हमारे शरीर में कई प्रकार के हॉर्मोन्स मौजूद होते हैं जो शरीर के अलग-अलग फंक्शन को परफॉर्म करते हैं। हॉर्मोन्स की वजह से ही हमें कई प्रकार की भावनाएं महसूस होती हैं, जैसे कि खुशी, दुख, तनाव, यौन गतिविधियां, इत्यादि। हॉर्मोन्स हमारी सेहत एवं शरीर की गतिविधियों को कई रूपों में प्रभावित कर सकता है। एक छोटी सी चोट महसूस होने से लेकर ख़ुशी का एहसास और आंखों में आंसू आने तक के लिए हॉर्मोन्स जिम्मेदार होते हैं। तो चलिए जानते हैं कुछ ऐसे ही महत्वपूर्ण हॉर्मोन्स के बारे में साथ ही जानेंगे यह किस तरह सेहत को प्रभावित कर सकते हैं (essential hormones)।
एस्ट्रोजन को महिलाओं के सेक्स हॉर्मोन्स के नाम से जाना जाता है, परंतु पुरुषों में भी यह महत्वपूर्ण हॉर्मोन मौजूद होता है। महिलाओं में एस्ट्रोजन ओवरी में उत्पन्न होता है और ओव्यूलेशन, मेंस्ट्रुएशन, ब्रेस्ट डेवलपमेंट और हड्डी एवं कार्टिलेज के डेंसिटी को बढ़ावा देने में मदद करता है।
जरूरत से ज्यादा एस्ट्रोजोन का उत्पादन कुछ प्रकार के कैंसर के खतरे को बढ़ा देता है। इसके अलावा यह डिप्रेशन, वेट गैन, नींद की कमी, सिरदर्द, सेक्स ड्राइव की कमी, एंग्जाइटी, और मेंस्ट्रूअल प्रॉब्लम्स का कारण हो सकता है।
वहीं शरीर में एस्ट्रोजन की कमी हड्डियों को कमजोर बना देती हैं। साथ ही पीरियड और फर्टिलिटी से जुड़ी समस्याओं का कारण बनती है। इतना ही नहीं ऐसे में मूड स्विंग होना भी आम है।
इंसुलिन पैंक्रियास द्वारा प्रोड्यूस किए जाने वाला हार्मोन है। यह कई शारीरिक फंक्शंस को परफॉर्म करता है। इसका मुख्य काम खाद्य पदार्थों में मौजूद ग्लूकोज को ऊर्जा शक्ति में बदलना है। इंसुलिन ब्लड शुगर लेवल को रेगुलेट करता है।
नेशनल लाइब्रेरी ऑफ़ मेडिसिन द्वारा प्रकाशित स्टडी के अनुसार शरीर में इंसुलिन की उचित मात्रा न होने पर इन्सुलिन रेजिस्टेंस की स्थिति पैदा होती है, जिसकी वजह से प्रीडायबिटीज और डायबिटीज होने का खतरा बढ़ जाता है।
प्रोजेस्ट्रोन भी फीमेल रिप्रोडक्टिव सिस्टम से जुड़ा होता है। प्रोजेस्टेरोन मेंस्ट्रूअल साइकिल को रेगुलेट करता है और यूट्रस को प्रेग्नेंसी के लिए प्रिपेयर करता है। प्रेगनेंसी की शुरुआती दौर में इसकी एक अहम भूमिका होती है।
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कस्टमाइज़ करेंप्रोजेस्टेरोन का गिरता स्तर हैवी और इरेगुलर पीरियड्स का कारण बनता है। इसके साथ ही यह फर्टिलिटी को भी प्रभावित कर सकता है। प्रेगनेंसी के दौरान प्रोजेस्ट्रोन के स्तर में गिरावट आने पर प्रीमेच्योर लेवल और मिसकैरेज का खतरा बढ़ जाता है। वहीं जरूरत से ज्यादा प्रोजेस्ट्रोन ब्रेस्ट कैंसर की स्थिति पैदा कर सकता है।
कॉर्टिसोल को स्टेरॉइड हार्मोस भी कहते हैं। यह एड्रेनल ग्लैंड द्वारा प्रोड्यूस किया जाता है। कॉर्टिसोल कई रूपों में आपको स्वस्थ और एनर्जेटिक रख सकता है। कॉर्टिसोल मेटाबॉलिज्म और ब्लड प्रेशर को रेगुलेट करता है, साथ ही एंटी इन्फ्लेमेटरी एजेंट की तरह काम करते हुए हेल्थ को सपोर्ट करता है।
वहीं दूसरी ओर कॉर्टिसोल को स्ट्रेस हॉर्मोन्स के नाम से भी जाना जाता है। नेशनल लाइब्रेरी ऑफ़ मेडिसिन द्वारा प्रकाशित स्टडी के अनुसार कॉर्टिसोल का बढ़ता स्तर तनाव को बढ़ा देता है, इसकी वजह से हाइपरटेंशन, इंजाइटी, नींद की कमी और ऑटोइम्यून प्रॉब्लम हो सकते हैं। वहीं कॉर्टिसोल की कम मात्रा ब्लड प्रेशर के स्तर को गिरा देती है और आपको थकान और कमजोरी महसूस हो सकता है।
ग्रोथ हॉर्मोन पिट्यूटरी ग्लैंड द्वारा प्रोड्यूस किया जाता है। नेशनल लाइब्रेरी ऑफ़ मेडिसिन के अनुसार ग्रोथ हार्मोन सेल्स ग्रोथ, सेल्स रीजेनरेशन में मदद करता है। साथ ही साथ मेटाबॉलिज्म को भी बूस्ट करता है।
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थायराइड हार्मोन थायराइड ग्लैंड में प्रोड्यूस होता हैं। यह शरीर के कई फंक्शंस को परफॉर्म करता है। इसका एक सबसे बड़ा कार्य मेटाबॉलिज्म को रेगुलेट करना है। थायराइड हार्मोन का बिगड़ता स्तर शरीर के लिए काफी ज्यादा हानिकारक हो सकता है। इसके कारण वजन असंतुलित हो जाता है और ऊर्जा शक्ति में भी गिरावट आती है।
कॉर्टिसोल की तरह एड्रेनालाईन को भी स्ट्रेस हार्मोन के नाम से जाना जाता है। यह एड्रेनल ग्लैंड में प्रोड्यूस होता है। इसका मुख्य कार्य शरीर को क्रोधित करना है, आप गंभीर से गंभीर और तनाव की स्थिति में जो भी निर्णय लेती हैं उसके पीछे एड्रेनालाईन हॉर्मोन जिम्मेदार होते हैं। एड्रेनालाईन का बढ़ता स्तर ब्लड प्रेशर, तेज धड़कन, एंग्जाइटी, दिल से जुड़ी समस्याएं और जरूरत से ज्यादा क्रोध का कारण बन सकता है।
टेस्टोस्टेरॉन शरीर में मौजूद प्रमुख एंड्रोजन में से एक है। एंड्रोजन पुरुषों की फर्टिलिटी से जुड़े हार्मोन्स का एक प्रकार है। इसके साथ ही महिलाएं भी टेस्टोस्टरॉन प्रोड्यूस करती हैं। यह हार्मोन सेक्स ड्राइव, फैट डिस्ट्रीब्यूशन, मांसपेशियों की मजबूती, बोन मास को बढ़ाना और रेड ब्लड सेल्स के प्रोडक्शन में मदद करता है।
जिन महिलाओं में टेस्टोस्टेरॉन की कमी होती है, उनमें बाल झड़ने की समस्या, शरीर में अधिक बाल होना, त्वचा पर अधिक बाल होना, एक्ने, वजन का बढ़ता, सेक्स ड्राइव की कमी देखने को मिलती है। इसके अलावा टेस्टोस्टरॉन की अधिकता इरेगुलर पीरियड्स और फर्टिलिटी में समस्या पैदा कर सकती है।
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