सफलता के बावजूद क्‍या होता है इतना निराशाजनक कि युवा आत्‍महत्‍या कर लेते हैं ?

सुशांत सिंह राजपूत जैसे जिंदादिल व्‍यक्ति की आत्‍महत्‍या की खबर से सभी सकते में हैं। ऐसा नहीं है कि एक्‍स्‍ट्रीम मानसिक अवसाद ही आत्महत्या का कारण बनता है। कभी-कभी हल्‍की तात्‍कालिक निराशा और हल्‍का मानसिक अवसाद भी आत्‍महत्‍या के लिए ट्रिगर करते हैं।
कभी-कभी हल्‍का तनाव और निराशा भी किसी बड़े जोखिम का कारण बन सकती है। चित्र: Twitter/sushant
टीम हेल्‍थ शॉट्स Published: 14 Jun 2020, 15:58 pm IST
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प्रतिभाशाली अभिनेता और जिंदादिल इंसान माने जाने वाले सुशांत सिंह राजपूत ने मुंबई में अपने घर में फांसी लगाकर आत्‍हत्‍या कर ली। इस खबर ने बॉलीवुड और टेलीविजन इंडस्‍ट्री ही नहीं उनके फैन्‍स को भी चौंका दिया है।

फि‍ल्‍म अभिनेता ने इस मामले में ट्वीट करते हुए उनकी फि‍ल्‍म छिछोरे को याद किया। जिसमें उन्‍होंने एक ऐसे पिता का किरदार अदा किया था जिसमें उनका बेटा आत्‍महत्‍या की कोशिश करता है। सुशांत यहां अपने बेटे को फि‍र से जिंदगी की ओर लौटने को प्रेरित कर रहे थे और आज वे खुद ही जिंदगी की जंग हार गए ।

कोविड – 19 महामारी और मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य

कोरोना जैसी महामारी के समय में जब सारी दुनिया मानसिक तनाव से गुजर रहीं है, तब सभी एक-दूसरे से यह सवाल कर रहे हैं कि क्‍या कोई कामयाब और जिंदादिल व्‍यक्ति भी ऐसा कर सकता है? इस संदर्भ में हमें हाल ही में हुए एक शोध पर नजर डालनी चाहिए। जो हमारी अ‍ब तक की अवधारणाओं को बदल रहा है।

आत्‍महत्‍या एक दहशत भरा शब्‍द है। यह केवल ए‍क व्‍यक्ति ही नहीं,बल्कि उससे जुड़े एक परिवार और समूह को भी आघात पहुंचाता है। और यह दुख आजीवन उनके साथ रहता है। अभी तक हम सभी ऐसा मानते थे कि आत्‍महत्‍या केवल कुछ विशेष परिस्थितियों या एक्‍स्‍ट्रीम मानसिक अवसाद में ही की जाती है।

पर हाल में हुई कुछ घटनाएं इस विषय पर गंभीरता से विचार करने की मांग करती हैं। फि‍ल्‍म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की आत्‍महत्‍या की खबर ने सभी को परेशान कर दिया है।

आत्‍महत्‍या का दबाव और यह नया शोध

हाल ही में हुए कुछ शोध हमारी अब तक की अवधारणा को गलत साबित करते हुए नए विचार और सुझाव लाए हैं। यह शोध बताते हैं कि हल्का और सामान्य सा दिखने वाला मानसिक तनाव भी कई दफा युवाओं को गंभीर परेशानियों में डाल देता है।

यह शोध BMJ ओपन में प्रकाशित हुआ। इस शोध का कहना था कि पब्लिक पालिसी को सभी युवाओं के बेहतर मानसिक स्वास्थ्य के लिए काम करना चाहिए ना कि सिर्फ उन लोगो के लिए जो गंभीर रूप से अस्वस्थ हैं।

मेंटल क्राइसिस की डिग्री मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती है?

इस मुद्दे पर पहले हो चुके कुछ शोध कहते हैं कि मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य की समस्याएं जैसे डिप्रेशन, एंग्जायटी और आत्मसम्मान कि कमी को डिग्री के आधार पर मापा जा सकता है। जिसे कॉमन मेन्टल डिस्ट्रेस (CMD) कहते हैं।

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अब भी हमारे यहां छोटे-मोटे तनाव को बहुत गंभीरता से नहीं लिया जाता, जो अवसाद के जोखिम को बढ़ा देता है। चित्र: शटरस्‍टॉक

इस शोध ने आगे चलकर मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य के मुद्दों के कारण और उसके द्वारा होने वाले संकट के आपस में सम्बन्ध का निरीक्षण किया। शोधकर्ताओं ने सवालों की एक सूची तैयार की, ताकि वह आम तौर पर होने वाले मानसिक अवसादों का पता लगा सकें। यह प्रक्रिया खासतौर पर दो यंग ऐज ग्रुप के लोगो के लिए थी (14 और 24 साल के भीतर आने वाले लोग)।

दोनों में समान है जोखिम

शोधकर्ताओं ने मानसिक अवसाद से जूझ रहे कुछ ऐसे लोगो के डाटा एकत्रित किये, जो आत्महत्या करने के बारे में सोचते हैं और कुछ ऐसे लोग जो आत्महत्या के बारे में तो नहीं सोचते पर आत्मघाती हो जाते हैं। शोधकर्ताओं का मानना था कि दोनों ही भविष्य में आत्महत्या होने के रिस्क को बढ़ा सकते हैं।

हल्‍के तनाव में भी हो सकता है आत्‍महत्‍या का जोखिम

मानसिक अवसाद और मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों की डिग्री के बीच रिश्ते को समझने से पहले, हमें यह समझना चाहिए कि मानसिक अवसाद कैसे मापा जाता है।

कॉमन मेन्टल हेल्थ डिसऑर्डर्स (CMD) को आमतौर पर तीन महवपूर्ण डिग्रीज के ज़रिए मापा जा सकता है। इनकी शुरुआत शांत और सामान्य से मानसिक अवसाद से ही होती है। आगे चलकर यह कुछ मॉडरेट रूप ले लेते हैं और आखिर में जाकर गंभीर मानसिक संकट का रूप ले लेते हैं। जो अक्सर क्लिनिकल मेन्टल हेल्थ डिसॉर्डर के रूप में सामने आता है।

इस शोध में पता चला है कि जिन लोगों को गंभीर मानसिक अवसाद था, उनमें आत्महत्या के सर्वाधिक मामले देखे गए। दिलचस्प बात यह सामने आई कि आत्महत्या का विचार करने वाले या खुद को आत्महत्या के समान क्षति पहुंचाने वाले अधिकांश लोग मानसिक अवसाद के हलके या मध्यम लेवल पर थे।

शोध के दौरान लिए गए सैंपल में पाया गया कि 78% और 76% लोगो को आत्महत्या या आत्मक्षति का सामना करना पड़ रहा था। उनके मानसिक तनाव का स्तर भी हल्का या मध्यम था। इसी तरह दूसरे सैंपल में भी पहले सैंपल की तरह के परिणाम ही थे। लेकिन आंकड़ा 66% और 71% था।

कैंब्रिज यूनिवर्सिटी शोध के लेखक, पीटर जोंस कहते हैं, “ऐसा लगता है कि युवाओं में खुद को नुकसान पहुंचाने और आत्महत्या का विचार करने का आंकड़ा तेज़ी से बढ़ता जा रहा है। मानसिक अवसाद से जुड़े मुद्दे सामान्य हैं और नॉन-क्लीनिकल हैं, लेकिन इनका आंकड़ा तेज़ी से बढ़ रहा है।”

किसी से बात करना, आपको तनाव से बाहर आने में मदद कर सकता है। चित्र: शटरस्टॉक

कैसे रोक सकते हैं युवाओं में आत्‍महत्‍या

मानसिक स्वास्‍थ्‍य से सम्बंधित शोध सभी की मदद के लिए होने चाहिए, न कि सिर्फ उनके लिए जो इस रोग से प्रभावित हैं।

ये कैसे हो सकता है? जॉन्स हमसे आगे सांझा करते हुए कहते हैं, “यह तो हम सभी जानते हैं, कि ज़्यादातर शारीरिक बीमारियां जैसे डायबिटीज और हृदय की बीमारी के लिए किये जाने वाला छोटा सा सुधार बड़ी जनसंख्या को खतरे से बचा लेता है। बजाय इसके कि हमारा सारा ध्यान गंभीर रोगियों पर ही केंद्रित रहे।”

अब, जबकि हम सब लोग गंभीर महामारी के खतरे के साथ मानसिक स्वास्थ्य की बढ़ती समस्याओं से भी गुजर रहे हैं, ऐसे में हमे याद रखना होगा कि ज़्यादातर आत्महत्या और आत्मक्षति के मामले लो-रिस्क पापुलेशन से ही आने वाले हैं। हमें अपने खराब होते मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य के लक्षणों को बिल्‍कुल भी इग्नोर नहीं करना चाहिए।

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