हाल में बॉलीवुड अभिनेता सोनू सूद ने चौमुखी कुमारी, जिन्हें ‘स्पाइडर गर्ल’ का उपनाम दिया गया है का ऑपरेशन करवाने में उनके परिवार की मदद की। जिसके बाद से चौमुखी कुमारी जैसे केस सबके ध्यान में आए और चर्चा का विषय बन गए। चौमुखी एक ऐसी बच्ची है, जो चार पैर और चार हाथ के साथ पैदा हुई। चौमुखी ऑपरेशन के बाद पूरी तरह ठीक हैं।
देश में हर कोई इस छोटी सी लड़की के परिवार की मदद करने के लिए सोनू की प्रशंसा कर रहा है पर हममें से ज्यादातर लोग चौमुखी जैसे बच्चों की स्थिति के बारे में ज़्यादा नहीं जानते हैं जहां एक बच्चा कई अतिरिक्त अंगों के साथ पैदा होता है।
हम सभी ने जुड़वा बच्चों या एक दूसरे से जुड़े हुए बच्चों के मामले देखे या सुने हैं – जहां दो बच्चे शारीरिक रूप से एक-दूसरे से जुड़े हुए पैदा होते हैं ऐसे में चौमुखी का मामला दुर्लभ मामलों में से एक है।
इस बारे में हेल्थशॉट्स ने मधुकर रेनबो हॉस्पिटल की सीनियर कंसल्टेंट डॉ अनामिका दूबे से बात की जिन्होंने इस बारे में बात करते हुए कहा कि संयुक्त रूप से जुड़े हुए बच्चे वे हैं जो एक दूसरे से पूरी तरह से अलग नहीं होते हैं, साझा अंगों के आधार पर कई प्रकार के संयुक्त जुड़वां बच्चे हो सकते हैं।
डॉ दूबे ने खुलासा किया,“बिहार में पैदा हुई बच्ची चौमुखी अतिरिक्त अंगों के साथ पैदा हुई, जिसका कारण विकासात्मक दोष है। जब गर्भ में दो बच्चे होते हैं लेकिन जुड़वा बच्चों में से एक सामान्य रूप से विकसित नहीं हो पाता तो इस स्थिति को ‘परजीवी जुड़वा (parasitic twins)’ के रूप में जाना जाता है, जिसमें दूसरे जुड़वा बच्चे का सिर और दिल कभी विकसित नहीं होते हैं, लेकिन शरीर के कुछ हिस्से, विकसित हो जाते हैं। पैरासाइट ट्विन्स, अपने अंगों को जीवित रखने के लिए दूसरे जुड़वा बच्चे के खून और पोषक तत्वों पर निर्भर रहता है।”
ऐसे जुड़वा बच्चों में अन्य असामान्यताएं भी देखी जा सकती हैं, जैसे उनके अन्य अंग अलग-अलग तरफ हो सकते हैं। कभी-कभी ऐसे बच्चों का दिल दाहिनी ओर हो सकता है तो लीवर बाईं ओर। डॉक्टर दूबे ने कहा, “वैज्ञानिकों का मानना है कि ऐसा तब होता है जब गर्भ में निषेचित अंडा सामान्य से बाद में फूटता है।”
होने वाले माता-पिता के लिए जुड़वा बच्चों की उम्मीद करना बहुत ही सुखद खबर हो सकती है पर कई बार यह खुशखबरी तब बुरी खबर में तब्दील हो जाती है जब गर्भ में पल रहे एक बच्चे का विकास सही तरह से नहीं हो पाता है। गर्भ में जुड़वा बच्चों का विकास बहुत अलग तरीके से होता है। कुछ दुर्लभ मामलों में, वे परजीवी जुड़वा बन जाते हैं। हालांकि, एडवांस तकनीकों के साथ, अल्ट्रासाउंड की मदद से पहली तिमाही में ही इस स्थिति का पता लगा कर इसका निदान किया जा सकता है।
डॉ दूबे के अनुसार, ” त्रि-आयामी अल्ट्रासाउंड (Three-dimensional ultrasound) और एमआरआई (MRI) की मदद लेकर यह जाना जा सकता है कि साझा किए गए अंग अलग किए जा सकते हैं या नहीं इस बात के पता करने के लिए टू डाइमेंशनल अल्ट्रासाउंड (Two-dimensional ultrasound) भी मददगार है।”
ऐसे बच्चों का विकास नहीं होता है और उनके स्वास्थ्य का ध्यान रखने के लिए tertiary care की ज़रुरत पड़ती है जिसमें विशषज्ञों की एक पूरी टीम होती है। इस टीम में नियोनेटोलॉजिस्ट, पीडियाट्रिक एनेस्थेसियोलॉजिस्ट, पीडियाट्रिक सर्जन और पीडियाट्रिक ऑर्थोपेडिक सहित कई अनुशासनात्मक टीमें भी शामिल होती हैं।
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