‘कमजोर इम्यूनिटी, वैक्सीन के कयास और लापरवाही’: क्या हम कोरोना से लड़ाई में गलत दिशा में बढ़ रहे हैं?

कोरोनावायरस आम जन के लिए ही नहीं, वैज्ञानिक समुदाय के लिए भी किसी एलियन से कम नहीं है। इसकी संरचना भले समझ आ गई हो, पर वह कितनी अवधि में क्या प्रतिक्रिया देगी यह अभी भी शोध का विषय है।
कोविड-19 दुनिया का दुश्‍मन नंबर 1 है, इसे और गंभीरता से लेना होगा। चित्र: शटरस्‍टॉक
योगिता यादव Updated: 14 Jul 2020, 17:58 pm IST
  • 99

सोमवार को विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन (WHO) के प्रमुख डॉ टेड्रोस एडनॉम गेब्रियेसस के इस बयान ने एक बार फि‍र से सभी को परेशान कर दिया कि बहुत सारे देश कोरोना से निपटने के मामले में ग़लत दिशा में बढ़ रहे हैं। इसके पीछे डॉ टेड्रोस का तर्क था कि कोरोना वायरस से संक्रमण के नए मामले लगातार बढ़ रहे हैं। अर्थात इससे बचने के लिए जिन एहतियाती उपायों का पालन करना था, वह हम नहीं कर पा रहे हैं।

उन्होंने अमेरिका के आंकड़े प्रस्तुत किए, पर हालात अपने देश के भी कोई बहुत अच्छे नहीं हैं।
उत्तरी और दक्षिणी अमेे‍रिका इस महमारी की चपेट में अभी सबसे ज्‍यादा हैं।

भयावह हैं आंकड़ें

जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के आंकड़ों के अनुसार अमेरिका अब भी कोरोना की मार सबसे ज़्यादा झेल रहा है। यहां अब तक 33 लाख लोग कोरोनावायरस से संक्रमित हो चुके हैं और एक लाख 35 हज़ार से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है।

हवा में कोरोनावायरस होने के कारण आपको और भी ज्‍यादा सतर्क रहना है। चित्र: शटरस्‍टॉक

जबकि भारत में कोविड-19 के मामले नौ लाख के पार पहुंच गए हैं और इनमें मरने वालों की संख्या 23,727 हो गई है। कोरोना संक्रमण के मामले आठ लाख से बढ़कर नौ लाख पिछले तीन दिनों में ही हुए हैं। इसे आप वीकेंड अपडेट मान सकते हैं।

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के अनुसार 13 जुलाई तक 1,20,92,503 नमूनों की जांच की गई, जिनमें से 2,86,247 नमूनों की जांच सोमवार को ही की गई। आंकड़ों के अनुसार कोविड-19 से अभी तक महाराष्ट्र में सबसे अधिक 10,482 लोगों ने जान गंवाई है।

हालांकि मंत्रालय का यह भी कहना है कि जान गंवाने वाले 70 प्रतिशत लोगों को पहले से ही कोई बीमारी थी।

अनलॉक 2.0 यानी लापरवाही का एक और अध्याय

विश्व स्वास्‍थ्‍य संगठन (WHO) के आपातकालीन निदेशक माइक रायन ने कहा कि लॉकडाउन में ढील और कुछ इलाक़ों को खोलने से संक्रमण के और तेज़ी से फैलने का डर है। यह बात उन्होंने अमेरिका के संदर्भ में कही, आप अपने इलाके की जांच कर सकते हैं।

आपको ज्यादा दूर जाने की जरूरत नहीं है, अपने घर से निकल कर जरा बाजार तक टहल आइए। न आपको लोगों के चेहरे पर कोविड-19 नामक वैश्विक महामारी का डर दिखाई देगा और न ही वे इसके लिए कोई सावधानी बरतते नजर आएंगे।

लापरवाही ने इस बीमारी की भयावहता को और बढ़़ा़ दिया है। चित्र: शटरस्‍टॉक

घर-घर संक्रमण पहुंचाने के संभावित वाहक बन सकने वाले सब्जी वाले, ठेले वाले, मिल्क और ग्रोसरी पहुंचाने वाले लोगों ने मास्क तो पहना है, पर वे फैंसी ज्यादा हैं प्रोटेक्टिव कम। खाने के शौकीन लोगों ने पिज्जा, पास्ता भी ऑर्डर करना शुरू कर दिया है।

और कोरोना से सिर्फ ये लोग ही क्यों डरें, जब राजनीतिक गतिविधियां और आयोजन नहीं डर रहे।

अपनी रुचि के विषय चुनें और फ़ीड कस्टमाइज़ करें

कस्टमाइज़ करें

डॉ टेड्रोस की चिंता भी यही थी। उनका कहना था, ”कोरोना वायरस अब भी लोगों का नंबर वन दुश्मन है, लेकिन दुनिया भर की कई सरकारें इसे लेकर जो क़दम उठा रही हैं, उससे ये आभास नहीं होता है कि कोरोना को ये गंभीर ख़तरे की तरह ले रही हैं।”

डॉ टेड्रोस सावधान करते हुए कहते हैं, “सोशल डिस्टेंसिंग, हाथ धोना और मास्क पहनना इस महामारी से बचने के कारगर तरीक़े हैं और इन्हें गंभीरता से लिए जाने की ज़रूरत है। अगर बुनियादी चीज़ों का पालन नहीं किया गया तो कोरोना थमने वाला नहीं है।”

कब तक चलेगा इम्यूनिटी का रक्षा कवच

अभी तक इम्यूनिटी ही कोरोनावायरस से बचने का एकमात्र रक्षा कवच है। इस खतरनाक वायरस से बच जाने वालों में जो लाखों लोग शामिल हैं, वे अपने शरीर में मौजूद रोग प्रतिरोधक क्षमता से ही बच पाए हैं। पर अब एक नए अध्ययन में इम्‍यूनिटी के लंबे समय तक टिके रहने पर ही संदेह व्यक्त किया जा रहा है।

सोमवार को ही लंदन के किंग्स कॉलेज के वैज्ञानिकों ने अपनी एक रिपोर्ट जारी की। इस रिपोर्ट में संदेह व्यक्‍त किया गया कि कोरोना से ठीक हुए मरीज़ों में बनी इम्यूनिटी जरूरी नहीं कि बहुत लंबी अवधि तक बरकरार रहे।

इसके लिए वैज्ञानिकों ने 96 लोगों पर अध्ययन किया। उन्होंने यह जानने की कोशिश की शरीर में निर्मित एंटीबॉडीज कितने समय तक बनी रहती हैं। इस स्टडी में शामिल लोगों में यह देखा गया कि तीन महीने की अवधि में एंटीबॉडीज कमजोर पड़ने लगे।

नए अध्‍ययन में यह सामने आया है कि एंटीबॉडीज भी समय के साथ कमजोर पड़ने लगते हैं। चित्र: शटरस्‍टॉक

अभी तक यह माना जा रहा था कि एक बार कोरोना वायरस से संक्रमित होने के बाद शरीर में एंटीबॉडीज का निर्माण हो जाता है, जो भविष्य में संक्रमण से बचाता है। पर इस नए शोध ने इस पर भी सवाल खड़ा कर दिया है।

वैक्सीन के कयास

कोरोनावायरस की वैक्सीन (Covid-19 vaccine) के निर्माण का दावा करने वाली ताजा खबर रूस से आई है। रूस की सेचेनोव यूनिवर्सिटी ने 13 जुलाई को दुनिया की पहली कोरोनावायरस वैक्सीन बना लेने का दावा किया। ट्रांसलेशनल मेडिसिन एंड बायोटेक्नोलॉजी वुतिम तारासोव संस्थान के निदेशक ने मानव परीक्षण पूरा कर लेने का दावा करते हुए बताया कि जिन लोगों पर वैक्सीन का परीक्षण किया गया है, उनमें से पहले समूह को 15 जुलाई को तथा दूसरे समूह को 20 जुलाई को छुट्टी दे दी जाएगी।

इससे पहले भारतीय कंपनी भारत बायो‍टेक की बनाई वैक्सीन के 15 अगस्त आ जाने के कयास लगाए जा रहे थे। जबकि इससे पहले इम्यू‍निटी बूस्टर आयुर्वेदिक औषधियों की किट (coronil patanjali kit) को भी पतंजलि ने कोरोना वायरस की दवा बताकर प्रेस कॉन्फ्रेंस की। जिस पर बाद में स्वास्‍थ्‍य मंत्रालय ने रोक लगा दी।

रूस से लेकर पतंजलि तक वैक्सीन के सिर्फ दावे हैं, तथ्य क्या है यह अभी भविष्य के गर्भ में है। पतंजलि ने दस दिन के ह्यूमन ट्रायल में दवा बना लेने का दावा किया और रूस ने 18 जून से 13 जुलाई की अवधि में।

जबकि वैक्सीनयूरोपडॉटइयू (vaccineseurope.eu) के अनुसार किसी भी वैक्सी‍न के निर्माण में न्यूनतम 12 महीने से 36 महीने तक का समय लगता है। अगर बीमारी जटिल है, तो इसमें 36 माह से भी ज्यादा का समय लग सकता है।

किसी भी वैक्सीन की मजबूत गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए फार्मास्यूटिकल गुणवत्ता प्रणाली, गुणवत्ता आश्वासन उपाय और प्रक्रियाएं आदि शामिल हैं। इसके प्रत्येक चरण में कई गुणवत्ता नियंत्रण और टीके की पहचान, उसकी शुद्धता, बांझपन, प्रभावकारिता और सुरक्षा की गारंटी आदि के स्तर पर चैक किया जाता है।

यानी दवा के बीमारी को दूर करने के साथ ही उसके साइड इफेक्‍ट्स  का भी गहन अध्य्यन किया जाता है। इनके साइड इफेक्ट के रूप में अंधता, बांझपन जैसे दुष्प्रभाव भी देखने में आते हैं। इनका परीक्षण इतनी छोटी अवधि में संभव ही नहीं है।

डॉ रायन ने स्पष्ट शब्दों में कहा, ”कुछ महीनों में प्रभावी वैक्सीन तैयार हो जाएगी, यह सच नहीं है।“

लंबी अवधि तक समाज से कटे रहना मुश्किल है, पर यही एकमात्र रास्‍ता है। चित्र: शटरस्‍टॉक

तो अब हमें क्या करना है?

मर्ज और दवा दोनों हमारी हद में नहीं हैं, पर हम अपनी हद निश्चित कर सकते हैं। सोशल डिस्टेंसिंग मानसिक अवसाद को बढ़ा रही है, पर यह जीवन बचाने का एकमात्र विकल्प है।

जिन मूलभूत आवश्यिकताओं की पूर्ति के लिए आप बाहर निकल रहे हैं, उस समय मास्क‍ जरूर पहनें और अपने मुंह एवं नाक को अच्छी तरह से कवर करें।

हाथ धोते रहें, घर की चीजों को साफ करते रहें और सतर्क रहें।

  • 99
लेखक के बारे में

कंटेंट हेड, हेल्थ शॉट्स हिंदी। वर्ष 2003 से पत्रकारिता में सक्रिय। ...और पढ़ें

हेल्थशॉट्स वेलनेस न्यूजलेटर

अपने इनबॉक्स में स्वास्थ्य की दैनिक खुराक प्राप्त करें!

सब्स्क्राइब करे
अगला लेख