स्वास्थ्य रक्षा के क्षेत्र में ‘‘रेयर डिजीज’’ या दुर्लभ रोग एक ऐसा शब्द है, जिसे सुनकर अक्सर उन अस्पष्ट बीमारियों की तस्वीरें दिमाग में आती हैं, जिनसे कुछ ही लोग पीडि़त हैं। हालांकि सच्चाई इससे बहुत अलग है। तरह-तरह के दुर्लभ रोग मिलकर एक बड़ी आबादी को प्रभावित करते हैं। दुनिया-भर में 30 करोड़ से ज्यादा लोगों को विभिन्न दुर्लभ रोग हैं। रेयर डिज़ीज डे (Rare Disease Day) के अवसर पर जानते हैं ऐसी ही कुछ बीमारियों और उनके उपचार के बारे में।
खून की दुर्लभ बीमारियों के मरीजों को अक्सर धीरे-धीरे अक्षमताएं होती हैं और जीवन को सीमित या कमजोर करने वाली गंभीर समस्याएं हो सकती हैं। सही परीक्षणों के बिना इन समस्याओं का पता लगाना कठिन होता है। जागरूकता की कमी और निवारक रणनीतियों पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।
भारत में दुर्लभ रोगों के लिये कोई सार्वभौमिक परिभाषा नहीं है। इसलिए उनकी सही मौजूदगी का पता लगाने में चुनौती है। हालांकि, आकलन के अनुसार भारत में 7.2 करोड़ से 9.6 करोड़ लोगों की एक बड़ी आबादी दुर्लभ रोगों से पीडि़त है। इसके बावजूद, दुर्लभ रोगों के मरीजों को सही देखभाल और सहयोग पाने में अक्सर कई चुनौतियां होती हैं। यह देखते हुए, दुर्लभ रोगों पर जागरूकता बढ़ना आवश्यक है। ताकि जरूरतमंदों को बेहतर तरीके से देखभाल मिल सके।
रेयर डिजीज को ऑर्फन डिजीज भी कहा जाता है। इनकी खासियत यह है कि लोगों के बीच इनकी मौजूदगी कम है। हर दुर्लभ रोग लोगों की एक छोटी संख्या को ही प्रभावित कर सकता है, लेकिन अगर इन्हें मिला दिया जाए, तो दुनिया भर में करोड़ों मरीज मिलेंगे। यह रोग अक्सर स्थायी, प्रगतिशील और जानलेवा होते हैं। इनसे मरीजों और उनके परिवारों को बड़ी परेशानी होती है।
इंडियन ऑर्गेनाइजेशन ऑफ रेयर डिजीज (IORD) के मुताबिक, दुनिया में लगभग 7000 से लेकर 8000 दुर्लभ रोग हैं। भारत के टर्शरी अस्पतालों में इनमें से लगभग 450 को आधिकारिक रूप से दर्ज किया गया है। इसके बावजूद, 5% से भी कम मामलों के लिये उपचारों को स्वीकृत किया गया है। इसके अलावा, दुर्लभ रोगों के नये-नये मामले लगातार आ रहे हैं। ऐसे में सभी संबद्ध हितधारकों के लिये स्थिति ज्यादा पेचीदा हो जाती है।
दुर्लभ रोगों पर जागरूकता की कमी से बहुआयामी चुनौतियां होती हैं, जिनमें जांच, बुनियादी ढांचा और आर्थिक मामलों की बाधाएं शामिल हैं।
अपर्याप्त जागरूकता के गंभीर परिणामों में से एक है दुर्लभ रोगों को स्वास्थ्य पर मंडराते हुए एक संकट के तौर पर न पहचान पाना। इसका कारण चिकित्सा समुदाय के भीतर जानकारी की कमी है। साथ ही स्वास्थ्यरक्षा प्रदाताओं के पास पर्याप्त सुविधाएं तथा उपचार के सही प्रोटोकॉल्स नहीं हैं। इन रोगों पर प्रभावी तरीके से काम करने में आवश्यक संसाधनों, इष्टतम देखभाल तथा बुनियादी ढांचा के मामले में बाधा होती है।
उपचार के मानकीकृत प्रोटोकॉल्स और विशिष्ट सुविधाओं तक पहुंच के बिना दुर्लभ रोगों के मरीजों का लंबे समय तक रोग-निदान नहीं हो पाता है और उपचार के पूरे परिणाम नहीं मिलते हैं। कई मामलों में पता लगाने योग्य दुर्लभ रोगों की संख्या और जांच की उपलब्ध विधियों के बीच स्पष्ट अंतर होता है।
दुर्लभ रोगों का पता लगाना एक चुनौती है। क्योंकि इनमें से कई में आनुवांशिक या मॉलीक्यूलर परीक्षणों की आवश्यकता होती है और अन्य में विशेषीकृत चिकित्सा जांंच चाहिये। जोकि सार्वभौमिक रूप से उपलब्ध नहीं है। कई मरीजों को रोग-निदान के लिये टर्शरी केयर सेंटर जाना पड़ता है।
एक बार की या कम खर्च वाली थेरेपी की आवश्यकता वाले दुर्लभ रोगों के उपचार में आर्थिक मदद एक बड़ी चुनौती है। भारत की नेशनल पॉलिसी फॉर रेयर डिजीज, 2021 (NPRD) इन चुनौतियों को समझती है, लेकिन उन्हें दूर करने में विफल हो जाती है। मरीजों के लिये अब कई सरकारी पहलों के माध्यम से आर्थिक मदद उपलब्ध है, जैसे कि राष्ट्रीय आरोग्य निधि, रेयर डिजीज पॉलिसी।
दुर्लभ रोगों पर जागरूकता और उपचार तक पहुंच के बीच का अंतर दूर करने के लिये कई स्तरों पर संगठित प्रयास चाहिये।
सबसे पहले तो रोग का जल्दी पता लगाने और सही समय पर दखल देने के लिये मरीजों, देखभाल करने वालों और स्वास्थ्यरक्षा के पेशवरों की जागरूकता के व्यापक अभियान जरूरी हैं। इन अभियानों में स्वास्थ्यरक्षा की बेहतर नीतियों और दुर्लभ बीमारी में देखभाल के लिये बुनियादी ढांचे के महत्व पर जोर दिया जाना चाहिये।
दूसरा, नीति-निर्माताओं को स्वास्थ्यरक्षा के राष्ट्रीय एजेंडा में दुर्लभ रोगों को प्राथमिकता देनी चाहिये और उसके अनुसार संसाधनों का आवंटन करना चाहिये। इनमें सार्वजनिक स्वास्थ्यरक्षा सुविधाओं में जांचों को बढ़ाना और दुर्लभ रोगों के निदान तथा उपचार हेतु विशेषीकृत केन्द्रों की स्थापना को प्रोत्साहन देना शामिल है।
अंत में, आर्थिक सहायता वाली योजनाओं की समीक्षा होनी चाहिये और उनमें दुर्लभ रोगों की एक ज्यादा बड़ी श्रृंखला को शामिल कर सभी पीडि़तों के लिये उपचार तक बराबर पहुंच सुनिश्चित करनी चाहिये। इन मूलभूत चुनौतियों का हल निकालकर हम एक ज्यादा समावेशी स्वास्थ्यरक्षा प्रणाली बना सकते हैं, ताकि बीमारी कितनी भी दुर्लभ क्यों न हो, कोई भी मरीज छूटने न पाए।
दुर्लभ रोगों के बारे में जागरूकता बढ़ाने की अनिवार्यता सबसे जरूरी है, ताकि मरीजों को उपचार तक बेहतर पहुँच मिल सके। स्वास्थ्यरक्षा पेशेवरों, नीति-निर्माताओं और आम लोगों के बीच इन बीमारियों की गहरी समझ को बढ़ावा देकर हम दुर्लभ रोगों के मरीजों के लिये बेहतर निदान, उपचार और सहयोग का रास्ता बना सकते हैं।
जागरुकता के लिये मिलकर प्रयास और फोकस करने से हम कमियों को दूर कर सकते हैं। हम सुनिश्चित कर सकते हैं कि दुर्लभ रोग का कोई भी मरीज अच्छी गुणवत्ता का उपचार और सहयोग पाने में पीछे न रहे। इसके अलावा, नीतियों में सुधार करना और आर्थिक मदद की योजनाओं का विस्तार यह सुनिश्चित करने के लिये महत्वपूर्ण है कि दुर्लभ रोगों के सभी मरीजों को उपचार तक बराबर पहुंच मिले।
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