विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत में टीबी के बढ़ते मरीजों को लेकर बेहद चौंकाने वाली रिपोर्ट पेश की थी। इस रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया भर का हर चौथा टीबी मरीज भारतीय है। यानी की दुनिया भर के कुल टीबी मरीजों में 26 फीसदी भारतीय है। बता दें कि डब्ल्यूएचओ (WHO) ने दुनिया को टीबी मुक्त करने के लिए साल 2030 का लक्ष्य रखा गया।
वहीं, भारत सरकार ने देश को 2025 तक टीबी मुक्त करने का लक्ष्य रखा था। हालांकि, विश्वव्यापी कोरोना महामारी के कारण भारत सरकार ने अपने लक्ष्य में तब्दीली की है। आंकड़ों के मुताबिक, देश में साल 2019 में टीबी से करीब 90 हजार लोगों की मौत होने का अनुमान है। टीबी का असर मनुष्य के फेफड़ों पर पड़ता है। हालांकि, एक्स्ट्रा पल्म्युनरी नामक टीबी का प्रभाव शरीर के दूसरे अंगों पर भी देखा गया है। तो आइए जानते हैं ट्यूबरकुलर पेरिकार्डाइटिस बीमारी के लक्षण, कारण और इलाज।
विशेषज्ञों के मुताबिक, टीबी की बीमारी का असर आपके हार्ट पर भी पड़ता है, जो बेहद खतरनाक होता है। इसे ही ट्यूबरकुलर पेरिकार्डाइटिस बीमारी के नाम से जाना जाता है। दरअसल, मनुष्य का हृदय तीन परतों से ढंका होता है। इन परतों को एंडोकार्डियम, मायोकार्डियम और पेरिकार्डियम कहते हैं।
पेरिकार्डियम हार्ट को बाहरी परत के रूप में ढंकता है। हार्ट की इसी बाहरी झिल्ली में सूजन आने के कारण ट्यूबरकुलर पेरिकार्डाइटिस बीमारी होती है। इस झिल्ली के आस-पास सूजन आ जाती है, जिसके कारण यह कठोर और मोटी हो जाती है। नतीजतनम, हार्ट के फैलने और सिकुड़न में अड़चनें आती है। इस वजह से हार्ट खुद पर एक तरह का दबाव महसूस करता है।
एक समय बाद इसी परत या झिल्ली में अत्यधिक मात्रा में एक तरह का तरल पदार्थ इकठ्ठा होने लगता है। इसे पेरिकार्डियल इफूसन के नाम से जाना जाता है। यह पहले पानी की तरह तरल होता है, लेकिन बाद में यह गाढ़ा होने लगता है। वहीं, इसमें जाले पड़ने लगते हैं। जिन लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बेहद कम होती है, उन्हें इस बीमारी के होने का खतरा बढ़ जाता है।
इस बीमारी के 75 फीसदी मामलों यह देखा गया है कि इसमें शुरुआत में बहुत तेज बुखार आता है। मरीज को शाम के समय तेज बुखार और अत्यधिक पसीना आने की समस्या आती है। फेफड़ों की टीबी में छाती में भारीपन, दर्द, खांसी आना, सांस लेने में परेशानी और पैरों में सूजन आने जैसे लक्षण दिखाई देने लगते हैं।
विशेषज्ञों का कहना हैं कि जिन मरीजों को फेफड़ों की टीबी है, उन्हें ट्यूबरकुलर पेरिकार्डाइटिस बीमारी भी हो सकती है। वहीं, कुछ मरीजों को केवल ट्यूबरकुलर पेरिकार्डाइटिस बीमारी ही होती है। ट्यूबरकुलर पेरिकार्डाइटिस की पहचान करने के लिए छाती के एक्स-रे जांच की जाती है।
अगर, एक्स-रे जांच में हृदय का आकार बढ़ा हुआ या इसके आसपास किसी तरह का तरल पदार्थ जमा हुआ नजर आये तो यह ट्यूबरकुलर पेरिकार्डाइटिस नामक बीमारी हो सकती है। वहीं, हार्ट की पेरिकार्डियम झिल्ली के मोटी और खुरदरी होने की जांच करने के लिए इकोकार्डियोग्राफी टेस्ट होता है। वहीं, टीबी की जांच के लिए ब्लड टेस्ट, एडीए और पीसीआर टेस्ट किए जाते हैं।
अक्सर देखा गया कि ज्यादातर मरीज ट्यूबरकुलर पेरिकार्डाइटिस से लंबे वक़्त से पीड़ित रहते हैं, लेकिन डायग्नोसिस के नहीं कराने के कारण पता नहीं चल पाता है। इस कारण से हृदय की पेरिकार्डियम झिल्ली के इर्द-गिर्द कठोर और मोटी परत जम जाती है।
इसके कारण हृदय की संकुचन क्षमता प्रभावित होती है। जिसे कंस्ट्रिक्टिव पेरिकार्डिटिस के नाम से जाना जाता है। वहीं, अगर झिल्ली में जरुरत से ज्यादा तरल पदार्थ जमा होने के कारण इसका दबाव हार्ट पर पड़ता है। इसे कार्डियक टैंपोनाड की स्थिति कहते हैं। यदि समय रहते इसको नहीं पहचाना नहीं जाता है तो मरीज की जान भी जा सकती है।
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कस्टमाइज़ करेंअमेरिकन कॉलेज ऑफ कार्डियोलॉजी के फेलो एवं कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. हेमंत चतुर्वेदी के मुताबिक, इस बीमारी का असर हार्ट पर अधिक पड़ता है। ऐसे में बीमारी का पता लगते हैं इसका इलाज तुरंत शुरू कर देना चाहिए। मरीज को तुरंत इस बीमारी की दवाइयां देनी चाहिए। जो मरीज टीबी और ट्यूबरकुलर पेरिकार्डाइटिस दोनों से प्रभावित है, उनका टीबी का मुख्य इलाज किया जाता है।
वहीं, पेरिकार्डियम परत के आसपास अधिक मात्रा में तरल पदार्थ जमा है तो इसे फ्लोरो इमेजिंग की मदद से निकाला जाता है। वहीं, मोटी और सख्त झिल्ली को कार्डियक सर्जरी के जरिये ठीक जाता है। ताकि हृदय की संकुचन प्रक्रिया बहाल हो सकें।
नई दिल्ली के अपोलो हॉस्पिटल की चीफ न्यूट्रिशनिस्ट डॉ. प्रियंका रोहतगी का कहना हैं कि इस बीमारी की वजह से मरीज में बेहद कमजोरी हो जाती है। इसलिए अपने आहार में प्रोटीन, कैलोरी युक्त आहार शामिल करना चाहिए। इसके लिए पालक, हरी सब्जियां, दालें, हरी पत्तेदार सब्जियां,अमरुद, आलू बुखारा, संतरा, सेब आदि का सेवन किया जा सकता है।
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