वर्षों से एचआईवी टीका विकसित करने के लिए गहन रिसर्च की जा रही हैं। आज भी वैज्ञानिकों के सामने इसे लेकर काफी चुनौतियां हैं। एचआईवी वायरस अभूतपूर्व ढंग से जेनेटिकली खुद को बदल लेता है। इसमें व्यक्ति को आजीवन संक्रमित करने की क्षमता है। एचआईवी वैक्सीन की खोज में ये कुछ बाधाएं हैं। वैज्ञानिक इस कोशिश में लगे हुए हैं कि वायरस के प्रति सुरक्षात्मक प्रतिरक्षा को कैसे प्रेरित किया जाए।एचआईवी वायरस लॉन्ग टर्म में भी व्यक्ति के स्वास्थ्य को प्रभावित करता (long term side effects of AIDS) है। इसके बारे में जानने के लिए हमने उजाला सिग्नस ग्रुप ऑफ़ हॉस्पिटल के फाउंडर और डायरेक्टर डॉ. शुचिन बजाज से बात की।
अमेरिका के नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ एलर्जी और इन्फेक्शियस डिजीज ने 18 मई को वर्ल्ड एड्स वैक्सीन डे मनाने की शुरुआत की थी। एड्स वैक्सीन के प्रति लोगों को जागरूक करने की जरूरत को देखते हुए विश्व के ज्यादातर देशों में यह मनाया जाने लगा। भारत में भी हर वर्ष एचआईवी वैक्सीन जागरूकता दिवस या एचआईवी वैक्सीन डे (World AIDS Vaccine Day) 18 मई को मनाया जाता है। टीके की महत्ता और इस दिशा में लगे वैज्ञानिकों के कार्यों की महत्ता से आम लोगों को अवगत कराने के लिए भी वर्ल्ड एड्स वैक्सीन डे (World AIDS Vaccine Day) मनाया जाता है।
एचआईवी वैक्सीन डे के माध्यम से यह बताया जाता है कि एचआईवी को रोकने के लिए एक सुरक्षित और प्रभावी टीका बहुत जरूरी है। यह एचआईवी वैक्सीन अनुसंधान के महत्व के बारे में कम्युनिटी को शिक्षित करने का भी दिन है। इस वर्ष इसकी थीम है एचआईवी को लेकर समाज में असमानता समाप्त करना और एड्स का उन्मूलन (Ending inequality and eradicating HIV/AIDS)
डॉ. शुचिन बजाज बताते हैं, ‘एड्स (AIDS or Acquired Immunodeficiency Syndrome) एचआईवी (HIV or Human Immunodeficiency Virus) संक्रमण का अंतिम चरण है। एचआईवी इम्यून सिस्टम को कमजोर कर देता है। इससे व्यक्ति विभिन्न तरह के संक्रमणों और बीमारियों के प्रति संवेदनशील हो जाता है। लंबे समय में एड्स का व्यक्ति के शरीर पर बहुत अधिक दुष्प्रभाव पड़ता है। ये बुरे प्रभाव व्यक्ति और उनके द्वारा अनुभव किए जाने वाले विशिष्ट संक्रमण या जटिलताओं के आधार पर भिन्न हो सकते हैं।’
डॉ. शुचिन बजाज के अनुसार, एड्स प्रतिरक्षा प्रणाली को कमजोर कर देता है। इससे व्यक्ति समय के साथ संक्रमणों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाता है। इसके कारण निमोनिया, टीबी, कैंडिडिआसिस (yeast infection), साइटोमेगालोवायरस (CMV) संक्रमण और टोक्सोप्लाज़मोसिज़ शामिल हैं।
एड्स सेंट्रल नर्वस सिस्टम को प्रभावित कर सकता है। यह विभिन्न न्यूरोलॉजिकल जटिलताओं को जन्म दे सकता है। एचआईवी से जुड़े तंत्रिका संबंधी विकार जैसे संज्ञानात्मक हानि (cognitive loss), मेमोरी प्रॉब्लम (memory) और कॉनशनट्रेशन में कठिनाई का कारण बन सकते हैं। एचआईवी से जुड़े डिमेंशिया और न्यूरॉन लॉस जैसी अन्य स्थितियां भी हो सकती हैं।
एड्स से पीड़ित व्यक्तियों में कुछ प्रकार के कैंसर विकसित होने का खतरा बढ़ जाता है। विशेष रूप से वे जो वायरल संक्रमण से जुड़े होते हैं। इनमें कपोसी का सरकोमा, गैर-हॉजकिन लिंफोमा और इनवेसिव सर्वाइकल कैंसर शामिल हैं।
एड्स से संबंधित वेस्टिंग सिंड्रोम, जिसे कैशेक्सिया (cachexia) के रूप में भी जाना जाता है। इसके कारण वजन, मांसपेशियों और ताकत में कमी आ जाती है। यह कमजोरी, थकान और समग्र स्वास्थ्य में गिरावट का कारण बन सकता है।
एड्स से पीड़ित लोगों में हृदय रोग, दिल के दौरे और स्ट्रोक जैसे हृदय रोगों का खतरा अधिक होता है। पुरानी सूजन, एंटीरेट्रोवाइरल थेरेपी के दुष्प्रभाव और खराब जीवनशैली जटिलताओं को बढ़ा सकते हैं।
एचआईवी से जुड़ी नेफ्रोपैथी किडनी की बीमारी है, जो एड्स संक्रमित व्यक्तियों में हो सकती है। यह गुर्दे की क्षति का कारण बन सकता है और समय के साथ गुर्दे की कार्यप्रणाली को ख़राब कर सकता है।
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कस्टमाइज़ करेंएड्स के साथ रहना और लंबे समय तक इसके प्रभावों से जूझना मानसिक स्वास्थ्य पर भारी पड़ने लगता है। एड्स से ग्रस्त व्यक्तियों में अवसाद (Depression) , चिंता (Anxiety) और अन्य मनोवैज्ञानिक समस्याएं आम हैं।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि एंटीरेट्रोवाइरल थेरेपी में प्रगति के साथ एचआईवी संक्रमण से एड्स तक की प्रगति काफी धीमी हो गई है। इन दीर्घकालिक दुष्प्रभावों (long-term side effects) में से कई को उचित चिकित्सा देखभाल और उपचार से रोका या प्रबंधित किया जा सकता है। नियमित चिकित्सा, फ़ॉलो अप, एंटीरेट्रोवाइरल थेरेपी का पालन और स्वस्थ लाइफस्टाइल एड्स के प्रभाव को कम करने में मदद कर सकता है। इससे व्यक्ति का समग्र स्वास्थ्य और वेलनेस बढ़िया होगा।
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