World Leprosy Day 2023 : उपचार के बावजूद सोशल टैबू का सामना करते हैं कुष्ठ रोगी, इन टैबूज को तोड़ना है जरूरी

जिस समाज में कोढ़ या कुष्ठ रोगी होना एक मुहावरा या गाली हो, वहां कुष्ठ रोगियों का जीवन कितना कठिन होगा, अंदाजा लगाया जा सकता है। अब भी इस रोग के होने पर रोगियों को तलाक और बेदखली जैसी स्थितियों का सामना करना पड़ता है।
कुष्ठ रोग के प्रति जागरुकता के लिए ही हर वर्ष वर्ल्ड लेप्रोसी डे मनाया जाने लगा। चित्र : एडोबी स्टॉक
स्मिता सिंह Published: 30 Jan 2023, 08:00 am IST
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लेप्रोसी जिसे कुष्ठ रोग कहा जाता है, दुनिया की सबसे पुरानी बीमारियों में से एक है। यह जानने से पहले कि कुष्ठ रोग एक जीवाणु संक्रमण के कारण होता है, इसे कभी-कभी दैवीय दंड या अभिशाप के रूप में देखा जाता था। इससे प्रभावित लोगों को भेदभाव का सामना करना पड़ता था। इस रोग के प्रति जागरुकता के लिए ही हर वर्ष वर्ल्ड लेप्रोसी डे (World Leprosy Day) मनाया जाने लगा। आइये जानते हैं इस रोग के बारे में वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन क्या कहता है।

क्यों मनाया जाता है वर्ल्ड लेप्रोसी डे (World Leprosy Day)

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के अनुसार विश्व कुष्ठ दिवस जनवरी के अंतिम रविवार को पड़ता है। इस रोग से प्रभावित लोगों के उपचार और इस रोग के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए 1954 में फ्रांसीसी पत्रकार राउल फोलेरेउ ने इस दिन को मनाना शुरू किया। पूरी दुनिया में यह 29 जनवरी के दिन मनाया जाता है। लेकिन भारत में यह 30 जनवरी को मनाया जाता है। इस दिन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की डेथ एनिवर्सरी भी होती है।

वर्ल्ड लेप्रोसी डे की थीम (World Leprosy Day Theme) 

इस वर्ष अंतर्राष्ट्रीय कुष्ठ रोग दिवस इस रोग के प्रति लोगों को और अधिक जागरूक करने पर जोर दे रहा है। इसलिए इस वर्ष विश्व कुष्ठ दिवस 2023 की थीम है अब कार्य करें (Act Now)।

क्यों कहा जाता था कुष्ठ रोग को  हैनसेन रोग

इस वर्ष 28 फरवरी, 1873 को नार्वे के चिकित्सक गेरहार्ड अरमाउर हैनसेन की 150वीं वर्षगांठ भी मनाई जा रही है। उन्होंने ही कुष्ठ रोग के कारक एजेंट एम. लेप्रे की खोज की थी। इसलिए पहले इसे हैनसेन रोग के रूप में जाना जाता था। डॉ. हैनसेन ने बताया कि कुष्ठ रोग एक जीवाणु संक्रमण के कारण होता है।

शरीर का कौन सा भाग होता है सबसे अधिक प्रभावित

यह रोग मुख्य रूप से त्वचा, परिधीय नसों, श्लेष्मा झिल्ली और आंखों को प्रभावित करता है। 1980 के दशक में शुरू की गई मल्टीड्रग थेरेपी नामक दवाओं के संयोजन का उपयोग करके इसे ठीक किया जा सकता है। यदि इसका उपचार नहीं किया जाता है, तो यह विकलांगता का कारण बन सकता है।

जानकारी के अभाव में मिथ और भ्रांतियां (Myths about Leprosy) 

इस बीमारी के बारे में मिथ और भ्रांतियां अभी भी बनी हुई हैं। दुनिया के विभिन्न हिस्सों में कुष्ठ रोग से ग्रस्त लोग खुद को समाज, परिवार और दोस्तों से अलग-थलग महसूस कर सकते हैं। कुछ देशों में पुराने कानून बने हुए हैं, जो उन्हें सार्वजनिक सुविधाओं के उपयोग से वंचित करते हैं।

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कुष्ठ रोग के बारे में कई भ्रांतियां हैं, जिनके बारे में सभी को जानना चाहिए चित्र : एडोबी स्टॉक

कुछ स्थानों पर कुष्ठ रोग अभी भी तलाक या बर्खास्तगी का आधार बना हुआ है। यदि इस रोग के बारे में तथ्यों को सीखने और ज्ञान को साझा करने की कोशिश की जाए, तो रोग से जुड़ी समस्याओं से मुक्त दुनिया बनाने में मदद मिल सकती है।

कोविड का प्रभाव सबसे अधिक कुष्ठ रोगियों पर

तीन साल पहले मार्च 2020 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने COVID-19 के प्रसार को महामारी घोषित किया था। दुनिया भर में सरकारों द्वारा किए गए उपायों जैसे कि लॉकडाउन और अन्य प्रतिबंधों ने विशेष रूप से कमजोर समुदायों जैसे कि कुष्ठ रोग से प्रभावित लोगों पर भारी प्रभाव डाला। इनमें से कई पहले से ही कठिन परिस्थितियों में रह रहे थे। इसके कारण न सिर्फ कई लोगों ने अपनी आजीविका खो दी, बल्कि बीमारी या उसके बाद के प्रभावों के इलाज पाने के लिए भी असमर्थ हो गये।

कुष्ठ रोग का इलाज संभव है

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, कुष्ठ रोग कम से कम 4,000 साल पुराना है, जो सबसे पुरानी बीमारियों में से एक है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का लक्ष्य 2030 तक 120 देशों को लेप्रोसी शून्य बनाना है। कुष्ठ रोग का निवारण और उपचार हो सकता है। सिर्फ जागरुकता जरूरी है।

अब कुष्ठ रोग का इलाज संभव है । दवाएं उपलब्ध हैं । चित्र : एडोबी स्टॉक

मल्टी ड्रग थेरेपी (MDT) नामक एंटीबायोटिक दवाओं के संयोजन से कुष्ठ रोग का इलाज संभव है। यह इलाज पूरी दुनिया में मुफ्त में उपलब्ध है। यदि कुष्ठ रोग का इलाज नहीं किया जाता है, तो यह गंभीर जटिलताएं पैदा कर सकता है।

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