहत मिलती है।
भरपूर मात्रा में पानी का सेवन करने से शरीर में मौजूद टॉक्सिक पदार्थों को डिटॉक्स करने में मदद मिलती है। इससे फेफड़े स्वस्थ (lungs health) रहते हैं और शरीर निर्जलीकरण के खतरे से भी दूर रहता है। शरीर में पानी की पर्याप्त मात्रा कई बीमारियों के जोखिम को कम कर देती है।
डॉ अवि कुमार का कहना है कि चाहे आप स्मोक करते हैं या नॉन स्मोकर हैं, सिगरेट के धुंए से बचाव बेहद ज़रूरी है। धुएं को इनहेल करने से फेफड़ों को उसका नुकसान झेलना पड़ता है, वे लोग जो लंबे समय से सेकण्ड हैंड स्मोकिंग के शिकार है, उनमें भी स्मोकर्स के समान कैंसर का खतरा रहता है। ऐसे में मास्क पहनकर बाहर निकलें।
फेफड़ों की मज़बूती के लिए प्राणायाम का अभ्यास करें। ब्रीछिंग एक्सरसाइज़ की मदद से एयरवेज़ ओपन होने लगते हैं और शरीर विषैले पदार्थो से मुक्त हो जाता है। एक्सरसाइज़ से लंग्स का फंक्शन नियमित बना रहता है और वे किसी भी संक्रमण का आसानी से सामना कर पाते हैं।
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