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क्या ओमिक्रोन वेरिएंट के साथ हो जाएगा कोरोनावायरस महामारी का अंत, जानिए क्या कहते हैं एक्सपर्ट

इस समय पूरी दुनिया के कोरोना के नए वेरिएंट ओमिक्रोन से जूझ रही है। भारत में भी ओमिक्रोन के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। हालांकि, दुनिया भर के साइंटिस्ट का मानना हैं कि 2022 में इस नए वेरिएंट ओमिक्रोन के साथ ही महामारी का अंत हो जाएगा।
Updated On: 20 Jan 2022, 04:10 pm IST
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Kya omicron is mahamari ka ant hai
क्या ओमिक्रोन इस महामारी का अंत है? चित्र:शटरस्टॉक

दुनिया के दूसरे देशों की तरह कोरोना का नया वैरिएंट ओमिक्रोन भारत में भी अपना असर दिखा चुका है। ऐसे में हर किसी के दिमाग में एक ही सवाल है कि आखिर तीसरे साल में प्रवेश कर चुके कोरोना वायरस का अंत कब होगा? कब तक इसी तरह वायरस के साथ जीने को मजबूर होना पड़ेगा? इसको लेकर दुनिया भर के विशेषज्ञों ने सकारात्मक उम्मीद जताई है। अमेरिका, डेनमार्क समेत दुनिया भर के एक्सपर्ट का मानना है कि जल्द ही कोरोना वायरस का अंत (Endemic) संभव है। फिर से पूरी दुनिया के सामान्य जीवन जीने की और अग्रसर होगी। 

ओमिक्रोन के साथ हो सकता है महामारी का अंत  

डेनमार्क की हेल्थ चीफ टायरा ग्रूव क्रास ने भविष्यवाणी की है कि दुनिया से ओमिक्रोन वेरिएंट के साथ ही कोरोना महामारी (End of Pandemic) का अंत हो जाएगा। उन्होंने उम्मीद जताई है कि ओमिक्रोन कोरोना महामारी का अंत लेकर आया है। हम सभी अगले दो महीनों में फिर से सामान्य लाइफ जीने लगेंगे। 

यह बात डेनमार्क के स्टेट सीरम इंस्टीट्यूट की चीफ एपिडेमायोलॉजिस्ट टायरा ने एक टीवी चैनल से बातचीत करते हुए कहीं। टायरा ने अपने बयान में आगे कहा कि एक स्टडी में ऑर्गेनाइजेशन इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि डेल्टा की तुलना में ओमिक्रोन से संक्रमित होने के बाद हॉस्पिटल में भर्ती होने का जोखिम 50 फीसदी है। यानी डेल्टा की तुलना में ओमिक्रोन आधा प्रभावशाली है। इससे एक उम्मीद मिली है कि आनेवाले समय में इस महामारी का अंत हो जाएगा। 

Visheshagya maante hai ki covid-19 se chutkara paane ka samay aa gaya hai
विशेषज्ञ मानते हैं कि कोविड-19 से छुटकारा पाने का समय आ गया है। चित्र:शटरस्टॉक

अगले दो महीनों में हम लौट सकते हैं सामान्य जीवन की ओर 

टायरा ने आगे बताया कि आने वाले दो महीनों में महामारी के अंत के कयास लगाए जा सकते हैं। इसके बाद जीवन फिर सामान्य हो जाएगा। हालांकि, उन्होंने यह भी चिंता जाहिर की है कि ओमिक्रोन के बढ़ते संक्रमण से लग रहा है कि यह कोरोना महामारी को और लंबा खींच सकता है। 

इस स्टडी के मुताबिक, आने वाले समय में ओमिक्रोन संक्रमण तेजी से फैल सकता है। हालांकि, डेल्टा वायरस की तुलना में यह कम शक्तिशाली है। टायरा ने कहा कि जनवरी महीने के अंत में ओमिक्रोन अत्यधिक प्रभावशाली होगा। हालांकि, फरवरी महीने में संक्रमण के मामले घटने लगेंगे। 

वैज्ञानिक डॉ कुतुब महमूद भी यही मानते हैं 

वाशिंगटन में वैज्ञानिक और वायरोलॉजिस्ट डॉ कुतुब महमूद का भी ऐसा ही अनुमान है। उनका कहना है कि टीकाकरण अभियान कोरोना से जंग में सबसे मजबूत हथियार है। उन्होंने कहा कि हम हमेशा महामारी के साथ नहीं रह सकते हैं। एक दिन इसका अंत होना है, जो बहुत नजदीक है। उनका कहना है कि यह एक ऐसा शतरंज का खेल है, जिसका कोई विजेता नहीं होगा। यह मैच बस ड्रॉ होने जा रहा है। उन्होंने उम्मीद जताई है कि जल्द ही वह समय आनेवाला है जब वायरस कहीं छिप जाएगा और हम एक विजेता बन जाएंगे। हम जल्दी ही फेसमास्क से निजात पा लेंगे। डॉ. महमूद ने भारत में 60 फीसदी आबादी को हुए टीकाकरण की भी जमकर सराहना की है। 

Jald hi aap samanya jeewan ki or badhenge
जल्द ही आप सामान्य जीवन की ओर बढ़ेंगे। चित्र : शटरस्टॉक

इंसानों और वायरस के बीच शतरंज का खेल

डॉ. महमूद का कहना हैं कि इस साल हम जैसे-जैसे आगे बढ़ेंगे, वैसे-वैसे वायरस के अंत तक पहुंच जाएंगे। उम्मीद है कि जल्द ही इस महामारी का अंत हो जाएगा। दरअसल, वायरस, मनुष्यों में बदलती रोग प्रतिरोधक क्षमता के अनुकूल म्यूटेंट होने की कोशिश करता है। 

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उन्होंने कहा कि यह इंसानों और वायरस की बीच शतरंज के खेल की भांति है। वायरस, इंसानों को मात देने के लिए लगातार नई चाल चल रहा है, जिसका इंसान भी माकूल जवाब दे रहा है। हालांकि, इंसानों के पास सैनिटाइजर, फेसमास्क, सोशल डिस्टेंसिंग जैसी छोटी-छोटी चालें है।

2022 में कोरोना का अंत निश्चित 

इसी तरह विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख डॉ. टेड्रस अधनोम का मानना है कि 2022 कोरोना के अंत का साल होगा। इसके लिए विकसित देशों को अपने वैक्सीन दूसरे पिछड़े देशों के साथ शेयर करना चाहिए। उन्होंने यह भी चिंता जाहिर कि है कि संकीर्ण राष्ट्रवाद और वैक्सीन जमाखोरी के कारण ही ओमिक्रोन के एक्टिव होने के लिए आदर्श परिस्थिति पैदा हुई है। 

उन्होंने बताया कि चाड, बुरूंडी, हैटी और डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कोन्गो जैसे अति पिछड़े देशों में वैक्सीनेट लोगों की आबादी एक फीसदी से भी कम है, जो कि बेहद चिंताजनक है।  

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