कोरोना महामारी और लॉकडाउन ने हम सभी को कहीं न कहीं यह अहसास करवाया है कि इंसान ने प्रकृति का बहुत शोषण किया है। अचानक से जब हम अपने घरों में बंद थे, तो यह महसूस हुआ कि नदियों का पानी पहले से साफ है। हवा में प्रदूषण नहीं है और प्रकृति वापस फल-फूल रही है। यह दृश्य देखने में जितना सुहाना था उतना ही शर्मसार करने वाला भी, क्योंकि कहीं न कहीं इन सब की वजह मानव जाति और उनके द्वारा बनाए गए संसाधन हैं, जो सेहत और पर्यावरण दोनों को नुकसान पहुंचा रहे हैं।
प्रकृति और पर्यावरण के महत्व को चिह्नित करने के लिए हर वर्ष 5 जून का दिन ‘विश्व पर्यावरण दिवस’ (World Environment Day) के रूप में मनाया जाता है। मानव पर्यावरण पर स्टॉकहोम सम्मेलन के पहले दिन के दौरान पर्यावरण से संबंधित मुद्दों पर चर्चा के बाद संयुक्त राष्ट्र सभा ने 1972 में विश्व पर्यावरण दिवस की स्थापना की। यह दिवस वैश्विक आबादी को एक संदेश देता है कि प्रकृति को कम नहीं आंका जाना चाहिए।
इंसान ने अपनी सुख सुविधाओं के लिए प्रकृति और स्वास्थ्य को दांव पर लगाकर कई आविष्कार किए हैं जिनमें से एक है – एयर कंडीशनर। यह गर्म तापमान से राहत देकर आपको ठंडक और सुकून का अहसास कराता है, वह भी बगैर शोर शराबे के। यही कारण है कि अब पंखे और कूलर से ज्यादा लोग ए.सी का इस्तेमाल करते हैं।
बीते दिनों लॉकडाउन के दौरान हम सभी ने अपना ज़्यादातर समय घर के अन्दर ए.सी में बिताया है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि लंबे समय तक एसी में बैठना आपके लिए बेहद हानिकारक हो सकता है?
कमरे को ठंडा करते समय ए.सी अक्सर जरूरत से ज्यादा नमी सोख लेते हैं। यदि आप इसे कम तापमान पर सेट करते हैं, तो कमरे के सूखने की संभावना काफी अधिक होती है। यह कमरे की नमी तो सोखता ही है, साथ-साथ शरीर की नमी को भी सोख लेता है। यदि आप अपने आप को पर्याप्त रूप से हाइड्रेट नहीं करते हैं, तो एयर कंडीशनर में डिहाइड्रेशन होने की संभावना अधिक होती है।
एयर कंडीशनर नासिका मार्ग और श्लेष्मा झिल्ली के सूखने का कारण बनते हैं, जिससे वायरल संक्रमण हो सकता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि श्लेष्मा शरीर को संक्रमण से दूर रखने के लिए एक सुरक्षात्मक परत बनाता है। अगर ए.सी. में खराबी आ जाती है, तो कुछ ही समय में संक्रमण शरीर को प्रभावित करेगा।
ए.सी. के लगातार संपर्क में रहने से नाक और गले की सामान्य कार्यप्रणाली बाधित हो सकती है। यह श्लेष्म झिल्ली में श्वसन अवरोध और सूजन का कारण बन सकता है। ए.सी फेफड़ों को भी प्रभावित कर सकता है। ए.सी. में मौजूद प्रदूषक अस्थमा के दौरे का कारण बन सकते हैं। लंबे वक़्त में यह एलर्जी भी पैदा कर सकते हैं।
सीएफ़सी और एचएफसी दोनों शीतलन एजेंट हैं जो एयर कंडीशनर में होते हैं, जो जारी होने पर समय के साथ ओजोन में छिद्रों को बढ़ाते हैं। पुराने एयर कंडीशनर सीएफ़सी और एचएफसी पर भरोसा करते हैं और ग्लोबल वार्मिंग में प्रमुख रूप से योगदान करते हैं। यहां तक कि नए मॉडल, जो एचएफसी और एचएफओ पर अधिक निर्भर हैं, ओजोन डिपलीशन में एक बड़ी भूमिका निभाते हैं।
यकीनन आपको यह जानकार हैरानी हुई होगी क्योंकि जो चीज़ हम अपनी सुविधा के लिए इस्तेमाल करते हैं वही हमें नुकसान पहुंचा रही है। परन्तु अब वक़्त है प्राकृतिक वस्तुओं का उपयोग कर स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों को बचाने का!
1. सबसे आसान है अपने आसपास और घर में पेड़-पौधे लगाना। ऐसे प्लांट्स लगाएं जो 24/7 ऑक्सीजन देते हैं जैसे – स्नेक प्लांट, जो विषाक्त पदार्थों को अवशोषित करने में सक्षम है। यह कमरे में ऑक्सीजन जोड़ने और CO2 को अवशोषित करने के लिए जाना जाता है।
2. घड़े का पानी पिएं, गर्मियों में घड़े का पानी फ्रिज के पानी से ज्यादा शीतल और फायदेमंद होता है। साथ ही, सर्दी और खांसी से पीड़ित लोगों द्वारा आसानी से इसका सेवन किया जा सकता है।
3. कोरोना से बचाव का एक तरीका है मास्क, पर इसे इस्तेमाल करने के बाद किसी नदी, नाले या कचरे के डिब्बे में ऐसे ही न फेकें यह आपके लिए भी हानिकारक है। इसलिए, इसे प्लास्टिक बैग में डालकर डंप करें।
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