बदलती दुनिया में हर काम को करने का तरीका भी बदला है। तकनीक की मदद से अब हम जूते तक पोलिश कर रहे हैं। इसी तरह बदली है पैरेंटिंग भी। पहले बच्चों के मनोरंजन के लिए कहानियां सुनाई जाती थीं और अब कोकोमेलन जैसे कार्टून शोज ने उसकी जगह ले ली है। इसका अपना कारण और फायदा भी है। कुछ बेसिक सीख और समझ के साथ ऐसे शोज बच्चों का मनोरंजन भी कर रहे हैं। लेकिन आपने कभी सोचा है कि बच्चों के दिमाग पर ऐसे शोज का बहुत बुरा असर (Cartoon show side effects on kids) हो रहा है? आज हम उन्हीं असरों की बात करने वाले हैं।
कोकोमेलन एक पॉपुलर बच्चों का शो है, जो खासतौर पर छोटे बच्चों के लिए बनाया गया है। ये शो बच्चों को गाने, रंगीन चित्र और मजेदार किरदारों के जरिए शिक्षा देता है। इसमें जेजे नाम का एक छोटा बच्चा और उसके परिवार के लोग रहते हैं, जो साथ में ढेर सारी मस्ती और सीखने की गतिविधियों में शामिल होते हैं। इस शो में नन्हे बच्चों के लिए आसान और समझने योग्य गाने होते हैं, जो उन्हें अल्फाबेट्स, नंबर, रंग, और दूसरे जरूरी चीज़ें सिखाते हैं।
‘कोकोमेलन’ जैसे शोज़ बच्चों को आकर्षित करते हैं, क्योंकि यह उनके लिए मनोरंजन के साथ-साथ शिक्षा का एक माध्यम भी है। इन्वायरनमेंटल प्रोटेक्शन एजेंसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, स्क्रीन टाइम बच्चों के ध्यान देने की क्षमता को प्रभावित कर देता है। छोटे बच्चों का ध्यान बहुत जल्दी बंटता है, और अगर वे लगातार तेज़-तेज़ बदलते सीन्स और म्यूजिक को देखते हैं, तो यह उनकी मेंटल सिचुएशन को ज्यादा आक्रामक बना देता है ।
इससे बच्चों के ध्यान (Cartoon show side effects on kids) केंद्रित करने की क्षमता में कमी आती है। इसके अलावा वे असली दुनिया यानी जो कुछ उनके आसपास हो रहा होता है, उसे समझने में मुश्किल फेस करते हैं क्योंकि उनका सारा ध्यान एक वर्चुअल शो पर होता है।
भाषा किसी भी व्यक्ति के लिए जरूरी शय है। भाषा न हो तो हम कैसे किसी तक अपनी बात पहुंचा सकेंगे? बस एक बार उस अकुलाहट की कल्पना समझिए जब आप अपनी बात किसी को समझा पाने में असमर्थ हों। कोकोमेलन जैसे शोज आपके बच्चे से ये भी छीन सकते (Cartoon show side effects on kids) हैं। भाषा सीखने का पहला माध्यम बातचीत है।
हम अपने आसपास के लोगों से बात कर के ही पहली बार भाषा से रूबरू होते हैं। ऐसे शोज जिसमें भाषा सेकेंडरी हो और एनिमेशन्स और म्यूजिक प्राइमरी, बच्चों के भाषा सीखने की क्षमता पर असर तो डालेंगे ही। यह बात केवल भाषा तक ही सीमित नहीं है। भाषा न आने की सूरत में बच्चों के दिमाग पर भी बुरा असर पड़ता है क्योंकि वे कमतर महसूस करने लगते हैं। और फिर वे हर ऐसी जगह पर जाने से कतराने लगते हैं जहां लोग हों, जहां सोशली कोई एक्टिविटी (Cartoon show side effects on kids) हो रही हो।
आपके बच्चे के अंदर कौन से गुण हैं या वो किस तरह का इंसान बन रहा है, ये बहुत हद तक इस पर निर्भर करता है कि उसका सोशल और इमोशनल डेवलपमेंट किस तरह से हुआ है। उसके आसपास लोग कैसे रहे हैं। रहे भी हैं या नहीं। आईओएसआर जर्नल की एक रिपोर्ट कहती है कि बच्चों को व्यवहार कैसा करना है, उन्हें बातचीत कैसे करनी है और सिम्पथी-एम्पेथी जैसे गुण उनमें सोशल एक्सपोजर (Cartoon show side effects on kids) से ही आते हैं। कोकोमेलन या कोई अन्य कार्टून शो, जिसे आपका बच्चा बहुत पसंद करता हो, ये सोशल एक्सपोजर उससे छीन सकते हैं।
ये शोज बुनियादी ज्ञान तो दे सकते हैं। जैसे रंग किसे कहते हैं, कौन सा रंग क्या कहलाता है, अच्छा और बुरा बर्ताव (Cartoon show side effects on kids) क्या है। लेकिन एक दूसरे के इमोशन्स कैसे समझे जाएं, एक दूसरे के साथ रह के काम कैसे करना है, ये बच्चों को और बच्चों के साथ वक्त बिताने से ही मिलता है। दूसरा एक बड़ी वजह यह है कि कार्टून की दुनिया बड़ी वर्चुअल होती है।
जब बच्चे उस दुनिया से निकल कर असल दुनिया में आते हैं तो यह उनके कल्पना की दुनिया से मैच नहीं खाती, इससे बच्चों के दिमाग पर असर पड़ सकता है क्योंकि उस समय उनका कमजोर दिमाग ये फर्क कर पाने में असक्षम होता है कि असल क्या है और वर्चुअल क्या?
फिजिकल हेल्थ न सिर्फ बच्चों के लिए किसी के लिए भी जरूरी है। अगर फिजिकल हेल्थ सही नहीं है तो इससे मेंटल हेल्थ पर असर पड़ना तय है। बच्चों के साथ यही होता है। हम न चाहते हुए भी बच्चों को अपनी व्यस्तता के कारण किसी कार्टून में उलझाए रखते हैं ताकि वे शैतानी न करें। लेकिन इसका असर बच्चों पर दूसरे तरीके से होता है। इससे उनकी आँखें कमजोर तो हो ही सकती हैं लेकिन इसके अलावा शारीरिक तौर पर उनका निष्क्रिय रहना उन्हें दूसरी बीमारियों (Cartoon show side effects on kids) के तरफ भी ले जाता है।
मोटापा, आंखों की समस्याएं और मांसपेशियों की कमजोरी जैसी समस्याएं (Cartoon show side effects on kids) इनकी वजह से कॉमन है। इसके अलावा, लंबे समय तक स्क्रीन देखने से उनकी नींद भी प्रभावित हो सकती है। एक रिपोर्ट कहती है कि स्क्रीन की नीली रोशनी मेलाटोनिन नामक हार्मोन के उत्पादन को बाधित करती है, जो नींद में मदद करता है। इससे बच्चों को सोने में कठिनाई हो सकती है और नींद की कमी से उनका मेंटल हेल्थ (Cartoon show side effects on kids) भी प्रभावित हो सकता है।
नींद बच्चों के मेंटल हेल्थ के लिए बहुत जरूरी है। पर्याप्त नींद ने लेने की वजह से बच्चे चिड़चिड़े हो सकते हैं। इससे उनकी ध्यान देने की क्षमता भी घटती है और कम उम्र में ही वे तनाव की समस्या के भी शिकार हो जाते हैं। होता ये है कि जब बच्चों को सोने से पहले अधिक स्क्रीन एक्सपोज़र मिलता है तो यह उनकी नींद पर बुरी तरह से असर डालता है। क्यूरियस जर्नल ऑफ मेडिकल साइंस की एक रिपोर्ट कहती है कि ऐसे शोज बच्चों की नींद पर बुरी तरह असर (Cartoon show side effects on kids) डालते हैं।
ऐसा इस वजह से होता है क्योंकि बच्चे सोते वक्त भी उन चीजों के बारे में ही सोच रहे होते हैं जो शो में घटा होता है। इससे नींद प्रभावित होती है और फिर नींद न लेने की वजह से बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य। इसलिए बच्चों के बेहतर नींद के लिए बहुत जरूरी है कि सोने से एक दो घंटे पहले कम से कम उन्हें किसी भी तरह के स्क्रीन से दूर रखा जाए।
साइकोलॉग्स नाम की एक भारतीय मैगजीन है। इसकी रिपोर्ट कहती है कि बच्चों में कोकोमेलन जैसे शो एडिक्शन की तरह भी जगह ले सकते हैं। फिर इसे छुड़ाना आपके लिए टेढ़ी खीर बन जाएगा। बच्चा फिजिकली आपके मुकाबले बहुत कमजोर है तो आप जबरन तो ऐसा कर लेंगे लेकिन उसके बाद के असर आपके हक में बिल्कुल नहीं (Cartoon show side effects on kids) होंगे।
ये असर शुरुआती तौर पर चिड़चिड़ेपन के तौर पर दिख सकते हैं। बाद में ये बढ़ते हुए, चीजों को पटकना या हमेशा गुस्से में रहना, इस तरह से दिखाई दे सकते हैं। रिपोर्ट कहती है कि इसका असर बच्चों की जिंदगी पर दिखाई देने लगता है, जब वो स्कूल से घर तक अनमने हो जाते हैं। उन्हें लगने लगता है, एक वो शो (Cartoon show side effects on kids) जो वे देखते हैं, उसके अलावा इस दुनिया में कुछ भी अच्छा नहीं है।
1. पेरेंट्स बच्चों के स्क्रीन टाइम को लिमिट करें, ताकि वे ज्यादा समय टीवी पर न बिताएं।
2. बच्चों को एक्टिव और क्रिएटिव एक्टिविटीज़ में शामिल करें, जैसे खेल, किताबें पढ़ना, और आर्ट एंड क्राफ्ट।
3. कोकोमेलन जैसे शो की जगह एजुकेशनल और इंटरएक्टिव कंटेंट चुनें, जो उनकी सोच और समझ को बढ़ाए।
4. बच्चों को बाहरी गतिविधियों के लिए प्रेरित करें, जैसे पार्क में खेलना या दोस्तों के साथ टाइम स्पेंड करना।
5. साथ ही बच्चों को अच्छे रोल मॉडल दिखाएं और उन्हें समझाएं कि शो में दिखाए गए कंटेंट हमेशा रियल नहीं होते।
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