हीमोफीलिया को ‘रॉयल डिजीज’ के रूप में जाना जाता है, क्योंकि यह यूरोपियन शाही परिवार का हिस्सा रह चुका है। महारानी विक्टोरिया पहले इससे पीड़ित हुईं और उनसे यह बीमारी उनके बेटे और बेटी में म्यूटेट हुई। इस तरह पूरे खानदान में यह बीमारी फैलती चली गयी। मगर यह एक तरह का ब्लीडिंग डिसऑर्डर है और इसमें कुछ भी रॉयल नहीं है। विश्व हीमोफीलिया दिवस 2022 (World hemophilia day) पर, आइए जानते हैं इस बीमारी के बारे में हर वह जरूरी बात, जो आपको इससे बचाने में मदद कर सकती है।
वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ हीमोफीलिया (WFH) 2022-23 अभियान हीमोफीलिया के बारे में जागरुकता फैलाने का उद्देश्य रखता है। इस वर्ष इस दिवस की थीम “सभी के लिए पहुंच: साझेदारी, नीति और प्रगति है। जिसका विरासत में मिले रक्तस्राव विकारों को राष्ट्रीय नीति में एकीकृत करना है और सरकार को इसके लिए सही रणनीति बनाने के लिए प्रेरित करता है।” (Access for All: Partnership. Policy. Progress. Engaging our government, integrating inherited bleeding disorders into national policy)।
यह महत्वपूर्ण अभियान ग्लोबल ब्लीडिंग डिसऑर्डर कम्युनिटी को एक साथ लाने, जागरूकता बढ़ाने के बारे में है। साथ ही, हीमोफीलिया और अन्य जेनेटिक्स विकारों का सही इलाज खोजना बहुत ज़रूरी है।
भारत के संदर्भ में, 1983 से, हीमोफीलिया फेडरेशन इंडिया (HFI) भारत का एकमात्र राष्ट्रीय संगठन है। यह चार क्षेत्रों में फैले 87 चैप्टर के नेटवर्क के माध्यम से हीमोफीलिया से पीड़ित लोगों के कल्याण के लिए काम कर रहा है। हीमोफीलियाक्स तक पहुंचने और सही देखभाल, शिक्षा प्रदान करने, सस्ती कीमत पर उपचार उपलब्ध कराने और आर्थिक पुनर्वास के उद्देश्य से और इस प्रकार उन्हें विकलांगता और दर्द से मुक्त जीवन देने में मदद करता है।
हीमोफीलिया एक रक्तस्राव विकार यानी ब्लीडिंग डिसऑर्डर है। जो काफी हद तक एक जेनेटिक स्थिति है। इसमें क्लॉटिंग फैक्टर्स की कमी के कारण ब्लड क्लॉटिंग प्रक्रिया ठीक से काम नहीं कर पाती। जिसके परिणामस्वरूप व्यक्ति को सामान्य से अधिक समय तक ब्लीडिंग हो सकती है। अमूमन होता यह है कि हीमोफीलिया से ग्रस्त व्यक्ति को जब चोट लग जाती है, तो ब्लीडिंग अपने आप नहीं रुकती, क्योंकि ब्लड में थक्के बनाने वाले तत्वों की कमी है। जिसके बाद जोड़ों में दर्द की शिकायत भी रहने लगती है।
हीमोफीलिया A: यह क्लॉटिंग फैक्टर VIII की कम मात्रा के कारण होता है।
हीमोफीलिया B: जो क्लॉटिंग फैक्टर IX के निम्न स्तर के कारण होता है। आम तौर पर एक नॉन फंक्शनल जीन वाले “एक्स” क्रोमोज़ोम के माध्यम से किसी के माता-पिता से विरासत में मिलते हैं।
क्लॉटिंग फैक्टर के आधार पर हीमोफीलिया A और B को माइल्ड, मॉडरेट और सेवियर के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। 1 प्रतिशत से कम सक्रिय कारक वाले व्यक्तियों को गंभीर हीमोफीलिया के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। कुछ कैंसर, ऑटोइम्यून विकार और गर्भावस्था अक्सर अक्वायर हीमोफिलिया से जुड़े होते हैं।
हीमोफीलिया ए अधिक आम है और 5,000 बर्थ में लगभग 1 में होता है। जबकि हीमोफीलिया बी 20,000 बर्थ में से 1 को प्रभावित करता है।
इस जानलेवा बीमारी के जेनेटिक आधार को समझना बहुत जरूरी है। हीमोफीलिया ए और बी की बीमारी एक्स से जुड़ी हुई है, जो मां से विरासत में मिली है। हालांकि यह बीमारी पुरुषों में भी मौजूद है। सभी मनुष्यों में X क्रोमोज़ोम होते हैं, महिलाओं में दो X क्रोमोज़ोम होते हैं। जबकि पुरुषों में एक X और एक Y क्रोमोज़ोम होता है। हीमोफीलिया से संबंधित जीन को केवल X क्रोमोज़ोम ही वहन करता है।
एक पुरुष जो अपने एक्स क्रोमोज़ोम पर हीमोफीलिया जीन प्राप्त करता है, हीमोफीलिया से पीड़ित होगा। यदि किसी महिला के एक्स क्रोमोज़ोम में से एक पर दोषपूर्ण जीन है, तो वह “हीमोफीलिया वाहक” है। वाहक हीमोफीलिया से पीड़ित हो ऐसा ज़रूरी नहीं है, लेकिन वे इस बीमारी को अपने बच्चों को दे सकते हैं।
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कस्टमाइज़ करेंइस रोग के लक्षण गंभीरता के साथ बदलते रहते हैं। आम तौर पर, लक्षण बाहरी या इंटरनल ब्लीडिंग एपिसोड होते हैं। हल्के रोग वाले लोग मामूली लक्षणों से पीड़ित होते हैं। मगर गंभीर हीमोफीलिया के रोगी में काफी इंटरनल ब्लीडिंग हो सकती है। जैसे गहरे आंतरिक रक्तस्राव, मांसपेशियों, जोड़ों में रक्तस्राव, गंभीर दर्द, जोड़ों की सूजन या बार-बार होने वाला रक्तस्राव शामिल है। इन रोगियों को उपचार के दौरान प्राप्त होने वाले रक्त से भी रक्त संबंधी समस्याएं होने का जोखिम ज्यादा होता है।
वाहक का पता लगाने और प्रसव पूर्व निदान द्वारा हीमोफीलिया को रोका जा सकता है। जेनेटिक टेस्ट और परामर्श कुछ ऊतक या ब्लड टेस्ट वाले बच्चे पर बीमारी के जोखिम को निर्धारित करते हैं। जन्म के बाद हीमोफीलिया का निदान खून के थक्के जमने की क्षमता और उसके थक्के स्तर का परीक्षण करके किया जाता है।
हल्के मामलों में आमतौर पर क्लॉटिंग कारकों की आवश्यकता नहीं होती है। जबकि गंभीर मामलों में यह जीवन भर जारी रह सकता है।
हीमोफीलिया की रोकथाम और निदान में बहुत बड़ा अंतर है, क्योंकि भारत में 80 प्रतिशत मामलों में जागरूकता की कमी और विशेष रूप से दूरदराज के क्षेत्रों में नैदानिक सुविधाओं की कमी के कारण निदान नहीं किया जा रहा है। तो आइए हम सभी जागरूकता और जानकारी के साथ इसकी रोकथाम और उपचार की दिशा में काम करें।
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