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डब्लूएचओ ने दी बच्चों पर इस्तेमाल होने वाली पहली मलेरिया वैक्सीन को मंंजूरी

मलेरिया मच्छरों से सबसे ज्यादा फैलने वाला रोग है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने दुनिया के पहले मलेरिया टीके को मंजूरी देकर इससे मुकाबले के लिए एक मजबूत संबल तैयार किया है।
Published On: 7 Oct 2021, 07:30 pm IST
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honghong me Covid-19
हांगकांग में कम है टीकाकरण की दर। चित्र: शटरस्टॉक

मच्छरों से फैलने वाली बीमारियों में मलेरिया भी एक घातक बीमारी है। हर साल दुनिया भर में लाखों-करोड़ों बच्चे इससे प्रभावित होते हैं। कोविड-19 के कारण हालांकि इससे मुकाबले की गति प्रभावित हुई है। पर बुधवार को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया। डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक टेड्रोस एडनॉम घेबियस ने बच्चों पर इस्तेमाल के लिए पहली मलेरिया वैक्सीन को मंजूरी दे दी है। इसका नाम मॉसक्विरिक्स है। 

मलेरिया के कार्य और रिस्क फ़ैक्टर्स

मलेरिया संक्रमित मच्छरों से फैलने वाली बीमारी हैं। जब कोई मच्छर मलेरिया वायरस से संक्रमित व्यक्ति को काटता है, तो वायरस मच्छर में प्रवेश कर जाता है। फिर, जब संक्रमित मच्छर दूसरे व्यक्ति को काटता है, तो वायरस उस व्यक्ति के खून में प्रवेश करता है और संक्रमण का कारण बनता है। मलेरिया के मच्छर आम तौर पर कहीं भी गंदे पानी में उत्पन्न हो सकते हैं। यही कारण है कि यह वायरस तेजी से फैलता है। 

Malaria aapko kamzor kar sakta hai
मलेरिया आपको कमजोर कर सकता हैं। चित्र : शटरस्टॉक

भारत में मलेरिया की स्थिति 

भारत में हर साल मलेरिया की बीमारी के चलते दो लाख से ज्यादा मौतें होती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक हर साल 2,05,000 मौतें मलेरिया से होती हैं। यह ज्यादातर बच्चों को अपनी चपेट में लेती हैं। 55,000 बच्चों के जन्म के कुछ ही सालों के भीतर मलेरिया के कारण मौत हो जाती हैं। 30 हजार बच्चे पांच से 14 साल के बीच मलेरिया से दम तोड़ते हैं। 15 से 69 साल की उम्र के 1,20,000 लोग भी इस बेहरम बीमारी से बच नहीं पाते हैं। 

मलेरिया वैक्सीन 

मॉसक्विरिक्स (mosquirix) 1987 में ब्रिटिश दवा निर्माता ग्लाक्सो स्मिथ क्लाइन  (GlaxoSmithKline) द्वारा विकसित किया गया था। यह 30 वर्षों से अधिक समय से बना हुआ है और यह एकमात्र वैक्सीन है जिसने मलेरिया के अनुबंध की संभावना को कम करने की क्षमता दिखाई है।

Africa mein aayi malaria ki vaccine
अफ्रीका में आई मलेरिया की वैक्सीन। चित्र: शटरस्टॉक

डब्ल्यूएचओ के अफ्रीका निदेशक डॉ. मात्शिदिसो मोएती ने कहा, “आज की सिफारिश अफ्रीका के लिए आशा की एक किरण प्रदान करती है। मलेरिया बीमारी का सबसे बड़ा बोझ है जिसे डू करना जरूरी हैं। हम उम्मीद करते हैं कि कई और अफ्रीकी बच्चे मलेरिया से सुरक्षित रहेंगे और स्वस्थ रूप से विकसित होंगे।”

अफ्रीका में मॉसक्विरिक्स (mosquirix) का ट्रायल 

WHO 2019 से घाना, केन्या और मलावाई में मॉसक्विरिक्स (mosquirix) के लिए अनुसंधान कर रहा है, जिसमें 8 लाख से अधिक बच्चों को मलेरिया का टीका लगाया गया था। अब तक बच्चों को मॉसक्विरिक्स (mosquirix)  की 23 लाख खुराकें पिलाई जा चुकी हैं।

डब्ल्यूएचओ (WHO) ने कहा कि उसका निर्णय काफी हद तक घाना, केन्या और मलावी में चल रहे शोध के परिणामों पर आधारित था, जहां 2019 से 800,000 से अधिक बच्चों को मलेरिया का टीका लगाया गया है। डब्ल्यूएचओ (WHO) के प्रमुख टेड्रोस एडनॉम घेब्रेयसस ने कहा, “यह अफ्रीका में अफ्रीकी वैज्ञानिकों द्वारा विकसित एक टीका है और हमें बहुत गर्व है।”

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Malaria mein hota hai tej bukhaar
मलेरिया में होता हैं तेज बुखार। चित्र : शटरस्टॉक

जबकि मॉसक्विरिक्स (mosquirix) अधिकृत होने वाला पहला टीका है, इसमें चुनौतियां भी हैं। टीका लगभग 30% प्रभावी है, इसके लिए चार खुराक की आवश्यकता होती है और इसकी सुरक्षा कई महीनों के बाद फीकी पड़ जाती है। फिर भी, अफ्रीका में मलेरिया के मामलों को देखते हुए वैज्ञानिकों का कहना है कि मॉसक्विरिक्स (mosquirix) वैक्सीन का अभी भी एक बड़ा प्रभाव हो सकता है।

चलते-चलते 

अफ्रीका हो या भारत, मलेरिया एक बहुत खतरनाक बीमारी हैं जिसका इलाज आज भी संभव नहीं हैं। डब्लूएचओ की इस मंजूरी से मलेरिया से लड़ने में सकारात्मक फल मिल सकता हैं।  मॉसक्विरिक्स (mosquirix) वैक्सीन के सफल परिणाम से मलेरिया को विश्व से खतम किया जा सकता हैं। अतः यह मेडिकल साइंस के क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि हैं। 

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लेखक के बारे में
अदिति तिवारी
अदिति तिवारी

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